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गीतिका
आचार्य संजीव 'सलिल'
धूल हो या फूल
कुछ भी नहीं फजूल.
धार में है नाव.
सामने है कूल.
बात को बेबात
दे रहे क्यों तूल?
जब-जब चुने उसूल.
तब-तब मिले हैं शूल.
है अगर इंसान.
कर कुछ हसीं भूल.
तज फ़िक्र, हो बेफिक्र.
सुख-स्वप्न में भी झूल.
वह फूलता 'सलिल'
मजबूत जिसका मूल.
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गीतिका
आचार्य संजीव 'सलिल'
धूल हो या फूल
कुछ भी नहीं फजूल.
धार में है नाव.
सामने है कूल.
बात को बेबात
दे रहे क्यों तूल?
जब-जब चुने उसूल.
तब-तब मिले हैं शूल.
है अगर इंसान.
कर कुछ हसीं भूल.
तज फ़िक्र, हो बेफिक्र.
सुख-स्वप्न में भी झूल.
वह फूलता 'सलिल'
मजबूत जिसका मूल.
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जब-जब चुने उसूल
ReplyDeleteतब-तब मिले हैं शूल। यही सच्चाई है। मुझे लगता है कि शूल और फूल में एक अन्तर होता है। शूल रक्षक की भूमिका में होता है और फूल को संरक्षण की आवश्यकता होती है। इसीलिए उसूलों वाले व्यक्ति को शूल ही मिलते हैं।