मैंने दो दिन पहले एक लेख पोस्ट करी थी जिसके मज़मून का इरादा यह था कि क्या मुसलमान धोखेबाज़ होते हैं? जैसा कि आजकल मिडिया और इस्लाम के आलोचक यह प्रोपगैंडा फैला रहें हैं. वह कुछ ऐसा ही करते जा रहें हैं कि इस्लाम ही है जो दुनिया के लिए खतरा है, यह जाने बिना यह समझे बिना हालाँकि सबसे मज़ेदार बात तो यह है कि वे सब इस्लाम का विरोध इसलिए तो कतई भी नहीं करते उन्हें इस्लाम के बारे में मालूमात नहीं है बल्कि इसलिए कि पश्चिम देश (जो कि इस्लाम के दुश्मन हैं) के अन्धानुकरण के चलते विरोध करते हैं, आज देश में जैसा माहौल है और जिस तरह से अमेरिका और यूरोप आदि का अन्धानुकरण चल रहा है, ऐसा लगने लगा है कि हम भारतीय अपनी संस्कृति को भूलते ही जा रहे हैं और यह सब उन लोगों की साजिश के तहत होता जा रहा है. पूरी तरह से पश्चिमी सभ्यता को आत्मसात करने की जो होड़ लगी है, उससे निजात कैसे मिले? उसे कैसे ख़त्म किया जाये? उसे कैसे रोका जाये? मुझे लगता है कि भारत में मुस्लिम ही ऐसे हैं जो अब पश्चिम की भ्रष्ट सांस्कृतिक आक्रमण के खिलाफ बोल रहें हैं और उससे अभी तक बचे हुए हैं. वरना बाक़ी भारतीय (जो गैर-मुस्लिम हैं) अमेरिका आदि देशों की चाल में आसानी से फंसते चले जा रहे हैं.
खैर, ऊपर मैंने जो सवाल उठाये हैं उन्हें आप अपने अंतर्मन से पूछिये? आप सोचें कि इनके क्या जवाब हो सकते हैं? वैसे मेरे दिमाग में एक जवाब है हम अपने हिन्दू भाईयों से यह गुजारिश करते हैं कि वे वेदों को पढें, पुराणों को पढें क्यूंकि जहाँ तक मुझे अपने अध्ययन से मालूम चला है कि केवल वेद ही ऐसी किताब है जिसे हमारे हिन्दू भाई ईश्वरीय किताब कहते हैं. और अगर यही है तो मेरा कहना है कि जो भी किताब वेद के खिलाफ़ जाती है उसका बहिस्कार करें, उसे बिलकुल भी न पढें. मैं इधर बैठ कर यह दावे के साथ कह सकता हूँ कि कुरान और वेद की शिक्षाएं ज़्यादातर सामान ही हैं.
मैं ये नहीं कहता कि हमारे और आपके बीच इख्तिलाफ़ (विरोधाभास) नहीं हैं. इख्तिलाफ़ तो है. लेकिन आज हम आपस में उन चीज़ों को आत्मसात करें जो हममे और आपमें यकसां (समान) हों. समानताओं पर आओ. विरोध की बातें कल डिस्कस करेंगे.
अल्लाह त-आला अपनी आखिरी और मुक़म्मल किताब में फरमाता है: "आओ उस बात की तरफ जो हममे और तुममे यकसां (समान) हैं. (ताअलौ इला कलिमती सवा-इम बैनना व बैनकुम)" अध्याय ३, सुरह आलम-इमरान आयत (श्लोक) संख्या ६३
वैसे मैं ये पोस्ट लिखी है अपने एक ब्लॉग मित्र सुरेश चिपलूनकर से उन सवालों के जवाब में जिसमें उन्होंने कहा कि
"सलीम भाई, द्विवेदी जी की बात को आगे बढ़ाईये और इस बात पर एक पोस्ट कीजिये कि क्या मुस्लिम धर्म, दूसरे धर्मों को पूर्ण आदर-सम्मान देता है? धर्म परिवर्तन अक्सर हिन्दू से ईसाई या हिन्दू से मुस्लिम होता है (अधिकांशतः लालच या डर से) तो विश्व में सर्वाधिक जनसंख्या होने के बावजूद ईसाईयों और मुस्लिमों को अन्य धर्मों से धर्म-परिवर्तन करवाने की आवश्यकता क्यों पड़ती है? ऐसा क्यों होता है कि जहाँ भी मुस्लिम बहुसंख्यक होते हैं, वहाँ अल्पसंख्यकों को उतने अधिकार नहीं मिलते जितने भारत में अल्पसंख्यकों को मिले हुए हैं? मुस्लिम बहुल देशों में से अधिकतर में "परिपक्व लोकतन्त्र" नहीं है ऐसा क्यों है? सवाल तो बहुत हैं भाई…" और द्विवेदी जी कि टिपण्णी क्या थी "हर कोई अपने धर्म को सब से अच्छा बताता है। यह आप का मानना है कि इस्लाम सब से अच्छा धर्म है। दूसरे धर्मावलंबी इस बात को कतई मानने को तैयार न होंगे। हमें अपने धर्म को श्रेष्ठ मानने का पूरा अधिकार है। लेकिन दूसरे व्यक्ति के विश्वासों का आदर करना भी उतना ही जरूरी है."
सुरेश भाई, सबसे पहले तो मैं यह आपको बताना चाहता हूँ कि यह इस्लाम धर्म है ना कि मुस्लिम धर्म. इस्लाम धर्म के अनुनाईयों को मुस्लिम (आज्ञाकारी) कहते हैं. इस्लाम का शाब्दिक अर्थ होता है 'शांति' और इसका एक और अर्थ होता है 'आत्मसमर्पण' और इस्लाम धर्म को मानने वालों को मुस्लिम कहते हैं, उर्दू या हिंदी में मुसलमान कहते हैं.
अल्लाह त-आला फरमाते हैं:
"यदि तुम्हारा रब चाहता तो धरती पर जितने भी लोग हैं वे सब के सब ईमान ले आते, फिर क्या तुम लोगों को विवश करोगे कि वे मोमिन हो जाएँ? (अर्थात नहीं)" सुरह १०, सुरह युनुस आयत (श्लोक) संख्या ९९
"कहो: हम तो अल्लाह पर और उस चीज़ पर ईमान लाये जो हम पर उतारी है और जो इब्राहीम, इस्माईल, इसहाक और याक़ूब और उनकी संतान पर उतरी उसपर भी. और जो मूसा और ईसा और दुसरे नबियों को उनके रब के ओर से प्रदान हुईं (उस पर भी हम इमान रखते हैं) हम उनमें से किसी को उस सम्बन्ध में अलग नहीं करते जो उनके बीच पाया जाता है और हम उसी के आज्ञाकारी (मुस्लिम) हैं." सुरह ३, सुरह आले इमरान, आयत (श्लोक) ८४
"धर्म के विषय में कोई ज़बरदस्ती नहीं. सही बात, नासमझी की बात से अलग हो कर स्पष्ट हो गयी है..." सुरह २, सुरह अल-बकरह, आयत २५६
इस्लाम अल्लाह त-आला (ईश्वर) के नज़दीक सबसे अच्छा दीन (धर्म) है, अल्लाह त-आला के नज़दीक पूरी दुनिया के मनुष्य उसी के बन्दे और पैगम्बर हज़रात आदम (अलैहिस्सलाम) की औलाद हैं.
अल्लाह त-आला फरमाते हैं:
"ऐ लोगों, हमने तुम्हें एक पुरुष और एक स्त्री से पैदा किया और तुम्हें बिरादरियों और क़बीलों का रूप दिया, ताकि तुम एक दुसरे को पहचानों और वास्तव अल्लाह के यहाँ तुममे सबसे प्रतिष्ठित वह है जो म\तुममे सबसे अधिक दर रखता हो, निश्चय ही अल्लाह सबकुछ जानने वाला, ख़बर रखने वाला है." सुरह ४९, सुरह अल-हुजुरात, आयत (श्लोक) १३
ऐसी ही सैकणों आयतें अर्थात श्लोक कुरआन में मौजूद हैं. कुल मिला कर लब्बो-लुआब (सारांश) यह है कि इस्लाम धर्म के अनुनायी जिन्हें मुस्लिम (आज्ञाकारी) कहा जाता है को अल्लाह की तरफ से हिदायत दी गयी है कि वह दीगर मज़ाहब के लोगों के साथ आदर का भाव रक्खो. हज़रत मोहम्मद (स.अ.व.) ने हमें यह ताकीद किया है कि सभी धर्मों के अनुनायीयों को उनके धर्म को मानने की आज़ादी है. साथ ही अल्लाह त-आला अपनी किताब में यह भी फ़रमाता है कि मैंने तुमको जो सत्य मार्ग बताया है उसे फैलाओ और उन्हें बताओ जो नहीं जानते, यह तुम पर फ़र्ज़ (अनिवार्य) है.
ये मुशरिक़ (विधर्मी) क़यामत के दीन हमारी गिरेबान पकडेंगे और हमसे (मुस्लिम से) पूछेंगे कि अल्लाह त-आला ने तुम्हें हिदायत (आदेश और सत्यमार्ग) दे दिया था तो तुम लोगों ने हमें क्यूँ नहीं बताया. और यह भी कहा गया कि अगर किसी मुस्लिम के पड़ोस में कोई मुशरिक़ रहता है और वह उसी हालत में मृत्यु को प्राप्त होता है तो क़यामत के दीन अल्लाह त-आला मुशरिक़ से पूछेंगे कि तुम सत्यमार्ग पर क्यूँ नहीं चले जबकि हमने आखरी पैगम्बर के ज़रिये और आखिर किताब के ज़रिये तुम्हे हिदायत का रास्ता बतला दिया था. तो वह मुशरिक़ कहेगा कि ऐ अल्लाह, मेरे मुस्लिम पडोसी ने मुझे नहीं बताया. और अल्लाह त-आला उस मुशरिक़ को जहन्नम कीई आग में डाल देगा. इसी तरह अल्लाह त-आला उस मुस्लिम पडोसी से पूछेंगे कि तुमने यह जानते हुए कि इस्लाम की दावत फ़र्ज़ है तुम पर फिर भी अपने पडोसी को क्यूँ नहीं बताया? और उस मुसलमान को भी जहन्नम की आग में डाल देंगे.
यह कहना कि जहाँ भी मुस्लिम बहुसंख्यक हैं वहाँ अल्पसंख्यक (दुसरे धर्म के लोगों) को अधिकार नहीं मिलते, बिलकुल भी गलत है, इस्लाम के प्राथमिक स्रोतों (कुरआन और सुन्नत) में यह कहीं भी नहीं लिखा है कि दुसरे धर्म के लोगों को उनके रहन-सहन, धार्मिक आस्था और विश्वाश के प्रति गलत व्यवहार करे, बल्कि यह हिदायत ज़रूर है कि उन्हें सत्य मार्ग का रास्ता बताएं.
रही बात लोकतंत्र के सवाल का तो इसका जवाब थोडा बड़ा है फ़िलहाल इतना मैं बताना चाहूँगा कि हज़रत मुहम्मद (स.अ.व.) के ज़माने में भी ख़लीफा लोगों का चुनाव होता था. सभी को अधिकार प्राप्त थे.
मैं अपनी पोस्ट कुरआन की इस बात (अध्याय ३, सुरह आलम-इमरान आयत (श्लोक) संख्या ६३) पर ख़त्म करना चाहता हूँ कि "आओ उस बात की तरफ जो हममे और तुममे यकसां (समान) हैं."
अल्लाह (ईश्वर) हमें सत्यमार्ग पर चलने की हिदायत दे.
-सलीम खान
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ReplyDeleteजबसे आतंकवादी गुटों ने पैर पसारना शुरू किया है, शेष दुनिया ने मुसलामानों को ही आतंकवाद का चेहरा मान लिया है. अब तो अपने देश में भी लोग मुसलामानों पर शक करने लगे हैं. माना की लगभग सभी आतंकवादी मुसलमान हैं पर उन मुट्ठी भर लोगों की वजह से पूरी कॉम को बदनाम करना कहाँ की इंसानियत है. मुझे लगता है की ये पश्चिमी देशों की सोची समझी साजिश के तहत हो रहा है जहाँ इंसान को इंसान न रहने दिया जाये बल्कि उस से उसके मज़हब, कॉम की बिना पर नफरत किया जाये. पर शायद वो भूल रहे हैं की सिर्फ हिन्दुस्तान ही ऐसा देश है जहाँ मंदिर के घंटे और मस्जिद में अजान एक साथ सुनाई देते हैं.
ReplyDeleteसूरा ४,आयत-१२६--"जो कुछ आकास और जोकुछ धरती में है,वह अल्लाह का ही है और अल्लाह हर चीज को घेरे हुए है।"
ReplyDeleteतथा
ईशोपनिषद-१-"ईशावाश्यम इदं सर्वं,यद किन्चित जगत्याम जगत"
में ताल्मेल करें, कोई फ़र्ख नहीं, एक ही कथन है।
बात कथनी-करनी के फ़र्ख की होती है।
इंसानी फितरत,किसी जाती पे निर्भर नहीं होती..! आपने बहोत खूब लिखा है...'धर्म' की प्राचीन भाषामे व्याख्या है," धारण करो सो धर्म"..इंसान हो तो इंसानियत धारण करो...या गर एनी मतलब लेना हो,तो, 'धर्म' इस शब्द का इस्तेमाल,' कुदरत'के कानून, इस तरह का लिया गया है..जो हरेक लिए एक जैसे हैं..दुनिया में चाहे कहीं जाएँ, आग में हाथ डालेंगे,तो वो जलेगा..बस..! इसका किस कदर विपर्यास हो गया...!धर्म नहीं अधर्म हो गया..!
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ReplyDelete@सही कहा अमजद भाई हिन्दुस्तान ही एक ऐसा देश है जहाँ मस्जिद से अज़ान और मन्दिर के घंटे एक साथ सुनाई देते हैं पर आप उन्ही मंदिरों को तोड़ डालते हैं क्यो? क्यों कि आप के हिसाब से मूर्तिपूजा ठीक नही है. कितने लोगों को ज़बरदस्ती मुसलमान बनाया गया इसके लिए इतिहास की किताबें पढ़िए अपने को बेहतर समझ पाएँगे. जानवरों को मारते समय कितना तड़्पाते है आप लोग. चार शादी करते है जब चाहे तलाक देते है अपनी ही बहनो से शादी कर लेते है आप लोग क्या यह ठीक है?
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