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Loksangharsha: खुदगर्ज जिंदगी का यूँ ......

खुदगर्ज जिंदगी का यूँ ......



खुदगर्ज जिंदगी का यूँ विस्तार हो गया ।
हर आदमी दौलत का परस्तार हो गया ॥

दिल दे के दिल की आस में दीवाना हो गया -
अब आदमी का प्यार भी व्यापार हो गया ॥

कुछ तो बुझा दिए थे जलाने के वास्ते
कुछ का जलन ही बाँटना किरदार हो गया॥

यूँ दर्द जिंदगी में बेहिसाब बेगुनाह मिल गया
कुदरत का फैसला भी गुनाहगार हो गया ॥

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

Comments

  1. 'अब आदमी का प्यार भी व्यापार हो गया.'
    -आज के इस बाजार आधारित व्यवस्था में यही होगा

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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