बाल सखा क्यो भूल गए॥मुझे॥
वह बचपन का खेल॥
साथ हमेशा रहते थे॥
था अनोखा मेल॥
खेल कूद करते रहे॥
होती अनोखी बातें॥
मिल बात कर खाते थे॥
बात बिताती राते,,
किस्मत करवट बदला।
चले गए कुछ दूर॥
उनसे मिलाने उनके घर पहुचा॥
बोले कौन हुजूर...
बीती बातें ताज़ा करने को॥
मैंने छेदी बातें॥
अधिक समय अभी नही है...
फ़िर करना मुलाकाते॥
आशा की घथारी खुल ॥
ममता दिया उडेर ॥
बाल सखा क्यो भूल गए॥मुझे॥
वह बचपन का खेल॥
वह बचपन का खेल॥
साथ हमेशा रहते थे॥
था अनोखा मेल॥
खेल कूद करते रहे॥
होती अनोखी बातें॥
मिल बात कर खाते थे॥
बात बिताती राते,,
किस्मत करवट बदला।
चले गए कुछ दूर॥
उनसे मिलाने उनके घर पहुचा॥
बोले कौन हुजूर...
बीती बातें ताज़ा करने को॥
मैंने छेदी बातें॥
अधिक समय अभी नही है...
फ़िर करना मुलाकाते॥
आशा की घथारी खुल ॥
ममता दिया उडेर ॥
बाल सखा क्यो भूल गए॥मुझे॥
वह बचपन का खेल॥
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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर