
अमेरिका के प्रकाशकों और लेखकों ने इस सिलसिले में कुछ महत्वपूर्ण कदम भी उठाये हैं। ये बातें इसलिए जानना जरूरी हैं क्योंकि गूगल वाले हिंदी किताबों की ओर भी आने वाले हैं। सौदे पटाने की तैयारियां चल रही हैं। यह कॉपीराइट का नये किस्म का मसला है। यह किताबों को सार्वजनिक संपदा से निजी कारपोरेट संपदा में तब्दील करने वाला मसला है। यह सारा काम डिजिटलाइजेशन, ऑनलाइन लाइब्रेरी और यूजर के साथ न्याय के नाम पर किया जा रहा है।
गूगल की धोखाधड़ी का तरीका यह है कि आप ज्योंही कोई किताब बुकसर्च में देखते हैं, उसके कुछ पन्ने वहां पाते हैं। अंत में लिखा होता है पूरी किताब खरीदने के लिए प्रकाशक से संपर्क करें। गूगल बुकसर्च में स्कैन करके किताब के आवरण, अनुक्रम और कुछ अंश डाल दिये गये हैं। इसके अलावा अनेक किताबें भी हैं जो पूरी की पूरी उपलब्ध हैं, दुनिया की अनेक लाइब्रेरी भी हैं, जिनकी पूरी पुस्तक सूची गूगल बुकसर्च में उपलब्ध है। हार्वर्ड और मिसिंगन विश्वविद्यालय, न्यूयार्क पब्लिक लाइब्रेरी, ऑक्सफोर्ड और स्टेनफोर्ड की सभी किताबें गूगल बुक सर्च का हिस्सा हैं। कुल मिलाकर अब तक इसमें 70 लाख किताबों की सूची स्कैन करके डाल दी गयी हैं। गूगल दुनिया की सबसे ज्यादा व्यापार करने वाली इंटरनेट कंपनियों में से एक है। यह कंपनी सालाना तकरीबन 140 बिलियन डालर का कारोबार करती है।
गूगल का नारा है ‘शैतान मत बनो।’ सवाल यह है क्या वह अपने इस नारे पर कायम है? गूगल पर कई कलंक के टीके लगे हैं। उसने कई मोर्चों पर प्राइवेसी के दायरे का अतिक्रमण किया है। उसने अपने यूजर का पूरा हिसाब सत्ता के शिखरपुरुषों को सौंपा है। खासकर चीन सरकार के हाथों उसने अपने यूजरों का पूरा हिसाब सौंपकर जघन्य अपराध किया है। यह कार्य उसने अपनी घोषित कानूनी प्रतिश्रुति को ताक पर रखकर किया है। गूगल की वचनबद्धता थी कि अपने यूजर के बारे में किसी भी तरह की जानकारी अन्य को जाहिर नहीं करेगा। महज चीन में व्यापार करने और मुनाफा कमाने के लिहाज से उसने यह घृणिततम अपराध किया है। करोड़ों चीनी नागरिकों के मानवाधिकारों का उल्लंघन किया है। संचार क्रांति के नाम पर जो चल रहा है, उसके क्या राजनीतिक-सामाजिक दुष्परिणाम हो सकते हैं, यह इसका सबसे बुरा उदाहरण है।
गूगल के साथ इस मामले में माइक्रोसॉफ्ट आदि कंपनियों ने भी नागरिकों की प्राइवेसी को भंग करके अपने समस्त यूजरों के डाटा चीन सरकार को सौंप दिये हैं। इसके आधार पर चीन में सरकार विरोधियों को पकड़-पकड़ कर जेलों में ठूंसा जा रहा है। डिजिटल टैक्नोलॉजी में कॉपीराइट के सवालों पर संगीत की दुनिया में हंगामा मचा हुआ है। संगीत के कॉपीराइट के सवाल अभी भी साधारण लोगों को झंझट में डाल रहे हैं। यहां पर सिर्फ पुस्तक के कापीराइट विवाद से जुड़े प्रसंगों तक सीमित रहेंगे।
गूगल की कॉपीराइट को लेकर अपनी निजी धारणाएं हैं, जिन्हें अमेरिकन प्रकाशक संघ और लेखक संघ नहीं मानते। इन दोनों ही संगठनों ने अदालत में जाकर गूगल के द्वारा किये जा रहे कापीराइट उल्लंघन के बारे में मुकदमा दायर किया। इसमें उन्होंने ‘गूगल बुक सर्च प्रकल्प’ की भूमिका पर सवाल खड़े किये हैं। इन दोनों संघों ने अपने पिटीशन में लिखा है कि गूगल ने किताबों का डिजिटलाइजेशन करने के पहले अनुमति नहीं ली। बगैर अनुमति के उन्हें ऑनलाइन पर डाल दिया और अवैध ढंग से उनका व्यापारिक लाभ उठा रही है, इसके खिलाफ अदालत कार्रवाई करे। जबकि गूगल का तर्क था कि उसने अमेरिकी कानूनों का पालन किया है और कोई अवैध किताब उपलब्ध नहीं करायी है। दो साल तक यह विवाद अदालत में चलता रहा और अंत में अदालत के बाहर दोनों पक्षों के बीच 28 अक्टूबर 2008 को एक समझौता हुआ, जिसके अनुसार ऑनलाइन पुनर्प्रकाशन के नियमों को बनाया जाएगा, दुर्लभ किताबों, आउट ऑफ प्रिंट किताबों, बाजार में उपलब्ध किताबों के बारे में नियम बनाये गये हैं, जिसे ‘बुक्स राइट्स रजिस्ट्री’ नाम दिया है। इसमें लेखक संघ, प्रकाशक संघ ने भी अपनी सहमति का इजहार किया है। इस समझौते में अप्रकाशित किताब, पत्रिका, संगीत, डायरी, पत्र आदि सबको शामिल किया गया है। इसमें बड़े पैमाने पर मौजूद संगीत, गीत, संगीत स्वरलिपि के कॉपीराइट के बारे में प्रावधान हैं। लेखक और प्रकाशक संघों के साथ हुए समझौते से सतह पर लगता है सब लोग खुश हैं। लेकिन सच्चाई यह नहीं है। 134 पन्ने और 15 परिशिष्टों के साथ तैयार किये गये इस समझौते में अभी भी अनेक खाइयां हैं। यही वजह है कि इन तीनों के बीच समझौता होने बावजूद अदालत ने तत्काल इस समझौते को मंजूरी नहीं दी। चार महीनों के लिए फैसला टाल दिया। इसका प्रधान कारण है कि ऑनलाइन प्रकाशन, ऑनलाइन संगीत और ऑनलाइन व्यापार में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ जनता के सार्वजनिक हित भी दांव पर लगे हैं।
अकेले 300 बड़ी प्रकाशक कंपनियां हैं जिनके अरबों डालर का व्यापार दांव पर लगा है। किताबों के डिजिटलाइजेशन के कारण किताबों की खरीद पर सीधे असर पड़ा है, दूसरा मंदी से प्रकाशक परेशान हैं। अनेक प्रकाशकों के मुनाफों में 6 प्रतिशत से लेकर 21 प्रतिशत तक की गिरावट दर्ज की गयी है। अनेक प्रकाशकों ने अपने यहां कर्मचारियों की छंटनी की है। पुस्तक प्रकाशक इस तथ्य पर भी नजर गडाए हुए हैं कि वीडियो और संगीत उद्योग को डिजिटलाईजेशन के कारण जो व्यापारिक धक्का लगा है वैसा किताब प्रकाशकों को न लगे। लेकिन सच यही है कि प्रकाशकों को धक्का लगेगा। प्रकाशक-लेखक संघों और गूगल के बीच में चल रहे मुकदमे की अगली सुनवाई अक्टूबर 2009 के आरंभ में होने की संभावनाएं हैं। इसी बीच में अदालत ने अन्य लोगों से भी इस मामले पर अपना पक्ष रखने की अपील की है। इसके बाद 4 मई 2009 को अमेरिकन लाइब्रेरी एसोसिएशन, एसोसिएशन ऑफ कॉलेज एंड रिसर्च लाइब्रेरी,एसोसिएशन और रिसर्च लाइब्रेरी ने अपना पक्ष अदालत में रखा है। इन संगठनों ने सवाल उठाया है कि लेखक संघ, प्रकाशक संघ और गूगल के बीच हुए समझौते से पुस्तकालयों के बीच में असमानता बढ़ेगी, यूजर की प्राइवेसी की कोई सुरक्षा की गारंटी भी इस समझौते में नहीं है। इन संगठनों ने अपने पिटीशन में सवाल उठाया है कि बाज़ार दर से तय होने वाले किताबों के दाम से उच्च शिक्षा के क्षेत्र में असमानता और भी बढ़ेगी। साथ ही अमेरिका के के-12 स्कूलों में असमानता बढ़ेगी। यह समझौता यूजर की प्राइवेसी के बारे में कुछ नहीं बोलता। इसके अलावा गूगल को उन तमाम पुस्तकालयों की डिजिटल किताबों को सुरक्षा और संरक्षण देना होगा जिनका वह गूगल में इस्तेमाल कर रहा है। उसे यह भी सुनिश्चित करना होगा कि डिजिटल कापी की नकल नहीं की जाए। इन संगठनों ने अदालत से अपील की है वह यह सुनिश्चित बनाये कि इस समझौते में शामिल तीनों पक्ष लाइब्रेरी के बुनियादी उसूलों – सूचना पाने का अधिकार, प्राइवेसी का संरक्षण, और बौद्धिक स्वातंत्रता के साथ कोई समझौता न करें।
गूगल, प्रकाशक और लेखक संघ के बीच का यह समझौता अगर लागू हो जाता है तो किताबों की दुनिया में गूगल बादशाह बन जाएगा। लाखों, करोड़ों किताबें उसकी इजारेदारी और स्वामित्व का हिस्सा बन जाएंगी और यह सूचना क्रांति की अब तक की सबसे भयावह जनविरोधी घटना होगी। इस तरह की इजारेदारी के खिलाफ आम लोगों को जाग्रत किया जाना चाहिए। किताबें हम सबकी हैं उन्हें किसी कारपोरेट घराने की संपदा में तब्दील नहीं करने दें। इस समझौते का अर्थ यह भी है कि गूगल अब हमारे पुस्तकालयों का भी निजीकरण करेगा। वह उन सभी किताबों का मालिक हो जाएगा जो उसके समझौते का हिस्सा हैं। उन किताबों का पुस्तकालयों से मुफ्त में इस्तेमाल असंभव हो जाएगा। अभी गूगल के हाथों उन तमाम किताबों के डिजिटल अधिकार चले गये हैं जो कॉपीराइट एक्ट के दायरे के बाहर हैं। अब वे किताबें डिजिटल रूप में गूगल की संपदा बन चुकी हैं। उनसे होने वाली आय को गूगल अकेले उठा रहा है। यह सीधे डिजिटल डाकेजनी है। आओ इस डाकेजनी के खिलाफ एकजुट हों।
मोहल्ला लाइव डॉट कॉम से साभार प्रकाशित
आगे पढ़ें के आगे यहाँ
कुछ स्पष्ट नहीं हुआ,
ReplyDeleteकोई कृति या पुस्तक समय के साथ कॉपीराइट से मुक्त हो चुकी है तो गूगल तो क्या कोई भी उसका व्यावसायिक अथवा गैर-व्यावसायिक उपयोग कर सकता है, जैसे लिब्रिवोक्स, विकिबुक्स और प्रोजेक्ट गुटेनबर्ग.
अगर कॉपीराइट के अर्न्तगत वह कृति सुरक्षित है तो गूगल उसे केवल अवलोकनार्थ (प्रिव्यू के लिए) उपलब्ध करवाता है. यह सुविधा लगभग हर बुकस्टोर में होती है.
पुस्तकें आलेखों, समाचारों, पत्रिकाओं, वीडियो, ऑडियो और वेब कंटेंट की ही तरह संचार की एक साधन हैं. उन्हें वीडियो सर्च, इमेज सर्च, न्यूज़ सर्च, ब्लॉग सर्च की ही तरह अगर सर्च इन्जंस अपनी सेवाओ में सम्मलित करते हैं तो यह उनके साथ नेट उपयोक्ता के लिए भी अच्छा है. बशर्ते कॉपीराईटेड कंटेंट केवल प्रिव्यू के लिए ही रखा जाये.
इसमें गूगल के एकाधिकार की बात कहाँ से आ जाती है?
गूगल, प्रकाशक और लेखक संघ के बीच का यह समझौता अगर लागू हो जाता है तो किताबों की दुनिया में गूगल बादशाह बन जाएगा। लाखों, करोड़ों किताबें उसकी इजारेदारी और स्वामित्व का हिस्सा बन जाएंगी और यह सूचना क्रांति की अब तक की सबसे भयावह जनविरोधी घटना होगी। इस तरह की इजारेदारी के खिलाफ आम लोगों को जाग्रत किया जाना चाहिए। किताबें हम सबकी हैं उन्हें किसी कारपोरेट घराने की संपदा में तब्दील नहीं करने दें।
यह आप कैसे कह सकते हैं? सिर्फ अपनी सर्च साईट पर हर पुस्तक के कुछ पृष्ठ अवलोकनार्थ रखने से उनपर गूगल का स्वामित्व कैसे हो जायेगा????
और जो किताबें कॉपीराइट बाहर हैं वे तो वैसे भी गूगल के साथ दूसरी साइटों पर भी पहले से ही उपलब्ध हैं.
यह चिंता का विषय है। लेकिन अन्ततोगत्वा इससे नुकसान तो गूगल को ही होगा।
ReplyDeleteवैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।
bhai kisi bhi company ke liye yah baat bhut he durbhagyapurn hai..iska virodh hona lazmi hai..
ReplyDeleteसंजय जी पहले तो मै आपको बधाई देता हु इस शुभ कार्य के लिये जो आपने हम जैसे लोगो को एक मंच दिया खुलकर अपना दर्द बया करने को ...आप का प्रयाश जारी रहे यही हमारी शुभकामना है ...
ReplyDelete