पाक दामन दिख रहे हैं, दिन में हम भी दोस्तों।
रात का मत ज़िक्र करना, क्या पता कैसे-कहाँ?
पाक दामन दिख रहे हैं दिन में वो भी दोस्तों।
रात भी शर्मा के जिनसे, दिनमें दिखती है नहीं।
सागरों-मीना 'सलिल' को दिन में छू पाते नहीं।
रात हो, बरसात हो तो कोई क्यों इनसे बचे?
रात की बात ही निराली है।
उजली सूरत भी लगे काली है॥
अँधेरा जितना घना हो रात में।
सुबह उतनी खूबसूरत हो 'सलिल'॥
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रात का मत ज़िक्र करना, क्या पता कैसे-कहाँ?
पाक दामन दिख रहे हैं दिन में वो भी दोस्तों।
रात भी शर्मा के जिनसे, दिनमें दिखती है नहीं।
सागरों-मीना 'सलिल' को दिन में छू पाते नहीं।
रात हो, बरसात हो तो कोई क्यों इनसे बचे?
रात की बात ही निराली है।
उजली सूरत भी लगे काली है॥
अँधेरा जितना घना हो रात में।
सुबह उतनी खूबसूरत हो 'सलिल'॥
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बहुत प्यारे अशआर हैं, और पहला तो कमाल का है।
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TSALIIM
SBAI
बहुत खूब ............ शानदार और जानदार
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