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ग़ज़ल

आँखों में अगर आज वो महताब न होता
मैं अपने लिए सुबह तलक ख्वाब न होता
कमरे में अगर खिड़की से कुछ फूल न गिरते
दिल तेरे लिए इस तरह बेताब न होता
बस्ती में कभी इश्क की आवाज़ न आती
दरिया अगर नगमा सैलाब न होता
आंखों में अगर आज वो महताब न होता
मैं अपने लिए सुबह तलक ख्वाब न होता

Comments

  1. बहुत खूब !
    अलीम जी बहुत अच्छा लिखा है

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  2. bahut bahut shukriya aap dono ka ....ki aapne hamari hausala afzai ki....tahnx again

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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