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पूरब से पछुआ डोली है॥

बहुत समय के बाद आज॥
पूरब से पछुआ डोली है॥
अनजाने में य भूल से॥
मुंडेर पे कोयल बोली है॥
सुबह सुबह जब रवि ने ..
आँगन में किरण बिखेर दिया॥
हँसा गुलाब खिल खिला कर॥
saरी सुगंध उडेर दिया॥
दीर्घ काल से रूठी मैना॥
फ़िर तोता से बोली है॥

बहुत समय के बाद आज॥
पूरब से पछुआ डोली है॥

सूखी कलियाँ हरी हुयी है॥
उत्सव का मौसम आया है॥
ममता से झुक गई सखा है॥
गगन नीर टपकाया है॥
आँखे भर गई देख प्रीतम को॥
उनकी सूरत भोली है॥


बहुत समय के बाद आज॥
पूरब से पछुआ डोली है॥

नभ से पुष्प की वर्षा होती ॥
मधुर गीत नदियों ने गा ली॥
मौसम मतवाला हंस के बोला॥
तेरी दुःख की बदली जा ली॥
सूखी नैना बहुत दिनों पर॥]
फ़िर से पलके खोली है॥
बहुत समय के बाद आज॥
पूरब से पछुआ डोली है॥

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा

डॉ.प्रभुनाथ सिंह भोजपुरी के अनन्य वक्ता थे -केदारनाथ सिंह

डॉ.प्रभुनाथ सिंह के स्वर्गवास का समाचार मुझे अभी चार घंटा पहले प्रख्यात कवि डॉ.केदारनाथ सिंह से मिला। वे हावड़ा में अपनी बहन के यहां आये हुए हैं। उन्हीं से जाना भोजपुरी में उनके अनन्य योगदान के सम्बंध में। गत बीस सालों से वे अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन नाम की संस्था चला रहे थे जिसके अधिवेशन में भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित हुआ था तथा उसी की पहल पर यह प्रस्ताव संसद में रखा गया और उस पर सहमति भी बन गयी है तथा सिद्धांत रूप में इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया गया है। केदार जी ने बताया कि डॉ.प्रभुनाथ सिंह का भोजपुरी में निबंध संग्रह प्रकाशित हुआ है और कविताएं भी उन्होंने लिखी हैं हालांकि उनका संग्रह नहीं आया है। कुछ कविताएं अच्छी हैं। केदार जी के अनुसार भोजपुरी के प्रति ऐसा समर्पित व्यक्ति और भोजपुरी के एक बड़े वक्ता थे। संभवतः अपने समय के भोजपुरी के सबसे बड़े वक्ता थे। बिहार में महाविद्यालयों को अंगीकृत कालेज की मान्यता दी गयी तो उसमें डॉ.प्रभुनाथ सिंह की बड़ी भूमिका थी। वे उस समय बिहार सरकार में वित्तमंत्री थे। मृत्यु के एक घंटे पहले ही उनसे फोन से बातें हुई ...