इसलाम बेशक सबसे अच्छा धर्म है और मुसलमान एक अच्छे अमनपसंद लोग हैं लेकिन असल बात यह है कि आज मिडिया की नकेल पश्चिम वालों के हाथों में है, जो इसलाम से भयभीत है| मिडिया बराबर इसलाम और मुसलमान के विरुद्ध बातें प्रकाशित और प्रचारित करता है| वह या तो इसलाम और मुसलमान के विरुद्ध ग़लत सूचनाएं उपलब्ध करता/कराता है और इसलाम से सम्बंधित ग़लत सलत उद्वरण देता है या फिर किसी बात को जो मौजूद हो ग़लत दिशा देता है या उछलता है| अगर कहीं बम फटने की कोई घटना होती है तो बगैर किसी प्रमाण के मुसलमान को दोषी मान लिया जाता है और उसे इसलाम से जोड़ दिया जाता है| समाचार पत्रों में बड़ी बड़ी सुर्खियों में उसे प्रकाशित किया जाता है | फिर आगे चल कर पता चलता है कि इस घटना के पीछे किसी मुसलमान के बजाये किसी गैर मुस्लिम का हाथ था तो इस खबर को पहले वाला महत्व नहीं दिया जाता और छोटी सी खबर दे दी जाती है |
इसी तरह की एक ख़बर मैंने अमर उजाला अख़बार में पढ़ी जो मेरे ही शहर लखनऊ की है. ख़बर थी बड़े मंगल वाले दिन की. लखनऊ यूनिवर्सिटी के सामने लगभग सड़क पर ही एक हनुमान मंदिर और उसकी देखा-देखी आस-पास कई और भी मंदिर बन गये है जिसकी वजह से मंगलवार को काफी भीड़ होती है और सुरक्षा के नाम पर कुछ सिपाही या ट्रेफिक वाले भी मौजूद रहते हैं. दो लड़के जो कि व्यापारी थे, कपडे बेचते थे, दोपहर में कुछ प्रसाद या खाने की मंशा से मंदिर में गए और प्रसाद आदि खाया. अचानक उन्हें पुलिस वालों ने पकड़ लिया और गिरफ्तार कर लिया.
पुलिस ने उन दोनों युवकों को जो मुसलमान थे को जेल भेजने का पूरा बंदोबस्त कर लिया था और हवालात में डाल दिया. अगले दिन अख़बार में पहले पृष्ठ पर मुख्य रूप से खबर छापी.
आप खुद देखिये...
बाद में उन्हें जब पता चला कि युवक निर्दोष हैं तो उन्हें पुलिस 4 दिन की हवालात की सज़ा और यातना के बाद छोड़ दिया. उन युवकों को छोड़ने की ख़बर अख़बार के मुख्य पृष्ठ तो छोड़िये सप्लीमेंटरी माई सिटी में तीसरे पेज पर बेहद छोटी और निष्प्रभावी छापी गयी.
आप खुद देखिये...
क्या यह सही है.....???!!! क्या मिडिया सही काम कर रहा है...???!!!
प्रस्तुति- सलीम खान
इसी तरह पुलिस वाले भी अजीब गज़ब करते हैं....अभी परसों की ही बात है कि एक महिला अपनी भतीजी को लेकर हजरतगंज में पैदल जा रही थी पुलिस वालों ने पकड़ लिया और वेश्यावृति का चालान करके अन्दर करने की कोशिश कर ही रहे थे कि उन लोगों ने शोर मचाना शुरू कर दिया और लोगों के इकठ्ठा हो जाने पर और पुलिस से भिड जाने पर ही वो वहां से जा सकीं...
ReplyDeleteइससे पुलिस का निकम्मापन ज़ाहिर होता है जो किसी को भी अपराधी मान लेती है, बिना पर्याप्त प्रमाण जुटाए किन्तु इसका यह अर्थ कतई नहीं है की कोई मुस्लमान कभी भी अपराधी नहीं होता. यह सच होता तो कश्मीर से हिन्दू भागे नहीं होते. अधिकांश मुस्लमान शरीफ और सज्जन हैं यह बिलकुल सच है, कुछ बदमाश भी हैं-जैसे हर जाति और धर्म में होते हैं. कमी सिर्फ यह है कि हिंसक और तंग नज़रिएवाले मुसलमानों के आगे भले मुसलमानों को कभी आवाज़ उठाते नहीं देखा. अच्छा हिन्दू बुरे हिन्दू से दूरी रखता है, अपने धर्म को मानते हुए अन्य धर्मों को बराबरी से अच्छा मानता है, पर मुसलमानों को अन्य धर्म इसलाम की तरह स्वीकार्य नहीं हैं. खुद आप इसलाम को सबसे अच्छा कहते हैं. हम कहते हैं हर धर्म अच्छा है. मुसलमानों को यह मंजूर नहीं...यही गलत सोच दूरी पैदा करता है. अच्छा मुस्लमान अपने मजहब को माने और दीगर मजहबों के माननेवालों को भी अच्छा माने तो दूरी घटे.
ReplyDeleteसलीम भाई आप का दर्द सही है धर्म का अपराध और अपराधियों से , पर प्रश्न ये कि अधिकांश आतंकवादी मुसलमान है और कभी क्या मुस्लिम समुदाय नै इन आतंकवादियो का विरोध किया है ? आज भी मुस्लिम समुदाय Dr. कलाम साहब को अपना नेता नहीं मान पाया , और मुस्लिम समुदाय किस को अपना नेतृत्व देता है इस पर दूसरे समुदाये हमेशा चिंतित रहेते है . हर हिन्दू तहे दिल से मानता है की उपासना का हर रास्ता परम शक्ति जिसे राम कहै ,अल्लाह , गोड़ या और कुछ कहै , तक जाता है पर क्या मुस्लिम इस को मानता है ! गुजरात कि दंगो कि हिन्दू भी आलोचना करता है पर क्या कभी मुस्लिम समुदाय नै कश्मीर से निकाले गये हिदुओ के बारे मे भी विचार किया है ?
ReplyDeleteप्रारम्भ ने बहुत सही कहा है. चलो इस जी हुज़ूरी की बेला में कोई तो सच व हत कर कहने वाला मिला । क्या यह १००% सच नहीन है कि सारे आतन्क्वादी जो भी ,कहीं भी पकडे गये हैं सब मुस्लिम हैं। आप चिन्तन मनन करें, पायेंगें बात सही ही है.
ReplyDeleteGhuma fira ke apni baat siddh karne men lagen hi rahte hain log
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