एक समस्या पाकिस्तान की फौज को लेकर है जिसने पिछले दो दशक के दौरान एक ‘वैचारिक’ बाना धारण कर लिया है। इसकी शुरुआत जिया उल हक के जमाने में हुई थी जब धीरे-धीरे सेना का इस्लामीकरण किया जाने लगा।
सामयिक x गुरचरन दास
सामयिक x गुरचरन दास
पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर सीमांत प्रांत में तालिबान के खिलाफ पाकिस्तानी फौज की सफलता के बावजूद वहां स्थिति गंभीर बनी हुई है। मेरे एक पाकिस्तानी मित्र ने बताया कि इलाके के सम्पन्न लोग स्थिति के और भी बदतर होने से पहले ही इलाका छोड़ देना चाहते हैं।
पाकिस्तान लंबे अर्से से अपने यहां तालिबान की उपस्थिति से इनकार करता आया है। अब अमेरिका के दबाव में आकर अंतत: उसने कार्रवाई शुरू की है। पाकिस्तान स्वयं में एक बहुत बड़ी समस्या है और मुझे लगता है कि बड़ी समस्या को छोटे-छोटे टुकड़ों मंे बांटकर देखना कहीं आसान होगा। मैं पाकिस्तान नामक बड़ी समस्या को चार छोटी-छोटी समस्याओं - तालिबान, पाकिस्तानी फौज, कश्मीर और उपमहाद्वीप में स्थाई शांति के रूप में बांटता हूं।
सबसे पहले तालिबान से शुरुआत करते हैं। अफगानिस्तान में अफीम की खेती तालिबान के लिए धनराशि जुटाने का बड़ा स्रोत है। आखिर इसका समाधान क्या है? कोलंबिया विश्वविद्यालय में भारतीय अर्थशास्त्री दीपक लाल ने एक जर्नल में लिखे आलेख में इसका समाधान बताया है।
वे लिखते हैं कि अमेरिका को अफीम की सारी फसल खरीद कर उसे मॉर्फीन मंे बदल देना चाहिए और यह मॉर्फीन तीसरी दुनिया के देशों को दान कर देनी चाहिए जो एड्स से संघर्ष कर रहे हैं। इससे तालिबान के लिए धन का एक बड़ा स्रोत खत्म हो जाएगा।
दूसरी समस्या पाकिस्तान की फौज को लेकर है जिसने पिछले दो दशक के दौरान एक ‘वैचारिक’ बाना धारण कर लिया है। इसकी शुरुआत जिया उल हक के जमाने में हुई थी जब धीरे-धीरे सेना का इस्लामीकरण किया जाने लगा। सेना में शहरों के ऐसे युवा भर्ती होने लगे जो कट्टर इस्लामिक विचारधारा में रंगे हुए हैं।
इनकी तालिबान के प्रति सहानुभूति रही है। इन्हें पीढ़ियों से यही बताया जाता रहा है कि उनका असली दुश्मन भारत है। ऐसे में पाकिस्तानी सेना के ऐसे फौजियों के लिए तालिबान के खिलाफ लड़ाई दुविधा का सबब बन गई है। इससे पाक फौज में विद्रोह की स्थिति भी पैदा हो सकती है। इसका समाधान इसी मंे है कि उसे यह विश्वास दिलाना होगा कि असल दुश्मन भारत नहीं है।
तीसरी समस्या कश्मीर की है। हम इस समस्या के समाधान के कई ऐतिहासिक मौके गंवा चुके हैं। पाकिस्तानियों, भारतीयों और कश्मीरियों को इस मुद्दे पर सहमत किया जाना चाहिए कि नियंत्रण रेखा में ही इस समस्या का स्थाई समाधान है।
इसके समाधान का अच्छा मौका बांग्लादेश युद्ध के समय आया था, जब पाक सेना के अधिकारियों व जवानों को छोड़ने के बदले में यह शर्त रखी जा सकती थी। भारत-पाक के बीच जारी शांति वार्ताओं के दौरान मुशर्रफ इस विचार के नजदीक पहुंच भी गए थे।
जहां तक भारत और पाकिस्तान के बीच स्थाई संबंधों का सवाल है, इसके लिए दोनों देशों को ही पहल करनी होगी। दीर्घकालीन शांति उपमहाद्वीप के देशों के एक परिसंघ के रूप में संगठित होने से संभव हो सकती है।
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बस्तुतः पाकिस्तान नाम का कोई देश,राष्ट्र है ही नही, वहां की जो भी जनता है सभी हिन्दुओं से परिवर्तित, भारतीय ही है। दिल से, अन्तर्मन से, व्यवहार विचार से,आदतों से वे हिन्दू, हिन्दुस्तानी ही हैं।वह तो कुछ सर् फ़िरे लोगों की मूर्खता का परिणाम था पाकिस्तान । अतः इसका एक मात्र पक्का हल -पाकिस्तान का भारत में विलय ही है।
ReplyDeleteगुप्ता जी की बात से असहमत हूँ की पाक जैसी नापाक जगह को हिन्दुस्तान मे मिलाया जाये
ReplyDeleteगुप्ता जी की बात से असहमत हूँ की पाक जैसी नापाक जगह को हिन्दुस्तान मे मिलाया जाये
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