Skip to main content

मुस्लिम बेटे ने किया हिंदू रीति से पिता का अंतिम संस्कार


जावरा. शिक्षाविद् एक हिंदू पिता का देहांत होने पर उसके मुस्लिम बेटे ने हिंदू रीति-रिवाज से अंतिम संस्कार किया। सुनने में भले ही अजीब लगे लेकिन गुरुवार को यहां पिता के प्रति प्रेम और एकता की आदर्श मिसाल कायम हुई है। विज्ञान और गणित विषय के विशेषज्ञ आर.के. मजूमदार का गुरुवार को देहांत हुआ। वे 62 वर्ष के थे और वर्ष 1980 में कलकत्ता से काम की तलाश में जावरा आए थे।

कुछ समय प्रीमियर ऑयल मिल में काम किया लेकिन शिक्षा का ज्ञान उन्हें शिक्षा जगत में ले आया। कई साल से वे पिपलौदा रोड स्थित एमरॉल्ड स्कूल में बच्चों को पढ़ा रहे थे। इनसे शिक्षा लेकर कई बच्चे विदेशों में नाम कमा चुके हैं। यहां उनका अपना कोई न था ऐसे में पुरानी धानमंडी स्थित पुराने महल में रहने वाले बादशाह मियां उनके जीवन में आए और श्री मजूमदार को उन्होंने परिवार में बेटे का स्थान दिया।

बादशाह मियां के देहांत के बाद उनके बेटे अमजद को श्री मजूमदार ने गोद ले लिया। अमजद फिलहाल मुगलपुरा में रहता है और श्री मजूमदार भी बीमार होने से पहले तक उनके साथ ही रहते थे। अपना अधिकांश समय एमरॉल्ड स्कूल के विकास की सोच में लगाते थे और इसीलिए गुरुवार को दोपहर में उनकी अंतिम यात्रा भी स्कूल परिसर से शुरू हुई। स्कूल के व्यवस्थापक डॉ. एच.एस. राठौर ने सारी व्यवस्था करवाई।

तो बेटे को याद आ गया पिता का प्रेम

श्री मजूमदार पिछले एक साल से सांस की बीमारी से परेशान थे। राठौर नर्सिंग होम में इलाज के दौरान उनकी मौत हुई। इसके बाद अंतिम संस्कार का मौका आया तो अमजद ने पिता का अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाज से करने का निर्णय लिया क्योंकि श्री मजूमदार की इच्छा थी कि उनका अंतिम संस्कार हो।

पिता का प्रेम और इच्छा याद आते ही दाह संस्कार की तैयारी हुई। शांतिवन में अमजद ने श्री मजूमदार को मुखाग्नि देकर पिता के प्रति फर्ज को निभाया। इससे समाज में एकता व प्रेम की मिसाल कायम हुई है।

श्री मजूमदार कई सालों से नजदीकी रहे हैं। उनकी इच्छा थी इसलिए अंतिम संस्कार करवाना हमारा धर्म था। गणित व विज्ञान विषय के अच्छे जानकार थे। उनकी यादंे ही हमारे स्कूल में रहेंगी। -डॉ. एच.एस. राठौर, समाजसेवी व चिकित्सक


आगे पढ़ें के आगे यहाँ

Comments

  1. अन्तिम समय में भी हिन्दू सन्स्कार की इच्छा ? वस्तुतः वे हिन्दू-मुस्लिम भावान्तर से मुक्त नहीं होपाये। इतने समय मुस्लिम परिवार में रहकर भी वे स्वयं को इच्छा मुक्त होकर उन की इच्छा पर नहीं छोड पाये? क्यों ? इसी को शायद माया,व कर्म में लिप्तता कहते हैं।

    ReplyDelete

Post a Comment

आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

Popular posts from this blog

डॉ.प्रभुनाथ सिंह भोजपुरी के अनन्य वक्ता थे -केदारनाथ सिंह

डॉ.प्रभुनाथ सिंह के स्वर्गवास का समाचार मुझे अभी चार घंटा पहले प्रख्यात कवि डॉ.केदारनाथ सिंह से मिला। वे हावड़ा में अपनी बहन के यहां आये हुए हैं। उन्हीं से जाना भोजपुरी में उनके अनन्य योगदान के सम्बंध में। गत बीस सालों से वे अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन नाम की संस्था चला रहे थे जिसके अधिवेशन में भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित हुआ था तथा उसी की पहल पर यह प्रस्ताव संसद में रखा गया और उस पर सहमति भी बन गयी है तथा सिद्धांत रूप में इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया गया है। केदार जी ने बताया कि डॉ.प्रभुनाथ सिंह का भोजपुरी में निबंध संग्रह प्रकाशित हुआ है और कविताएं भी उन्होंने लिखी हैं हालांकि उनका संग्रह नहीं आया है। कुछ कविताएं अच्छी हैं। केदार जी के अनुसार भोजपुरी के प्रति ऐसा समर्पित व्यक्ति और भोजपुरी के एक बड़े वक्ता थे। संभवतः अपने समय के भोजपुरी के सबसे बड़े वक्ता थे। बिहार में महाविद्यालयों को अंगीकृत कालेज की मान्यता दी गयी तो उसमें डॉ.प्रभुनाथ सिंह की बड़ी भूमिका थी। वे उस समय बिहार सरकार में वित्तमंत्री थे। मृत्यु के एक घंटे पहले ही उनसे फोन से बातें हुई ...

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा