Skip to main content

लोकसंघर्ष !: कांग्रेस का हाथ- साम्राज़्यवादियो के साथ

संसदीय चुनाव के पश्चात देश में साम्राज्यवादी शक्तियों व इजारादार उद्योगपतियों की समर्थितसरकार बन चुकी है । इन्ही शक्तियों की बी टीम राजग पराजित हुई ,जिससे अति सांप्रदायिक शक्तियाँ हल्का सा नरम हुई है। अमेरिकन सरकार के राजदूत चुनाव प्रचार से पूर्व और मतदान संपन्न होने तक विभिन्न क्षेत्रीय दलों से लेकर छोटी-छोटी पार्टियों के प्रमुखों से बातचीत करते हुए अमेरिकन साम्राज्यवाद के प्रति वफादार सरकार बनवाने का प्रयास कर रहे थे। मतगणना के पश्चात् स्वत : उनकी समर्थक सरकार बन गई है।

नवगठित सरकार का शीर्ष एजेंडा यह है की आर्थिक सुधारो के नाम पर बैंक,बीमा सहित सभी सार्वजनिक क्षेत्रो का निजीकरण करना है । गौरतलब बात यह है की चुनाव से पूर्व संप्रंग सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की तारीफे कर रही थी कि आर्थिक मंदी का सबसे कम प्रभाव पड़ा और अब संप्रग सरकार ने कहा कि आर्थिक सुधारो को शीघ्रता से लागू किया जाएगा। आने वाले दिनों में और अधिक महंगाई,बेरोजगारी , भुखमरी , शोषण व अत्याचार जनता को तोहफे के रूप में मिलने वाले है ।

चुनाव के समय प्रधानमन्त्री जी जी-20 देशो के सम्मलेन में अमेरिकन साम्राज्यवाद और उसके मित्र मंडली को एक लाख करोड़ रुपये अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में देने कि बात कह चुके है। अमेरिका को आर्थिक मंदी से उबारने के लिए संप्रग सरकार अमेरिकन ब्रांड खरीदने जा रही है। भारतीय इजारादार पूंजीपतियों को लाभ देने के लिए पेंशन फंड की घोषणा की जा चुकी है ,जिसके मध्यम से हजारो करोड़ रुपये इकठ्ठा कर शेयर मार्केट के माध्यम से उनको लाभ पहुँचाया जाएगा ।

इस तरह से साम्राज्यवादी शक्तियों व इजारादार भारतीय उद्योगपतियों के दोनों के दोनों हाथो में लड्डू होंगे। इन शक्तियों को सबसे ज्यादा अपार खुशी इस बात कि है कि संसद के अन्दर वामपंथियों कि ताकत क्षीण हो गई है। इससे पहले वामपंथियों ने अपनी ताकत का प्रदर्शन कर न्यूनतम साझा कार्यक्रम बनवाया था जिसमें खेत मजदूरों को सौ दिन कि रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) और सूचना अधिकार कानून,पेट्रोलियम पदार्थो पर मूल्य वृधि पर रोक ,सार्वजानिक क्षेत्रो के निजीकरण पर रोक तथा किसान कर्जे कि माफ़ी आदि प्रमुख मुद्दों को लागू करवा पाये थे लेकिन प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने वामदलों के ख़िलाफ़ लगातार विषवमन करके वामदलों कि ताकत को क्षीण करने में मदद की।

संसदीय चुनाव में संप्रंग व राजग ने गूगल, याहू , यू-ट्यूब सहित इन्टरनेट से लेकर इलेक्ट्रॉनिक व प्रिंट मीडिया को विज्ञापनों के माध्यम से खरीद रखा था। प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने विशेष पैकेज जारी किए थे जिसमें यह था कि राष्ट्रीय स्तर पर अपने पक्ष में चुनाव समाचारों को प्रमुखता देने के लिए करोडो रुपये दिए थे और फिर प्रदेश स्तर पर और जनपद स्तर भी दोनों गठबंधनों ने अथाह रुपया इन माध्यमो को दिया जिससे संसदीय आम चुनाव में आम जनता कि कोई समस्या मुद्दा नही बन पायी।

चुनाव के पूर्व से ही अरहर कि दाल पैंसठ रुपये किलो , आलू चौदह रुपये किलो तक हो चुका था। वायदा कारोबार के कारण दालें ,चाय ,तिलहन व अन्य आवश्यक पदार्थो कि जमाखोरी कि जा चुकी है मनमाने दामो पर बेचा जा रहा है।खाद्यान्न मामलो में वायदा कारोबार को पूरी तरीके से छूट देकर सरकार मूल उत्पादक किसानो का शोषण तथा व्यापारियों को अथाह मुनाफा कमाने का छूट दे रही है जिससे आवश्यक वस्तुओं के दाम अत्यधिक बढ़ रहे है। व्यापारी किसानो और उपभोक्ता दोनों से अत्यधिक मुनाफा कमा रहे है।

संसदीय चुनाव में संप्रग और राजग गठबन्धनों के प्रत्याशियों ने संसदीय क्षेत्रो में दो करोड़ से लेकर पचास करोड़ रुपये तक खर्च करके चुनाव जीता है। चुनाव में जनता में भी खरीद फरोख्त कि गई । यह धन इजारादार पूंजीपतियों के जमा कालाधन से आया है, जनता चुनावों में खामोश रही है। देश में पूरे मतदान का औसत लगभग 45 प्रतिशत ही रहा है । पचपन प्रतिशत मतदाताओं ने चुनाव में हिस्सा नही लिया जिससे साबित होता है कि बहुसंख्यक जनता बे उम्मीद हो चुकी है और उसकी समस्याओं का कोई भी समाधान दोनों प्रमुख गठबंधनों से नही होना है।

विश्व आर्थिक मंदी के दौर में हमारे देश में प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने तय कर लिया है कि देश कि मेहनतकश जनता कि गाढ़ी कमाई को अमेरिकन साम्राज्यवादी शक्तियों व उनके पिट्ठू इजारादार कंपनियों को सौप देना है। इसके लिए उनकी सरकार श्रम कानूनों को लागू नही करना चाहती है। प्रधानमंत्री स्तर के पद पर सीधे जनता द्वारा चुना गया प्रतिनिधि नही है। डॉक्टर सिंह असम से राज्य सभा सदस्य है और वहां की मतदाता सूची में उनका नाम दर्ज है। जबकि डॉक्टर मनमोहन सिंह लगातार दस रातें भी असम में सोये नही होंगे और इसके बावजूद मतदाता सूची में नाम दर्ज है । यदि कोई बेरोजगार व्यक्ति निवास प्रमाण पत्र इस तरीके से हासिल करके नौकरी प्राप्त कर लेता है तो उसकी नौकरी समाप्त कर दी जाती है और अपराधिक मुकदमा कायम कर देने का अलग से प्राविधान है। डॉक्टर मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार छद्म पूँजी पैदाकर छद्म विकास का दावा करती रही है और करती रहेगी ।

डॉक्टर सिंह का मंत्रिमंडल मृतक आश्रित है अजय माकन,सचिन पायलट से लेकर जितिन प्रसाद तक मंत्री मृतक आश्रित है । डॉक्टर फारूख अब्दुल्ला से लेकर करूणानिधि का परिवार भी मंत्रिमंडल के सदस्यो में है आने वाले दिनों में हो सकता है कि मंत्रिमंडल का मुखिया भी मृतक आश्रित होऐसे मंत्रिमंडल से इस देश का भला नही हो सकता हैहाँ , यह हो सकता है कि राजे रजवाडो के वंशज और आजादी के बाद नए उपजे राजे-रजवाडो का जीवन सुखमय होदेश के अन्दर रहने वाले 85 प्रतिशत जनता का कोई भला नही होने वाला है और सच बात यह है कि वर्तमान सरकार मात्र 15 प्रतिशत जनता द्वारा चुनी गई सरकार है

हमें निराश होने कि जरूरत नही है , मेहनतकश जनता,किसान तथा ईमानदार बुद्धजीवियों को जनसंघर्ष के माध्यम से दबाव बनाने कि आवश्यकता है । भारतीय समाज में इन शोषणकारी शक्तियों के ख़िलाफ़ हमेशा संघर्ष होता आया है और भारतीय जनता संघर्ष करेगी।

-मोहम्मद शुऐब
-रणधीर सिंह सुमन

Comments

Popular posts from this blog

डॉ.प्रभुनाथ सिंह भोजपुरी के अनन्य वक्ता थे -केदारनाथ सिंह

डॉ.प्रभुनाथ सिंह के स्वर्गवास का समाचार मुझे अभी चार घंटा पहले प्रख्यात कवि डॉ.केदारनाथ सिंह से मिला। वे हावड़ा में अपनी बहन के यहां आये हुए हैं। उन्हीं से जाना भोजपुरी में उनके अनन्य योगदान के सम्बंध में। गत बीस सालों से वे अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन नाम की संस्था चला रहे थे जिसके अधिवेशन में भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित हुआ था तथा उसी की पहल पर यह प्रस्ताव संसद में रखा गया और उस पर सहमति भी बन गयी है तथा सिद्धांत रूप में इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया गया है। केदार जी ने बताया कि डॉ.प्रभुनाथ सिंह का भोजपुरी में निबंध संग्रह प्रकाशित हुआ है और कविताएं भी उन्होंने लिखी हैं हालांकि उनका संग्रह नहीं आया है। कुछ कविताएं अच्छी हैं। केदार जी के अनुसार भोजपुरी के प्रति ऐसा समर्पित व्यक्ति और भोजपुरी के एक बड़े वक्ता थे। संभवतः अपने समय के भोजपुरी के सबसे बड़े वक्ता थे। बिहार में महाविद्यालयों को अंगीकृत कालेज की मान्यता दी गयी तो उसमें डॉ.प्रभुनाथ सिंह की बड़ी भूमिका थी। वे उस समय बिहार सरकार में वित्तमंत्री थे। मृत्यु के एक घंटे पहले ही उनसे फोन से बातें हुई ...

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा