मै हिन्दू हूँ , मुझे गर्व है आदि सनातन धर्म का अनुयाई होने पर , मुझे गर्व है की मै विश्व की सबसे उदार , सहनशील और मात्रत्व भावः से विश्व बंधुत्व और हर प्राणी के हित की बात करने वाली इस महान सभ्यता का निवासी हूँ , और इस पर गर्व करते वक्त मुझे बिलकुल भी भय नहीं है कोई मुझे साम्प्रेदायिक कहै या संकुचित . मै हिन्दू हूँ ,
ताजुब होता है ना ,जब कोई इस धर्म को हिन्दू , सनातन , वैदिक या और किसी नाम से पुकारता है , यही से इसकी खूबसूरती चालु होती है , किसी भी धार्मिक पुस्तक मे हिन्दू शब्द भी नहीं है , फिर भी ये धर्म हिन्दू के नाम से जाना जाता है , कभी सिन्धु के पार रहने वालो को हिन्दू कहा जाता था और कभी क्या , कुछ सालो पहले तक हर भारतवासी को हिन्दू के नाम से ही जाना जाता था , ये वो परंपरा है जिस का नामकरण इस भूभाग से हुआ है , ये वो धर्म है जहाँ धर्म का अर्थ कर्त्तव्य पालन से है .
मै जानता और मानता भी हूँ की मेरे धर्म मे काफी बूराइया भी प्रवेश कर गई है , फिर भी मै गर्व करता हूँ की मै हिन्दू हूँ , मेरा धर्म अपनी बुराइयों पर चर्चा करने उन पर प्रश्न उठाने और उन्हे दूर करने का प्रयास करने की भी इजाजत देता है ,हाँ यहाँ मेरा मत बड़ा स्पष्ट है की ये बूराइया मूल धर्म मै नहीं बल्कि समय के साथ इसमे शामिल हुई है ( आगे की कडियों मे मै इस पर भी आऊंगा )
धर्म की सीधी सी परिभाषा है अपने कर्तव्यो की पालना , एक संतान के लिये माँ और पिता , एक विद्यार्थी के लिये गुरु , राजा के लिये देश और प्रजा किसी भी ईश्वरीय आराधना से पहले माने गये है , यदि हम अपने मूल कर्तव्यों की ही पालना करलें तो भी हिन्दू धर्म के अनुयाई के रूप मे हम चल सकते हैं .
ये मेरा धर्म कला , विज्ञान , स्वास्थ्य , गीत - गायन , शस्त्र विद्या ,नगर स्थापत्य , जैसे विभिन् गुणों और मानव विचार की हजारो विचारधाराओ को अपनी गोद मे फलने फूलने का मोका देता है
ये बहु देव , बहु पुस्तक , बहु विचारधारा का धर्म माना जाता है ,, काफी लोग इस पर इस धर्म की आलोचना भी करते है .. पर मे इसे जीवंत धर्म का सबसे बड़ा प्रमाण मानता हूँ , धर्म की साधना का मतलब इश्वर तक पहुचना है और मेरे धर्म का मत है की वो परमसत्ता इतनी उदार , विशाल ह्रदय है की जिस नाम से , जिस विधि से , जिस रूप मे हम उस को पुकारे वो हम को अपना लेता है , वो इतना निरंकुश या तानाशाह नहीं है अपने एक ही नाम , एक ही भाषा , एक ही विधि से हमारी पुकार सुनता हो , मै चाहूँ तो निराकार या साकार रूप मै , पुरुष रूप मै या स्त्री रूप मै , जीवंत गुरु या ग्रन्थ गुरु रूप मै , प्रकर्ति मे या ध्यान , मे उस परमपिता को पुकार सकता हूँ , माध्यम चाहे विधिविधान से पूजा हो , तप हो , गीत हो संगीत हो या मात्र अपने मूल कर्तव्यो की पालना हो ..
इसी लिये ये सनातन है , आदि अनादी है और जीवन्त धर्म है .
(ये लेख मेरे ब्लॉग पर भी है , इस को लेकर यहाँ आना पड़ा कुंकी यहाँ का माहोल एक अलग ही दिशा मे जा रहा है )
ताजुब होता है ना ,जब कोई इस धर्म को हिन्दू , सनातन , वैदिक या और किसी नाम से पुकारता है , यही से इसकी खूबसूरती चालु होती है , किसी भी धार्मिक पुस्तक मे हिन्दू शब्द भी नहीं है , फिर भी ये धर्म हिन्दू के नाम से जाना जाता है , कभी सिन्धु के पार रहने वालो को हिन्दू कहा जाता था और कभी क्या , कुछ सालो पहले तक हर भारतवासी को हिन्दू के नाम से ही जाना जाता था , ये वो परंपरा है जिस का नामकरण इस भूभाग से हुआ है , ये वो धर्म है जहाँ धर्म का अर्थ कर्त्तव्य पालन से है .
मै जानता और मानता भी हूँ की मेरे धर्म मे काफी बूराइया भी प्रवेश कर गई है , फिर भी मै गर्व करता हूँ की मै हिन्दू हूँ , मेरा धर्म अपनी बुराइयों पर चर्चा करने उन पर प्रश्न उठाने और उन्हे दूर करने का प्रयास करने की भी इजाजत देता है ,हाँ यहाँ मेरा मत बड़ा स्पष्ट है की ये बूराइया मूल धर्म मै नहीं बल्कि समय के साथ इसमे शामिल हुई है ( आगे की कडियों मे मै इस पर भी आऊंगा )
धर्म की सीधी सी परिभाषा है अपने कर्तव्यो की पालना , एक संतान के लिये माँ और पिता , एक विद्यार्थी के लिये गुरु , राजा के लिये देश और प्रजा किसी भी ईश्वरीय आराधना से पहले माने गये है , यदि हम अपने मूल कर्तव्यों की ही पालना करलें तो भी हिन्दू धर्म के अनुयाई के रूप मे हम चल सकते हैं .
ये मेरा धर्म कला , विज्ञान , स्वास्थ्य , गीत - गायन , शस्त्र विद्या ,नगर स्थापत्य , जैसे विभिन् गुणों और मानव विचार की हजारो विचारधाराओ को अपनी गोद मे फलने फूलने का मोका देता है
ये बहु देव , बहु पुस्तक , बहु विचारधारा का धर्म माना जाता है ,, काफी लोग इस पर इस धर्म की आलोचना भी करते है .. पर मे इसे जीवंत धर्म का सबसे बड़ा प्रमाण मानता हूँ , धर्म की साधना का मतलब इश्वर तक पहुचना है और मेरे धर्म का मत है की वो परमसत्ता इतनी उदार , विशाल ह्रदय है की जिस नाम से , जिस विधि से , जिस रूप मे हम उस को पुकारे वो हम को अपना लेता है , वो इतना निरंकुश या तानाशाह नहीं है अपने एक ही नाम , एक ही भाषा , एक ही विधि से हमारी पुकार सुनता हो , मै चाहूँ तो निराकार या साकार रूप मै , पुरुष रूप मै या स्त्री रूप मै , जीवंत गुरु या ग्रन्थ गुरु रूप मै , प्रकर्ति मे या ध्यान , मे उस परमपिता को पुकार सकता हूँ , माध्यम चाहे विधिविधान से पूजा हो , तप हो , गीत हो संगीत हो या मात्र अपने मूल कर्तव्यो की पालना हो ..
इसी लिये ये सनातन है , आदि अनादी है और जीवन्त धर्म है .
(ये लेख मेरे ब्लॉग पर भी है , इस को लेकर यहाँ आना पड़ा कुंकी यहाँ का माहोल एक अलग ही दिशा मे जा रहा है )
aap ko garv hai ki aap desh ko baant rahe hai...
ReplyDeleteदोस्त , आप अपनी पहचान तक नहीं बताना चाहते और देश की बात कर रहे हो
ReplyDeleteहिंदू' शब्द की परिभाषा
ReplyDeleteभारत वर्ष में रह कर अगर हम कहें की हिंदू शब्द की परिभाषा क्या हो सकती है? हिंदू शब्द के उद्भव का इतिहास क्या है? आख़िर क्या है हिंदू? तो यह एक अजीब सा सवाल होगा | लेकिन यह एक सवाल ही है कि जिस हिन्दू शब्द का इस्तेमाल वर्तमान में जिस अर्थ के लिए किया जा रहा है क्या वह सही है ?
मैंने हाल ही में पीस टीवी पर डॉ ज़ाकिर नाइक का एक स्पीच देखा, उन्होंने किस तरह से हिंदू शब्द की व्याख्या की मुझे कुछ कुछ समझ में आ गया मगर पुरी संतुष्टि के लिए मैंने अंतरजाल पर कई वेबसाइट पर इस शब्द को खोजा तो पाया हाँ डॉ ज़ाकिर नाइक वाकई सही कह रहे हैं. हिंदू शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई, कब हुई और किसके द्वारा हुई? इन सवालों के जवाब में ही हिंदू शब्द की परिभाषा निहित है|
यह बहुत ही मजेदार बात होगी अगर आप ये जानेंगे कि हिंदू शब्द न ही द्रविडियन न ही संस्कृत भाषा का शब्द है. इस तरह से यह हिन्दी भाषा का शब्द तो बिल्कुल भी नही हुआ. मैं आप को बता दूँ यह शब्द हमारे भारतवर्ष में 17वीं शताब्दी तक इस्तेमाल में नही था. अगर हम वास्तविक रूप से हिंदू शब्द की परिभाषा करें तो कह सकते है कि भारतीय (उपमहाद्वीप) में रहने वाले सभी हिंदू है चाहे वो किसी धर्म के हों. हिंदू शब्द धर्म निरपेक्ष शब्द है यह किसी धर्म से सम्बंधित नही है बल्कि यह एक भौगोलिक शब्द है. हिंदू शब्द संस्कृत भाषा के शब्द सिन्धु का ग़लत उच्चारण का नतीजा है जो कई हज़ार साल पहले पर्सियन वालों ने इस्तेमाल किया था. उनके उच्चारण में 'स' अक्षर का उच्चारण 'ह' होता था|
हाँ....मैं, सलीम खान हिन्दू हूँ !!!
हिंदू शब्द अपने आप में एक भौगोलिक पहचान लिए हुए है, यह सिन्धु नदी के पार रहने वाले लोगों के लिए इस्तेमाल किया गया था या शायेद इन्दुस नदी से घिरे स्थल पर रहने वालों के लिए इस्तेमाल किया गया था। बहुत से इतिहासविद्दों का मानना है कि 'हिंदू' शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम अरब्स द्वारा प्रयोग किया गया था मगर कुछ इतिहासविद्दों का यह भी मानना है कि यह पारसी थे जिन्होंने हिमालय के उत्तर पश्चिम रस्ते से भारत में आकर वहां के बाशिंदों के लिए इस्तेमाल किया था।
धर्म और ग्रन्थ के शब्दकोष के वोल्यूम # 6,सन्दर्भ # 699 के अनुसार हिंदू शब्द का प्रादुर्भाव/प्रयोग भारतीय साहित्य या ग्रन्थों में मुसलमानों के भारत आने के बाद हुआ था।
भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'द डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया' में पेज नम्बर 74 और 75 पर लिखा है कि "the word Hindu can be earliest traced to a source a tantrik in 8th century and it was used initially to describe the people, it was never used to describe religion..." पंडित जवाहरलाल नेहरू के मुताबिक हिंदू शब्द तो बहुत बाद में प्रयोग में लाया गया। हिन्दुज्म शब्द कि उत्पत्ति हिंदू शब्द से हुई और यह शब्द सर्वप्रथम 19वीं सदी में अंग्रेज़ी साहित्कारों द्वारा यहाँ के बाशिंदों के धार्मिक विश्वास हेतु प्रयोग में लाया गया।
नई शब्दकोष ब्रिटानिका के अनुसार, जिसके वोल्यूम# 20 सन्दर्भ # 581 में लिखा है कि भारत के बाशिंदों के धार्मिक विश्वास हेतु (ईसाई, जो धर्म परिवर्तन करके बने को छोड़ कर) हिन्दुज्म शब्द सर्वप्रथम अंग्रेज़ी साहित्यकारों द्वारा सन् 1830 में इस्ल्तेमल किया गया था|
इसी कारण भारत के कई विद्वानों और बुद्धिजीवियों का कहना है कि हिन्दुज्म शब्द के इस्तेमाल को धर्म के लिए प्रयोग करने के बजाये इसे सनातन या वैदिक धर्म कहना चाहिए. स्वामी विवेकानंद जैसे महान व्यक्ति का कहना है कि "यह वेदंटिस्ट धर्म" होना चाहिए|
इस प्रकार भारतवर्ष में रहने वाले सभी बाशिंदे हिन्दू हैं, भौगोलिक रूप से! चाहे वो मैं हूँ या कोई अन्य |
आपने हिन्दू शब्द की परिभाषा दी है , सही कहा आपने की हिन्दू शब्द भोगोलिक परिभाषा है इसी तेरह वैदिक और सनातन शब्द भी एक धर्म के रूप कही नहीं मिलेंगे , वास्तव मे ये कुछ लोगो को परेशान होने का कारन भी है जो धर्म को कही बांध कर रखना चाहते है , वैदिक , सनातन और हिन्दू ये उस परम्परा के ही नाम है जो इस भू भाग पर पैदा हुई है , ये उस संस्कृति का नाम है जिस मे हजारो विचारधाराओ नै , महापुरशो नै अपने अपने योगदान से इस महान संस्कृति को विकसित किया , ये वो संस्क्रति है जहा चार्वाक जैसे आलोचकों को भी महर्षि कहा गया .
ReplyDeleteआपने विवेकानन्द का उल्लेख किया है , विवेकानंद का एक कथन मुझ को भी याद आ रहा है " मैं चाहूँगा की आने वाले १०० सालो तक तुम अपने सभी ईस्ट और देवो को भूल जाओ , १०० सालो तक तुम भारतीयों की एक देवी है भारत माँ , केवल इस की पूजा करो " ये कह सकने वाला संत केवल एक भारतीय हो सकता है और अपने देश को माँ और देव तूल्य मानने वाला समुदाय केवल भारतीय .
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तुम लोगों ने जो ऊपर हिन्दू शब्द की व्याख्या दी है वो किसी मुस्लिम से प्रेरित होकर दी है तुम अज्ञानियों को कुछ भी ज्ञान नहीं और चले आये हिन्दू शब्द की व्याख्या करने ये तो वही बात हो गयी "अध् जल गगरी छलकत जाये", मै इस विषय मै आर्य समाज को भी चुनोती दे चूका हूँ और सबूत भी दिए हैं की हिन्दू शब्द का उद्भव ऋग्वेद से हुआ है और ऋग्वेद में हिन्दू और हिन्दू शब्द का एक नहीं कई जगह स्पष्ट उल्लेख है
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