Skip to main content

Loksangharsha: ख़ुद को समझो खुदा समझ लोगे



दर्द समझो दवा समझ लोगे।
ज्योति समझो
दीया समझ लोगे ।
व्यर्थ देरी हरम में उलझे हो
-
ख़ुद को समझो खुदा समझ
लोगे

कंगन कभी टूटे ऐसा कोई हाथ नही है
चंदन कभी छूटे ऐसा कोई माथ नही है
चारो और भीड़ अपनों की लेकिन रिश्तो का-
बंधन कभी न टूटे ऐसा कोई साथ नही है ।


प्यार की पहचान लेकर जी रहा हूँ।
दर्द का उनमान लेकर जी रहा हूँ
जाति
भाषा धर्म से आहत हुआ -
अधमरा
इंसान लेकर जी रहा हूँ

ये
अहिंसा मेरा मन्दिर मेरी आजादी है
कर्म से भाग पाये वो मुनादी है

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

Comments

  1. दर्द को समझो दवा समझ लोगे
    बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  2. दर्द को समझो दवा समझ लोगे
    बहुत सुन्दर

    ReplyDelete

Post a Comment

आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

Popular posts from this blog

डॉ.प्रभुनाथ सिंह भोजपुरी के अनन्य वक्ता थे -केदारनाथ सिंह

डॉ.प्रभुनाथ सिंह के स्वर्गवास का समाचार मुझे अभी चार घंटा पहले प्रख्यात कवि डॉ.केदारनाथ सिंह से मिला। वे हावड़ा में अपनी बहन के यहां आये हुए हैं। उन्हीं से जाना भोजपुरी में उनके अनन्य योगदान के सम्बंध में। गत बीस सालों से वे अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन नाम की संस्था चला रहे थे जिसके अधिवेशन में भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित हुआ था तथा उसी की पहल पर यह प्रस्ताव संसद में रखा गया और उस पर सहमति भी बन गयी है तथा सिद्धांत रूप में इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया गया है। केदार जी ने बताया कि डॉ.प्रभुनाथ सिंह का भोजपुरी में निबंध संग्रह प्रकाशित हुआ है और कविताएं भी उन्होंने लिखी हैं हालांकि उनका संग्रह नहीं आया है। कुछ कविताएं अच्छी हैं। केदार जी के अनुसार भोजपुरी के प्रति ऐसा समर्पित व्यक्ति और भोजपुरी के एक बड़े वक्ता थे। संभवतः अपने समय के भोजपुरी के सबसे बड़े वक्ता थे। बिहार में महाविद्यालयों को अंगीकृत कालेज की मान्यता दी गयी तो उसमें डॉ.प्रभुनाथ सिंह की बड़ी भूमिका थी। वे उस समय बिहार सरकार में वित्तमंत्री थे। मृत्यु के एक घंटे पहले ही उनसे फोन से बातें हुई ...

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा