नैतिकता ...नाम कुछ सुना हुआ लग रहा है । बचपन में किताबों में पढ़ा था । आज पैसा नैतिकता को खा चुका है । नैतिक आचरण करने वाले लोग मलवे के रूप में ही कभी कभी दिख जाते है ...उदास है बेचारे उन्हें जल्द ही कूडेदान में फेंका जाएगा । जिंदगी भर जिन आदर्शों पर चलते रहे ...उनका यह हाल ...आंखों से देखा नही जाता ।
गिद्धों की नजर उस मलवे पर भी पड़ी है ....उसे भी ख़त्म कर के ही दम लेंगे । सबके सब नैतिक हो जाते है ....बस पैसा होना शर्त है । पैसे से सड़े हुए भी नैतिक बन जाते है ।
गिद्धों की नजर उस मलवे पर भी पड़ी है ....उसे भी ख़त्म कर के ही दम लेंगे । सबके सब नैतिक हो जाते है ....बस पैसा होना शर्त है । पैसे से सड़े हुए भी नैतिक बन जाते है ।
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--- संजय सेन सागर