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लो क सं घ र्ष !: अनगिनत नाम बंधन के


नियति ,कर्म या भाग्य ईश,
अनगिनत नाम बंधन के।
अनचाहे ही अनुबंधित,
है सारे जीव जगत के ॥

यह धरा स्वर्ग हो जाए,
क्या मानव जी पायेगा ।
पतझड़ में कलिका फूले ,
क्या सम्भव हो पायेगा ॥

पुष्पों को तोड़ पुजारी ,
साधना सफल करता है।
पाषाण ह्रदय का मन भी,
क्या उसे ग्रहण करता है॥

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

Comments

  1. बहुत खूब लिखा है दोस्त....इसी तरह सहयोग बनाये रखें...!!!
    संजय सेन सागर

    ReplyDelete

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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