Loksangharsha: बहारें
बहारें जब गुजरती है ॥
कई चोटें उभरती है ॥
कहीं सरगम हंसी,खुशियाँ -
कहीं आहे निकलती है ॥
खुदा महफूज रख बेटी -
चिताएं रोज जलती है ॥
कलेजा मुहँ को आता है -
कहीं जुल्फें बिखरती है ॥
-----------------डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही '
बहारें
बहारें जब गुजरती है ॥
कई चोटें उभरती है ॥
कहीं सरगम हंसी,खुशियाँ -
कहीं आहे निकलती है ॥
खुदा महफूज रख बेटी -
चिताएं रोज जलती है ॥
कलेजा मुहँ को आता है -
कहीं जुल्फें बिखरती है ॥
-----------------डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही '
अच्छी रचना पढने का मौका दिया संजय जी,आभार आपका और राही साब को बधाई।
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