
परिवर्तन नियम समर्पित ,
झुककर मिलना फिर जाना।
आंखों की बोली मिलती ,
तो संधि उलझते जाना॥
संध्या तो अपने रंग में,
अम्बर को ही रंग देती।
ब्रीङा की तेरी लाली,
निज में संचित कर लेती॥
अनगिनत प्रश्न करता हूँ,
अंतस की
परछाई से।
निर्लिप्त नयन हंस-हंस कर,
मुंद जाते पहुनाई से ॥
-डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'
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--- संजय सेन सागर