मै तो एक फंटूस हूँ ॥
उस जाडे की पूस हूँ॥
जिसको देख सिकुड़ जाते सब॥
उस गुर्खुल का टूट हूँ॥
कोई कार्तिक का कुत्ता कहता॥
कोई बेल का काँटा॥
मुझी देख हुडदंग है करते॥
मारे लावेदा चांटा॥
मै खेतो का धोख जो लगता॥
लोगो का जुलूश हूँ॥
कुत्ते बिल्ली भौ - भौ करते॥
लोग हमें दौडाते है॥
ईट मारते मेरे ऊपर॥
ओ हंसते हमें रुलाते है॥
अपनी माँ के ममता का ॥
फ़िर भी सही सपूत हूँ॥
उस जाडे की पूस हूँ॥
जिसको देख सिकुड़ जाते सब॥
उस गुर्खुल का टूट हूँ॥
कोई कार्तिक का कुत्ता कहता॥
कोई बेल का काँटा॥
मुझी देख हुडदंग है करते॥
मारे लावेदा चांटा॥
मै खेतो का धोख जो लगता॥
लोगो का जुलूश हूँ॥
कुत्ते बिल्ली भौ - भौ करते॥
लोग हमें दौडाते है॥
ईट मारते मेरे ऊपर॥
ओ हंसते हमें रुलाते है॥
अपनी माँ के ममता का ॥
फ़िर भी सही सपूत हूँ॥
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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर