आज से ठीक 20 साल पहले 4 जून 1989 को बीजिंग के तियानआन चौक पर हजारों लोकतंत्र समर्थक निहत्थे छात्रों पर टैंक दौड़ा दिए गए थे। पूरी दुनिया हतप्रभ थी। टैंक चलाने का आदेश देने वाले तत्कालीन चीनी नेता देंग शियाउ पिंग खलनायक के तौर पर सामने आए थे। उस समय लगने लगा था कि जिस तरह सोवियत संघ की कम्युनिस्ट व्यवस्था लड़खड़ा रही है, वैसा ही हश्र चीन के कम्युनिस्ट शासन का होने वाला है। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। आज चीन दुनिया में एक बड़ी आर्थिक-सामरिक ताकत के तौर पर सामने है। वैश्विक मंदी से उबरने के लिए विश्व चीन से उम्मीदें लगाए हुए है।
क्या हुआ था माओ की मृत्यु के बाद देंग शियाउ पिंग ने कम्युनिस्ट अर्थव्यवस्था को उदारवाद की तरफ मोड़ा। समाजवादी बाजार व्यवस्था के नाम से शुरू किए पिंग के प्रयास इतने धीमे थे कि पार्टी के भीतर की लोकतंत्र समर्थक ताकतें संतुष्ट नहीं थीं और वे चाहती थीं कि राजनीतिक-आर्थिक खुलापन और तेजी से लाया जाना चाहिए और पार्टी के नाम पर चल रहे भ्रष्टाचार पर कड़ी रोक लगाई जाए। लेकिन देंग इससे सहमत नहीं थे। उधर सोवियत संघ में पेरेस्त्रोइका व ग्लासनोस्त (खुलापन) आने से चीन में भी ये ताकतें तेजी से सिर उठाने लगीं। 1987 में खुलेपन और उदारवाद की मांग को लेकर कम्युनिस्ट पार्टी के तत्कालीन महासचिव हू याओबांग ने इस्तीफा दे दिया। 1986-87 में खुलेपन के समर्थन में पूरे चीन में प्रदर्शन शुरू हुए। लेकिन सरकार ने इन्हें दबाए रखा। 1989 में 15 अप्रैल को हू की अचानक मृत्यु हो गई। बताया यह गया कि हू की हृदय गति रुक गई थी। उनकी मौत की खबर फैलते ही पूरे चीन में लोकतंत्र समर्थक ताकतें सड़क पर आ गई। लोगों को लग रहा था कि हू की मौत को लेकर कम्युनिस्ट सरकार झूठ बोल रही है। बीजिंग, शंघाई व कई अन्य शहरों में प्रदर्शन शुरू हो गए। इस बीच गोर्बाचोव की चीन यात्रा हुई और उससे लोकतंत्र समर्थक आंदोलन और जोर पकड़ गया। मई में तियाऩआन चौक पर प्रदर्शनकारियों ने बड़े-बड़े प्रदर्शन किए। चीन सरकार के सभी प्रयास विफल हो गए। एक समय यह लगने लगा था कि यह आंदोलन चीनी कम्युनिस्ट शासन का अंत कर देगा। 4 जून को देंग ने प्रदर्शनकारी छात्रों पर टैंक चला देने का आदेश जारी किया। अपुष्ट आंकड़ों के मुताबिक 2600 छात्र इस घटना में मारे गए और हजारों घायल हुए।
बेसहारा हुए लोगों की कहानियां हर जगह हैं तियानआन चौक पर जो छात्र मारे गए, वे सब अपने मां-बाप की इकलौती संतान थे। दरअसल चीन में एक ही बच्चा पैदा करने का कानून है। ऐसे में हजारों लोगों की बुढ़ापे की लाठी छिन गई। आज भी ये लोग जिंदा है और इनकी कहानियां बीजिंग व दूसरे चीनी शहरों में सुनी जा सकती हैं।
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बहुत खूब लिखा है आपने
ReplyDeleteआप इसी तरह प्रगति के मार्ग पर आगे बढते जाये यही दुआ है
बहुत खूब लिखा है आपने
ReplyDeleteआप इसी तरह प्रगति के मार्ग पर आगे बढते जाये यही दुआ है