कैसे गलतफहमियां और अतिआत्मविश्वास टीम इंडिया को ले डूबे, टूर्नामेंट से विदाई का बयास बनें कारणों के विश्लेषण का प्रयास...
गलतफहमी नं 1- हम सबसे बेहतर टी-20 टीम हैं।
वास्ताविकता- हां हम सबसे बेहतर टी-20 टीम थे। पिछले कुछ सालों में जब हमने टी-20 वर्ल्डकप जीता था तब, उसके बाद कई टीमों ने हमें कई मौकों पर हराया था। फिर भी हम गलतफहमी का शिकार रहे।
गलतफहमी नं 2- हमें टी-20 का सर्वाधिक अनुभव है।
वास्तविकता- पहले टी-20 वर्ल्डकप तक कोई भी टीम ठीकठाक तरीके से इस फार्मेट में खेलने का तरीका नहीं जानती थी। उसके बाद अन्य टीमों ने जहां अपने खेल में काफी सुधार किया वहीं हम लगातार इस मुगालते में रहे कि टी-20 में हम ही सबसे बेहतर हैं। यहां तक की हमने यह भी नहीं देखा कि उसके बाद दो आइपीएल सीजन हो चुके हैं इसमें काफी विदेशी खिलाड़ी खेले हैं। कई विदेशी कोचों ने यहां अनुभव प्राप्त किया है। इस बात तक को नजरअंदाज किया कि इन आइपीएल सीजनों में भारतीयों के समकक्ष ही विदेशी खिलाडि़यों ने जबर्दस्त प्रदर्शन किय है।
गलतफहमी नं 3- टी-20 युवाओं का खेल है। हमारी टीम का औसत आयु सबसे कम है।
वास्तविकता- आइपीएल में बुजुर्ग खिलाड़ियों ने शानदार खेल दिखाया था। अनुभव उतना ही जरूरी था जितना युवा जोश।
गलतफहमी नं 4- इस फार्मेट में किसी प्लान की जरूरत नहीं पड़ती है।
वास्तविकता- हमारे पास सही में ही कोई प्लान नहीं था। दूसरी टीमों के सर्पोटिव स्टाफ के पास हर टीम के खिलाफ कई प्लान थे। विशेषकर भारतीय टीम के खिलाफ सबने कुछ ना कुछ प्लान किया हुआ था। सुपर 8 के दोनों ही मैचों में इस बात का खुलासा हुआ क्योंकि दोनों ही टीमों भारतीय बल्लेबाजों की सबसे बड़ी कमजोरी का फायदा उठाया। उन्हें लगातार शार्टपिच गेंदें खिलाई जिसके सामने ज्यादातर बल्लेबाज असहाय नजर आए।
गलतफहमी नं 5- विपक्षी टीमों की कुल स्ट्रैंथ को नजरअंदाज किया।
वास्तविकता- टीम इंडिया के पास विपक्षी टीमों के एक या दो खिलाड़ियों को काबू में करने की योजना था लेकिन इस फार्मेट के इस सिद्वांत को भूल गए कि कोई भी अंजाना सा खिलाडी दो चार ओवर में मैच का रूख बदल देता है। इंडीज के साथ हुए सुपर 8 के मैच में हमारा सारा जोर केवल गेल को रोकने पर था। लेकिन जब ब्रावो ने ताबडतो़ड बल्लेबाजी करना शुरू किया तो हमारे गेंदबाज असहाय़ से दिखे।
गलतफहमी नं 6- हम टीम के रूप में एकजुट हैं।
वास्तविकता- टीम शुरू से ही बिखरी-बिखरी सी दिखाई दे रही थी। पिछली बार वाला जोश नदारद था। टीम भावना का भी अभाव दिखाई दे रहा था। आइपीएल में कप्तानी के चलते कई कप्तान टीम में थे। सीनियर-जूनियर जैसा विभाजन भी था। शुरू में ही धोनी-सहवाग विवाद के चलते भी टीम भावना पर विपरीत प्रभाव पडा।
गलतफहमी नं 7- धोनी की कप्तानी लाजवाब है।
वास्तविकता- धोनी को शुरूआत में कुछ किस्मत के सहारे तो कुछ खिलाड़ियों के चमत्कारिक प्रदर्शन की मदद से जबर्दस्त सफलता मिली। धीरे-धीरे एकल सफलताओं को बेहतर रणनीतियां मान लिया गया। जितनी तेजी से दूसरे कप्तानों ने इस फार्मेट की जरूरत के अनुरूप अपने को ढाला उतनी तेजी से भारतीय कप्तान ने कप्तानी की चालें नहीं सीखीं।
गेम के बेसिक प्लान का भी उनमें अभाव दिखाई दिया। उनके पास बड़े मैचों के लिए कोई स्पेशल प्लानिंग भी नहीं थी। इंडीज के खिलाफ खुद को फर्स्ट डाउन पर उतरना और धीरा खेल खेलने से पीछे के खिलाड़ियों पर दबाव बन गया। इसी तरह इंग्लैंड के खिलाफ रवींद्र जडेजा को जल्दी आगे उतार देना जबकि जडेजा कम अनुभवी और इंग्लैंड की परिस्थियों से नावाफिक थे जिसके चलते उन्हें शार्टपिच गेंदों को खेलने में बहुत परेशानी आई। धीरे-धीरे रन रेट भी बढ़ता चला गया। अंततः बडे़ शाट मारने के चक्कर में खिलाड़ियों के रिस्क लेकर लंबी हिट लगानी पड़ी जिसके कारण मध्यक्रम पर दबाव बढ़ता गया।
और अंत में वास्तविकताः आइपीएल की थकान-अत्यधिक खेल,इंग्लैंड की परिस्थियों से तालमेल न बिठा पाना, जरूरत के समय रन न रोक पाना, तेज शुरूआत की कमी, सहवाग की जरूरत के सैकड़ों कारणों के बीच एक सच्चाई। जब आप हर तरफ से खेल के लिए पैसे लेते हैं तब इस बात की शिकायत क्यों नहीं करते। हारते ही क्यों इन बातों की जानकारी देनी शुरू कर दी जाती है।
विज्ञापन करने के लिए आपको थकान नहीं होता। रियल्टी शो में भाग लेने के लिए आप समय निकाल लेते हैं। बस देश के लिए खेलते समय इन बातों की चर्चा की जाती है। ऐसा नहीं है कि इनका प्रभाव नहीं पड़ता लेकिन जब आप एक अरब से ज्यादा लोगों के देश को रिप्रेजेंट कर रहे हो तो आपके कंधे इतने मजबूत तो होने ही चाहिए कि आप इन अपेक्षाओं का बोझ ढो सको। खैर...
आगे पढ़ें के आगे यहाँ
Comments
Post a Comment
आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर