मानसिक गुलामी (भाग-१)
कांग्रेस और कांग्रेसी नेताओं का स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व व पश्चात् का अतीत यही प्रर्दशित करता है कि उनको भारतीय लोगों और भारतीय विरासत में विश्वास के अभाव का रोग है। उनकी आत्महीनता ने उन्हें समस्याओं के समाधान के लिए देश से बाहर तकते रहने की आदत डाल दी है । परिणामस्वरुप देश के इतिहास और परम्पराओं में से उद्धृत एक राष्ट्रीय दृष्टिकोण के स्थान पर ये विदेशों से विचार , सिद्धांत और व्यक्तिओं को अपने प्रतिनिधित्व और अपनी सुरक्षा के लिए आयात करते हैं। खिलाफत को संचालित करने के लिए परामर्श हेतु ,वेरिओर एल्बिन , उद्योगों के लिए रुसी प्रारूप आदि-आदि कांग्रेस पार्टी का पर- राष्ट्रों से विचार ,नीति और नेताओ (सोनिया गाँधी ) के आयात का प्रमुख संदेश है ।
इन सब को देख कर यही निष्कर्ष निकलता है कि कांग्रेस पार्टी और उसके अनुयायिओं के पास अपना कोई राष्ट्रवादी दृष्टिकोण , कोई नजरिया नही है । वे आज भी भारत राष्ट्र को एक औपनिवेशिक शासन के रूप में समझते हैं जिसे यूरोप वालों की जगह भारतवासी चला रहे हैं। परन्तु जब भारत के लोगों ने एक स्वर से यूरोप द्वारा थोपी , इस व्यवस्था को नकार दिया है तो इन्होने , एक विदेशी को ले आना , तय कर लिया है ताकि उनके स्थान पर वह इनकी अपेक्षा अधिक श्रेष्ठ तरीके में कम कर सके । यह बात दूसरी है कि मानसिक गुलामी की इस कांग्रेसी परम्परा ने सब कुछ बरबाद कर दिया है , और आगे भी यही होता रहेगा ।
स्पष्ट है किभारत जैसा विशाल राष्ट्र , उधार ली हुई नीव पर खड़ा नही हो सकता और न ही आयातित अन्न से अपने करोडों देशवासिओं का पेट नहीं भर सकता है. एक दल जो दावा करता है , जो कहता है, कि उसने राष्ट्रीय संघर्ष का नेतृत्व किया था वो दल औपनिवेशिक चिह्नों , मूल्यों और नीतियों को यहाँ तक कि यूरोपीय शासन की वापसी को भी इतनी चीपकाहट के साथ क्यूँ संभाले हुए है ? उत्तर बहुत आसान है - इसकी कोई ,कैसी भी राष्ट्रीय विचारधारा ही नहीं है . और जो है वो छद्म औपनिवेशिकता व छद्म धर्मनिरपेक्षता . अभी तक के लिए इतना ही आगे इस भूमिका को विस्तार से आपके समक्ष अनेक राजनितिक विशेषज्ञों का सन्दर्भ देते हुए प्रस्तुत करूँगा ..........
कांग्रेस और कांग्रेसी नेताओं का स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व व पश्चात् का अतीत यही प्रर्दशित करता है कि उनको भारतीय लोगों और भारतीय विरासत में विश्वास के अभाव का रोग है। उनकी आत्महीनता ने उन्हें समस्याओं के समाधान के लिए देश से बाहर तकते रहने की आदत डाल दी है । परिणामस्वरुप देश के इतिहास और परम्पराओं में से उद्धृत एक राष्ट्रीय दृष्टिकोण के स्थान पर ये विदेशों से विचार , सिद्धांत और व्यक्तिओं को अपने प्रतिनिधित्व और अपनी सुरक्षा के लिए आयात करते हैं। खिलाफत को संचालित करने के लिए परामर्श हेतु ,वेरिओर एल्बिन , उद्योगों के लिए रुसी प्रारूप आदि-आदि कांग्रेस पार्टी का पर- राष्ट्रों से विचार ,नीति और नेताओ (सोनिया गाँधी ) के आयात का प्रमुख संदेश है ।
इन सब को देख कर यही निष्कर्ष निकलता है कि कांग्रेस पार्टी और उसके अनुयायिओं के पास अपना कोई राष्ट्रवादी दृष्टिकोण , कोई नजरिया नही है । वे आज भी भारत राष्ट्र को एक औपनिवेशिक शासन के रूप में समझते हैं जिसे यूरोप वालों की जगह भारतवासी चला रहे हैं। परन्तु जब भारत के लोगों ने एक स्वर से यूरोप द्वारा थोपी , इस व्यवस्था को नकार दिया है तो इन्होने , एक विदेशी को ले आना , तय कर लिया है ताकि उनके स्थान पर वह इनकी अपेक्षा अधिक श्रेष्ठ तरीके में कम कर सके । यह बात दूसरी है कि मानसिक गुलामी की इस कांग्रेसी परम्परा ने सब कुछ बरबाद कर दिया है , और आगे भी यही होता रहेगा ।
स्पष्ट है किभारत जैसा विशाल राष्ट्र , उधार ली हुई नीव पर खड़ा नही हो सकता और न ही आयातित अन्न से अपने करोडों देशवासिओं का पेट नहीं भर सकता है. एक दल जो दावा करता है , जो कहता है, कि उसने राष्ट्रीय संघर्ष का नेतृत्व किया था वो दल औपनिवेशिक चिह्नों , मूल्यों और नीतियों को यहाँ तक कि यूरोपीय शासन की वापसी को भी इतनी चीपकाहट के साथ क्यूँ संभाले हुए है ? उत्तर बहुत आसान है - इसकी कोई ,कैसी भी राष्ट्रीय विचारधारा ही नहीं है . और जो है वो छद्म औपनिवेशिकता व छद्म धर्मनिरपेक्षता . अभी तक के लिए इतना ही आगे इस भूमिका को विस्तार से आपके समक्ष अनेक राजनितिक विशेषज्ञों का सन्दर्भ देते हुए प्रस्तुत करूँगा ..........
बहुत गम्भीर विवेचन आरम्भ किया है। अगली कडियों की प्रतीक्षा रहेगी।
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SBAI TSALIIM
गम्भीर विवेचन, अगली पोस्टों कीप्रतीक्षा रहेगी।
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SBAI TSALIIM
bimaru soch ka mansik kachra............
ReplyDeleteबहुत अच्छा, गम्भीर व सामयिक ,दूर गामी प्रभाव वाला विषय है। महत्मा गान्धी ने स्वतन्त्रता के पश्चात सुझाव दिया था कि कान्ग्रेस् को समाप्त कर दिया जाना चाहिये ,इसका उद्देश्य पूरा होचुका है। अन्यथा इसके लोग आज़ादी में अपने योगदान को भुनाने लग जायेंगे ,ओर स्वतन्त्रता के बाद स्वराज्य व सुराज का उद्देश्य भूल जायेंगे। वही हो रहा है,बा की कसर सदैव भारत से बाहर की विचार धरा को ही महावाक्य मानने वाले साम्य्वादी ,कम्युनिस्त पूरी कर रहे हैं।
ReplyDeletemahatma gandhi ne bjp aur sangh ko nahin dekha tha agar dekha hota to yeh na kehta
ReplyDeletesale jis paschim ko kos rahe subah tatti usi paschim ke banaye kamood pe baith the hai sara din usi paschim ki banayai vastuye istmaal karte hai...raat ko internet pe baith kepaschim aur congress ko galyian nikaal te hai
ReplyDeletesale hitler ki najayjaz aulaad......
salo ikk cheej ka naam bata lo jo tumne khud bana ke duniya ko di hai benchod sale..............
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