यह कविता मह्जाल के श्री सुरेश चिपलूनकर साहब को सादर समर्पित
असहाय गरीब मरैं भूखे, राशन कै काला बाजारी ॥
औ मौज करें प्रधान माफिया , कोटेदारों अधिकारी ॥
भष्टाचारी अपराधिन से, कइसे ई देश महान बची।
सरकारी गुंडन से बंधू, बोलो कैसे जान बची ॥
जब गुंडे , अपराधी, हत्यारे, देश कै नेता बनी जई हैं ।
भष्टाचारी बेईमान घोटाले बाज विजेता बनी जई हैं॥
फिर विधान मंडल औ संसद, कै कइसे सम्मान बची।
सरकारी गुंडन से बंधू, बोलो कैसे जान बची ॥
अब देश के अन्दर महाराष्ट्र, यूपी-बिहार कै भेदभाव।
ई धूर्त स्वार्थी नेता करते, देशवासीयों में दुराव॥
कैसे फिर देश अखण्ड रही, औ कइसे राष्ट्रीय गान बची ।
सरकारी गुंडन से बंधू , बोलो कैसे जान बची॥
रक्षा कै जिन पर भार वही, अब भक्षक औ बटमार भये।
का होई देश कै भइया अब, जब चोरै पहरेदार भये॥
कैसे बची अस्मिता जन की , कइसे आन औ मान बची।
सरकारी गुंडन से बंधु , बोलो कैसे जान बची॥
देश कै न्यायधीशौ शामिल, हैं पी .एफ. घोटाले मा।
नहा रहे हैं बड़े-बड़े अब, रिश्वत कै परनाले मा॥
जब संविधान कै रक्षक भटके, कइसै न्याय संविधान बची।
सरकारी गुंडन से बन्धु, बोलो कैसे जान बची॥
साध्वी औ शंकराचार्य के, भेष में छिपे आतंकी ।
लेफ्टिनेंट कर्नल बनकर, विध्वंस कर रहे आतंकी ॥
आतंकी सेना कै जवान ? फिर कैसे हिन्दुस्तान बची।
सरकारी गुंडन से बन्धु ,बोलो कैसे जान बची॥
मठाधीश कै चोला पहिने, देश मा आग लगाय रहे।
मानव समाज मा छिपे भेडिये , हिंसा कै पाठ पढाय रहे॥
नानक चिश्ती गौतम की धरती, कै कइसै पहचान बची।
सरकारी गुंडन से बन्धु, बोलो कैसे जान बची॥
बलिदानी वीर जवानन कै, अब कइसै सच सपना होई।
नेहरू गाँधी अशफाक औ सुभाष , कै कइसै पूर संकल्पना होई ॥
नन्हे मुन्नों के होठन पर, फिर कैसे मुस्कान बची।
सरकारी गुंडन से बन्धु, बोलो कैसे जान बची॥
मोहम्मद जमील शास्त्री
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--- संजय सेन सागर