जानी जानी सब अनजानी हो गई।
जानी -जानी सब अनजानी हो गई।
मेरे संग थोडी बेईमानी हो गई॥
भूखी भोर रात भर कराहती रही -
कैसी बेमिसाल ये गरानी हो गई ॥
सत्ता -सुख-वैभव के जाल में फ़ँसी -
राम वाली आस्था पुरानी हो गई ॥
स्वप्न में भी जलती चिताएं दिखती -
हाय मेरी बिटिया सायानी हो गई ॥
तेरे इक इशारे से बदल गया सब-
सूनी सूनी शाम भी सुहानी हो गई ॥
------------------ डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'
यशवीर जी की रचनाओं ने दिल जीत लिया
ReplyDeleteपढ़कर मजा गया
शुक्रिया सुमन जी
जानी -जानी सब अनजानी हो गई।
ReplyDeleteमेरे संग थोडी बेईमानी हो गई॥
भूखी भोर रात भर कराहती रही -
कैसी बेमिसाल ये गरानी हो गई
bahut sundar rachana badhai.
बहुत अच्छा लिखा है आपने.
ReplyDeleteबढ़िया लेखन
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