कारगिल. आज कारगिल में शांति है। दस साल पहले यहां युद्ध के समय लोगों ने अपने घरों तक में बंकर बना लिए थे। अब ये बंकर स्टोर रूम बन गए हैं। मास्टर रसूल ने युद्ध के दौरान अपने घर पर बंकर बनाया था। अब वह बंकर स्टोर के तौर पर इस्तेमाल होता है। उन्हें विश्वास है कि कारगिल में आगे भी शांति रहेगी और बंकर का उपयोग छिपने के लिए फिर कभी नहीं करना पड़ेगा। सेना की 121वीं ब्रिगेड के कमांडर ब्रिगेडियर अमरजीत सिंह ने भी ऐसा ही भरोसा जताते हुए कहा कि अब कभी दूसरा कारगिल नहीं होगा।
कारगिल में कई स्कूलों में भी बंकर बने हुए हैं। एमपीएस स्कूल के प्रिंसिपल मोहम्मद खासगी के अनुसार गोले बरसने के समय वे स्कूल के बच्चों को बंकर में भेज देते थे। अब परीक्षा के समय ये बंकर काम आते हैं। युद्ध के दौरान लड़ाई में केवल सेना ही नहीं लड़ी बल्कि कारगिल, लेह और आसपास के गांवों के बा¨शदों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। हर गांव से 10-20 लोगों की टोली सैनिकों की मदद के लिए गई थी। मोहम्मद हसन के अनुसार, वे अपने साथियों के साथ सैनिकों को राशन पहुंचाने जाते थे।
इसी तरह, सेना भी स्थानीय लोगों का काफी ख्याल रखती है। ब्रिगेडियर सिंह के मुताबिक, यहां के लोगों में आक्रोश नहीं है। इस वजह से यहां घुसपैठ नहीं होती या अलगाव की भावना पैदा नहीं होती। उनकी ब्रिगेड कारगिल में चार स्कूल भी चलाती है। इसके अलावा महिलाओं और मंदबुद्धि बच्चों के लिए भी विशेष प्रोजेक्ट चलाए जा रहे हैं।
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कारगिल में कई स्कूलों में भी बंकर बने हुए हैं। एमपीएस स्कूल के प्रिंसिपल मोहम्मद खासगी के अनुसार गोले बरसने के समय वे स्कूल के बच्चों को बंकर में भेज देते थे। अब परीक्षा के समय ये बंकर काम आते हैं। युद्ध के दौरान लड़ाई में केवल सेना ही नहीं लड़ी बल्कि कारगिल, लेह और आसपास के गांवों के बा¨शदों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। हर गांव से 10-20 लोगों की टोली सैनिकों की मदद के लिए गई थी। मोहम्मद हसन के अनुसार, वे अपने साथियों के साथ सैनिकों को राशन पहुंचाने जाते थे।
इसी तरह, सेना भी स्थानीय लोगों का काफी ख्याल रखती है। ब्रिगेडियर सिंह के मुताबिक, यहां के लोगों में आक्रोश नहीं है। इस वजह से यहां घुसपैठ नहीं होती या अलगाव की भावना पैदा नहीं होती। उनकी ब्रिगेड कारगिल में चार स्कूल भी चलाती है। इसके अलावा महिलाओं और मंदबुद्धि बच्चों के लिए भी विशेष प्रोजेक्ट चलाए जा रहे हैं।
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--- संजय सेन सागर