Skip to main content

पेड़ की पुकार,

पेड़ की पुकार,


रो रो कर पुकार रहा हूँ ।
हमें जमी से मत उखाडो ॥
रक्त श्रावसे भीग गया हूँ॥
हमें कुल्हाडी अब मत मारो॥
आसमा के बादल से पूछो
कैसे मुझको पाला है,
हर मौसम ने सींचा मुझको
मिटटी करकट झाडा है,
उस मंद हवाओं से पूछो
जो झूला हमें झुलाया है,
कोमल हाथो से पाने
थपकी दे के सुलाया है,
अब तुम लोगो भी प्रेम बढ़ा कर
पेड़ का आँगन कूद सजा लो॥
इस धरा की सुंदर छाया
हम पदों से बनी हुयी है,,
प्यारी मंद हवाए
अमृत बन कर चली हुयी है॥
हामी से नाता है जन जन का
जो इस धरा पर आयेगे॥
हामी से रिश्ता है पग पग पर
जो यहाँ से जायेगे॥
शाखाए आंधी तूफानों के टूटी
ठूठ आग में मत डालो
रो रो कर पुकार रहा हूँ...............
हामी कराते सब प्राणी को
अम्बर रस का पान॥
हामी से बनती कितनी औषधि
नई पिन्हाती जान॥
कितने फल फूल है देते
फ़िर भी तुम अनजान बने हो,,
लिए कुल्हाडी टाक रहे हो
उत्तर दो क्यो बेजान खड़े हो॥
हामी से सुंदर मौसम बँटा
बुरी नज़र हमपे मत डालो॥
रो रो कर पुकार रहा हूँ................

Comments

  1. ped katne ka natija hum sab bhugat rahe hai, is baar baarish ki kami se jo haal hone wala hai uski jimmedari ped katne par he jaati hai

    ReplyDelete
  2. अंजू गाँधी जी आप ने सही लिखा है, की पेड़ काटने से हमारे प्राकृतिक वातावरण पर क्या प्रभाव पड़ रहा है,,

    ReplyDelete

Post a Comment

आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

Popular posts from this blog

डॉ.प्रभुनाथ सिंह भोजपुरी के अनन्य वक्ता थे -केदारनाथ सिंह

डॉ.प्रभुनाथ सिंह के स्वर्गवास का समाचार मुझे अभी चार घंटा पहले प्रख्यात कवि डॉ.केदारनाथ सिंह से मिला। वे हावड़ा में अपनी बहन के यहां आये हुए हैं। उन्हीं से जाना भोजपुरी में उनके अनन्य योगदान के सम्बंध में। गत बीस सालों से वे अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन नाम की संस्था चला रहे थे जिसके अधिवेशन में भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित हुआ था तथा उसी की पहल पर यह प्रस्ताव संसद में रखा गया और उस पर सहमति भी बन गयी है तथा सिद्धांत रूप में इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया गया है। केदार जी ने बताया कि डॉ.प्रभुनाथ सिंह का भोजपुरी में निबंध संग्रह प्रकाशित हुआ है और कविताएं भी उन्होंने लिखी हैं हालांकि उनका संग्रह नहीं आया है। कुछ कविताएं अच्छी हैं। केदार जी के अनुसार भोजपुरी के प्रति ऐसा समर्पित व्यक्ति और भोजपुरी के एक बड़े वक्ता थे। संभवतः अपने समय के भोजपुरी के सबसे बड़े वक्ता थे। बिहार में महाविद्यालयों को अंगीकृत कालेज की मान्यता दी गयी तो उसमें डॉ.प्रभुनाथ सिंह की बड़ी भूमिका थी। वे उस समय बिहार सरकार में वित्तमंत्री थे। मृत्यु के एक घंटे पहले ही उनसे फोन से बातें हुई ...

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा