कुन्डली छन्द----छवि कदम्ब के ब्रक्ष की--राधा के घर के सम्मु ख कदम्ब का तरु ख वन्शी-वट--बरसाना ,मथुरा,मथुरा
पुष्पों की वर्षा करें, राधा पर घन- श्याम,
छवि कदम्ब के ब्रिक्ष की सुलसित ,ललित ललाम ।
सुलसित ललित ललाम, गोप गोपी हरषायें,
ललिता, कुसुमा ्,राधाजी, मन अति सुख पायें।
विह्वल भाव वश,देव दनुज किन्नर नर नागर ,
करें पुष्प- वर्षा ्राधा पर , नट्वर- नागर ॥
राधाजी के अन्ग को, परसें पुष्प लजायं,
भाव विह्वल हो नमन कर ,सादर पग गिरि जायं।
सादर पग गिरि जायं,लखि चरण शोभा न्यारी ,
धन्य-धन्य हें पुष्प, श्याम- लीला बलिहारी ,
तरु कदम्ब हरषायं,देखि ुगुन कान्हा जी के,
क्रीडा करते श्याम, ’श्याम ’ सन्ग राधाजी के॥
-डा श्याम गुप्त
श्याम जी आपकी कविता बहुत बहुत सुंदर है. आप ऐसी और कवितायेँ लिखें.
ReplyDeleteआभार और धन्यवाद.
श्याम जी आपकी कविता बहुत बहुत सुंदर है. आप ऐसी और कवितायेँ लिखें.
ReplyDeleteआभार और धन्यवाद.
bahut khoob
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