बहुत समय के बाद आज॥
पूरब से पछुआ डोली है॥
अनजाने में य भूल से॥
मुंडेर पे कोयल बोली है॥
सुबह सुबह जब रवि ने ..
आँगन में किरण बिखेर दिया॥
हँसा गुलाब खिल खिला कर॥
saरी सुगंध उडेर दिया॥
दीर्घ काल से रूठी मैना॥
फ़िर तोता से बोली है॥
बहुत समय के बाद आज॥
पूरब से पछुआ डोली है॥
सूखी कलियाँ हरी हुयी है॥
उत्सव का मौसम आया है॥
ममता से झुक गई सखा है॥
गगन नीर टपकाया है॥
आँखे भर गई देख प्रीतम को॥
उनकी सूरत भोली है॥
बहुत समय के बाद आज॥
पूरब से पछुआ डोली है॥
नभ से पुष्प की वर्षा होती ॥
मधुर गीत नदियों ने गा ली॥
मौसम मतवाला हंस के बोला॥
तेरी दुःख की बदली जा ली॥
सूखी नैना बहुत दिनों पर॥]
फ़िर से पलके खोली है॥
बहुत समय के बाद आज॥
पूरब से पछुआ डोली है॥
पूरब से पछुआ डोली है॥
अनजाने में य भूल से॥
मुंडेर पे कोयल बोली है॥
सुबह सुबह जब रवि ने ..
आँगन में किरण बिखेर दिया॥
हँसा गुलाब खिल खिला कर॥
saरी सुगंध उडेर दिया॥
दीर्घ काल से रूठी मैना॥
फ़िर तोता से बोली है॥
बहुत समय के बाद आज॥
पूरब से पछुआ डोली है॥
सूखी कलियाँ हरी हुयी है॥
उत्सव का मौसम आया है॥
ममता से झुक गई सखा है॥
गगन नीर टपकाया है॥
आँखे भर गई देख प्रीतम को॥
उनकी सूरत भोली है॥
बहुत समय के बाद आज॥
पूरब से पछुआ डोली है॥
नभ से पुष्प की वर्षा होती ॥
मधुर गीत नदियों ने गा ली॥
मौसम मतवाला हंस के बोला॥
तेरी दुःख की बदली जा ली॥
सूखी नैना बहुत दिनों पर॥]
फ़िर से पलके खोली है॥
बहुत समय के बाद आज॥
पूरब से पछुआ डोली है॥
Comments
Post a Comment
आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर