है लहर जानती तल की गहराइयाँ ।
आदमी का वजन उस की परछाईयाँ ।
आंसुओ की किताबो में पढ़ लीजिये -
जिंदगी की कसक और रुसवाईयाँ ॥
छोड़ अमृत गरल की किसे प्यास है
कल से अनजान लोभ का दास है।
आदमी राम- रहमान कोई भी हो -
चार काँधा, कफ़न आखिरी आस है॥
प्रीत परवान चढ़ जाय तो गीत है ।
यदि आँखों से वह जाय तो गीत है ।
मन में बरमाल की कामनाएं लिए -
फूल अर्थी पे चढ़ जाए तो गीत है॥
मेरे नैनो की बदरी सजल हो गई ।
मन के आकाश में सुधि विकल हो गई ।
देख कर खोदना उंगलियों से जमीं -
झुक के पलके उठी तो गजल हो गई ॥
डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'
Comments
Post a Comment
आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर