आँखों में अगर आज वो महताब न होता
मैं अपने लिए सुबह तलक ख्वाब न होता
कमरे में अगर खिड़की से कुछ फूल न गिरते
दिल तेरे लिए इस तरह बेताब न होता
बस्ती में कभी इश्क की आवाज़ न आती
दरिया अगर नगमा सैलाब न होता
आंखों में अगर आज वो महताब न होता
मैं अपने लिए सुबह तलक ख्वाब न होता
मैं अपने लिए सुबह तलक ख्वाब न होता
कमरे में अगर खिड़की से कुछ फूल न गिरते
दिल तेरे लिए इस तरह बेताब न होता
बस्ती में कभी इश्क की आवाज़ न आती
दरिया अगर नगमा सैलाब न होता
आंखों में अगर आज वो महताब न होता
मैं अपने लिए सुबह तलक ख्वाब न होता
Wah !
ReplyDeleteबहुत खूब !
ReplyDeleteअलीम जी बहुत अच्छा लिखा है
bahut bahut shukriya aap dono ka ....ki aapne hamari hausala afzai ki....tahnx again
ReplyDeletewha kya baat hai...ati sunder
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