महकी हुई हवायें तो समझो वसंत है।
कांटो में फूल गायें तो समझो वसंत है ।
कोयल की तान पर नए पातो का थिरकना-
भौंरा भी गुनगुनाये तो समझो वसंत है ।
तिरछी हो नैन कोर तो समझो वसंत है ।
अधरों पे प्यासी भोर तो समझो बसंत है
उलझी लटें सवाँरने का होश तक न हो-
चितवन में हो चितचोर तो समझो वसंत है॥
बहकी हुई अदाएं तो समझो वसंत है ।
यौवन चुभन जगाये तो समझो वसंत है ।
प्रियतम को रात छोटी लगे प्रिय के साथ में-
जोगी भी बहक जाए तो समझो वसंत है ॥
मिटा संसार है प्यार की टोलियाँ ।
बोलते है सभी कुछ नई बोलियाँ।
आपके प्राण में काव्य सुरसरि बसी-
ये लगेगा तभी जब बजे तालियाँ॥
डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'
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--- संजय सेन सागर