सुन्दर स्वाथ्य जवानी थी॥
मक्खियों को नही बैठने देता था॥
शरीर पर॥
कोई सादगी से पेश आता तो ॥
सलाम करता॥
नही तो पर्छैया देखना नही ॥
पसंद था॥
घर के लोग भी नाज़ करते थे॥
हम पर और ब्यवहार ,पढाई पर भी॥
संस्कारों की नदिया का नीर ॥
था मै॥
घर का वह दीप था मै॥
जिसमे सियो तक उजाला रहता है॥
एक दिन अनजान डगर पर चला गया॥
रास्ता भटक गया॥
एक अनजान सुदरी से मुलाक़ात हो गई॥
उसकी मीठी मुस्कान से ॥
मै उसकी और आकर्षित हुआ॥
वह भी मेरे कदमो में चली आई॥
हम संग संग सावान की फुहारों॥
भीगे॥
और रंगरलिया भी मनाये॥
मनो जीवन की साडी खुशिया॥
दोनों को मिल गई हो॥
उसे बरसात के बाद ..बहुत दर्द नाक बवंडर आया॥
और हमारी उस सुन्दरता की देवी को उड़ा ले गया॥
अब न उसका संदेश आया ,,न फोन किया॥
अब आती है तो केवल उसकी याद...
बीती हुयी बात॥
हमें तो तन्हाई का आलम ले डूबा॥
क्या जीवन की लीला समाप्त कर दू...?
मक्खियों को नही बैठने देता था॥
शरीर पर॥
कोई सादगी से पेश आता तो ॥
सलाम करता॥
नही तो पर्छैया देखना नही ॥
पसंद था॥
घर के लोग भी नाज़ करते थे॥
हम पर और ब्यवहार ,पढाई पर भी॥
संस्कारों की नदिया का नीर ॥
था मै॥
घर का वह दीप था मै॥
जिसमे सियो तक उजाला रहता है॥
एक दिन अनजान डगर पर चला गया॥
रास्ता भटक गया॥
एक अनजान सुदरी से मुलाक़ात हो गई॥
उसकी मीठी मुस्कान से ॥
मै उसकी और आकर्षित हुआ॥
वह भी मेरे कदमो में चली आई॥
हम संग संग सावान की फुहारों॥
भीगे॥
और रंगरलिया भी मनाये॥
मनो जीवन की साडी खुशिया॥
दोनों को मिल गई हो॥
उसे बरसात के बाद ..बहुत दर्द नाक बवंडर आया॥
और हमारी उस सुन्दरता की देवी को उड़ा ले गया॥
अब न उसका संदेश आया ,,न फोन किया॥
अब आती है तो केवल उसकी याद...
बीती हुयी बात॥
हमें तो तन्हाई का आलम ले डूबा॥
क्या जीवन की लीला समाप्त कर दू...?
व्यर्थ के विचार दिमाग में लाने की बज़ाय , अच्छी-अच्छी कवितायें लिखना सीखो। इसी कविता को सुधार कर पुनः दोबारा लिखो। आनंद आयेगा।
ReplyDeletesahi kah rahe hai aap dr. sahab ji ,, abhee to hame bahut kuchh sikhanaa hai.. aap se to kuchh gyaan milaa mai esake liye aabhari rahugaa...
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