बीते गुरुवार (यौमुल खमीस) को दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायधीश एपी शाह और न्यायधीश एस मुरलीधर की पीठ ने यह फ़ैसला सुना दिया कि समलैंगिकता अब अपराध नहीं और आपसी सहमती से इस प्रकार के बनाये गए सम्बन्ध में कोई बात गैर-क़ानूनी नहीं. (कु)तर्क यह था न्यायधीशों का कि "भेदभाव समानता के खिलाफ़ है और यह फ़ैसला समानता को मान्यता देता है जो हर व्यक्ति को एक गरिमा प्रदान करेगा". कोर्ट के इस फ़ैसले पर जिस प्रकार से नकारात्मक प्रतिक्रियाएं आईं वह लाज़मी थी.
वैसे एक बात मुझे पहली बार अच्छी लगी कि भारत की दो बड़ी कौमें हिन्दू व मुसलमानों ने एक जुट हो कर इस फैसले का विरोध किया (मेरा मानना है कि अगर इसी तरह अमेरिका और पश्चिम का अन्धानुकरण को साथ मिलकर नकारा जाता रहा तो वह दिन दूर नहीं कि भारत जल्द ही विश्वशक्ति बन जायेगा).
भाजपा के एक बड़े नेता मुरली मनोहर जोशी का बयान काबिले तारीफ रहा, उन्होंने कहा कि न्यायपालिका से बड़ी संसद है अर्थात संसद न्यायपालिका से उपर है. सिर्फ एक या दो न्यायधीश (शायेद वह समलैंगिक ही हों) सब कुछ तय नहीं कर सकते हैं.
बाबा रामदेव ने कहा कि इस प्रकार तो कुल ही नष्ट हो जायेंगे. अगर सरकार नहीं चेती तो आन्दोलन किया जायेगा"
सबसे बड़ी बात तो यह है कि यह फ़ैसला भारतीय संस्कृति के खिलाफ़ तो है ही इस्लाम के नज़र में भी हराम है. कुरान में जिक्र है कि एक ज़माने में हज़रत लूत की कौम थी, और वे लोग आपस में एक ही लिंग के प्रति आकर्षित थे. अल्लाह के आदेश पर हज़रत लूत ने अपनी कौम को समझाया और उन्हें यह शिक्षा देने की कोशिश की कि यह अप्राकृतिक है और अल्लाह के नज़दीक खतरनाक गुनाह जिसका अजाब भयानक होगा. लेकिन उनकी कौम ने नहीं माना और अल्लाह ने उन पर पत्थरों की बारिश करके पूरी की पूरी कौम को ख़त्म कर दिया. (जिस तरह से देह व्यापार या अप्राकृतिक यौन संबंधों को वैध ठहराने वाले यह सबक ले सकते है कि एड्स जैसी लाइलाज खतरनाक बीमारी के रूप में ईश्वर इन्सान के सामने अपनी निशानियाँ भेज देता है)
अमेरिका का अन्धानुकरण इस प्रकार कि अपने देश के कानून में ही बदलाव किया जा रहा है...कोर्ट ने १४९ साल पुराने क़ानून के उन प्रावधानों को बुनियादी अधिकारों के खिलाफ बताया है जिनके तहत समलैंगिकता अपराध की श्रेणी में आता था. न्यायधीशों ने भारत के संविधान की धरा ३७७ को ही गलत करार दिया. हालाँकि पीठ ने यह भी साफ कर दिया है कि समलैंगिकता को अपराध मानने वाली भारतीय दंड संहिता की धारा ३७७, असहमति अवयस्कता और अप्राकृतिक यौन सम्बन्ध के मामले जारी रहेंगे. आईपीसी की धाराएँ इसे अपराध मानती हैं और कोर्ट नहीं मानता यह दोगलापन क्यूँ?
आखिर बुनियादी अधिकार क्या क्या है? यही कि समय समय इसे बदला जाता रहे. आज भी बुनियादी अधिकार रोटी कपडा और मकान ही है. आज भी देश की ७०% जनता गरीब है उसे सलैंगिकता से कोई लेना देना नहीं. उन्हें रोटी चाहिए, मकान चाहिए और चाहिए पहनने को कपडा...
समलैंगिकता अगर अप्राकृतिक नहीं होती तो पूरी दुनिया में किसी ना किसी जानवर में यह आदत ज़रूर होती.
वैसे अभी यह फैसला दिल्ली हाई कोर्ट ने दिया है इसलिए केवल दिल्ली की सीमा के अन्दर ही यह क़ानून लागु होगा...जब तक की देश के अलग हिस्सों में भी ऐसा फैसला नहीं आ जाता.(अगर प्रतिशत की बात करें तो आंकडों ? के मुताबिक (पता नहीं कहाँ से आंकडें आ गए) २५ लाख से ज़्यादा लोग समलैगिक हैं इस प्रकार मात्र 0.२५% ही लोग इस श्रेणी में आते हैं, अगर कोर्ट इतने कम (लगभग नगण्य) लोगों की मुलभुत ज़रूरतों का ख्याल आ रहा है तो देश ७०% गरीब जनता के लिए वह क्या फैसला दे रही है. करोडों अशिक्षित जनता के बारे में क्या फैसला कर रही है . १५% से ज़्यादा मुसलमानों की सुरक्षा और मुलभुत सुविधाओं के बारे में क्या फैसला कर रही है. यहाँ कुछ नहीं होने वाला सिवाय अंग्रेजों की गुलामी और अमेरिका के कल्चर को चाट चाट कर अपने अन्दर समाहित करने के.)
यह बहुत ही शर्मनाक बात है कि जिस देश के युवा को ग़रीबी, अशिक्षा बेरोजगारी से जूझना चाहिए. वह समलैंगिकता की बात कर रहे हैं. कोर्ट का यह फैसला निहायत ही अप्राकृतिक है और किसी भी तरह से प्राकृतिक नहीं है. मैं फिर कह रहा हूँ कि अगर प्राकृतिक होता तो जानवर में भी ऐसी प्रवृत्ति दिखाई देती. यह समाज में गन्दगी फ़ैलाने वाला फ़ैसला है. किसी भी धर्म गर्न्थों में ऐसे संबंधों का ज़िक्र नहीं है. ऐसे चीज़ों को मान्यता देना मेरे हिसाब से एक प्रतिशत भी सही नहीं होगा. इसे बदलाव की बयार बताने वाले लोगों की सामाजिक निंदा होनी चाहिए. इसे खुलेआम स्वीकार करने का मतलब है कि मुसीबत को बढावा देना. अन-नैचुरल सेक्स संबंधों से एच.आई.वी. एड्स के साथ साथ कई सामाजिक संक्रमण पैदा होगा जो किसी भी हाल में उचित नहीं है. मेरे हिसाब से इन चीज़ों को बढ़ावा नहीं देना चाहिए.
लॉर्ड मैकाले ने १८६० में आईपीसी की धारा ३७७ का मसौदा तैयार किया था. इसमें अप्राकृतिक यौन संबंधों पर दस साल तक की सज़ा का प्रावधान किया गया था. मेडिकल साइंस तो अभी तक इस मामले में निरपेक्ष है मगर यह तय है कि यह अप्राकृतिक ही है.
यह फैसला अल्लाह के क़ानून और देश के क़ानून के खिलाफ है...मैं चैलेन्ज के साथ कह सकता हूँ कि अगर देश भर में वोटिंग करा ली जाये तो उन लोगों को पता चल जायेगा जो लोग इसे सही मान रहें है... ऐसी कृत्य के लोग मानसिक रूप से बीमार होते हैं और उनके लिए क़ानून की नहीं मनोचिकित्सक को दिखाने की ज़रुरत है.इस क़ानून को वापस ले लेना चाहिए. कोर्ट का फ़ैसला अप्रत्याशित है. यह अमेरिका की गहरी साजिश है. एशियन कल्चर के विरुद्ध है. ईश्वर के आदेश के विरुद्ध जाने-पर तो इंसानी नस्ल ही ख़त्म हो जायगी. लोग मुसीबत में गिरफ्तार हो जायेंगे. इस फैसले पर विचार करने की ज़रुरत है. ईश्वर ने इन्सान को जिस मकसद के लिए पैदा किया है उसके खिलाफ़ यह खुली बगावत है अर्थात ईश्वर के क़ानून के खिलाफ बगावत. यह चन्द बाकी लोग जो कोर्ट में ईश्वर के क़ानून को चुनौती दे रहे है एक न एक दिन बड़ी मुसीबत में गिरफ़्तार होंगे. ईश्वर (अल्लाह) ने मर्द और औरत को एक दुसरे का लिबास बताया है, और एक दुसरे के सुकून का ज़रिया. लेकिन अगर यह हुआ है तो यह तय है कि समाज में अराजकता बढेगी और तलाक़, संबंधों के टूटने का चलन बढेगा. (अभी तक तो पत्नी अपने पति से इसलिए झगडा करती थी कि उसके पति का किसी गैर-औरत से सम्बन्ध है लेकिन अब तो उसे अपने पति को अपने दोस्तों से भी दूर रखना पड़ेगा और निगाह रखनी पड़ेगी कि वह किस मर्द से मिल रहा है, औरतों से वे बाद में निबटेंगी. यह एक नयी मुसीबत आएगी.)
और हाँ, एक तर्क है जवाब दीजिये आप... अगर आपके पास हो तो. जिस तरह समाज का एक तबका यह मानता है कि बाकी उसकी बात माने और अमल करें तो समलैंगिक लोगों की भी यही मंशा ज़रूर होगी कि सभी समलैंगिकता का समर्थन करें, उसे जाने और माने भी. चलो ठीक है लेकिन वे और आप जवाब दें फिर बच्चे कैसे पैदा होंगे, इंसानी नस्ल आगे कैसे बढ़ेगी??? है कोई जवाब...???
यह फैसला भारतीय संस्कृति और सभ्यता की धज्जियाँ उड़ा रहा है.
waah saleem bhai bahut achcha mazmoon aapne lika
ReplyDeletehomo sex ya lebi sex yeh insaniyat ke
aam par ek dhabba hai jo upar wala aise logo
par laanat bhejte hai .....nafrat hai aise kanoon
banane wale se nafrat hai aise logo se
bahut khoob
appka dost
aleem azmi
I agree homo sex is not natural
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