Skip to main content

क्या लोकतंत्र अब मर चुका है.......??

दोस्तों.....आज सवेरे से ही मन बड़ा व्यथित है.......आज अपनी पत्नी के संग भारत के लोक सभा चुनाव का अपना वोट देने गया था....मगर अपने घर से दो-ढाई किलोमीटर दूर तक के रस्ते में पड़ने वाले तमाम बूथों पर एक अजीबो-गरीब सन्नाटा पसरा देखा......हम अपने बूथ पर पहुंचे तो मतदानकर्मियों के अलावा हम दो मतदाता ही वहाँ थे....उससे पूर्व और बाद के कई मिनटों तक भी यही हाल था....इससे इस सन्नाटे से ज्यादा हम दोनों ही सन्नाटे में गए....हम दोनों के लिए ही यह दृश्य एकदम से अचम्भाकारी था.....हम एकदम से चंद सेकंडों में अपना वोट दे चुके थे....सच कहूँ तो यह सब मुझे बड़ा आद्र कर गया.....भारत में मौजूद लोकतंत्र...चाहे यह जैसा भी है....मेरा इसके प्रति बड़ा आदर है....मैं जैसा भी हूँ.....इसमें इसका भी बड़ा हाथ है....मगर यह इस कदर मरणासन्न हो जाए.....लाश सा हो जाए तो मन का व्यथित हो जाना लाजिमी ही है ना.....!!
............आज अपने काम-धाम आदि छोड़कर मैं यही पता करता रहा....कि कहाँ-कहाँ क्या हाल है... अपने दोस्तों अन्य जानकारों और यहाँ तक कि अपने स्टाफों के क्षेत्रों का हाल-चाल लेता-लेता और भी ज्यादा व्यथित होता चला गया.........यहाँ तक कि मेरे एक स्टाफ पवन ने मुझे यह भी बताया उसके मोहल्ले से ग्यारह बजे तक सिर्फ़ दो ही लोग वोट देने निकले....मेरे दोस्तों के दोस्तों ने भी अपने मोहल्ले का यही हाल बताया....इस चुनाव में वोट के प्रति गैर-रुझान से और मतदाताकर्मियों के रजिस्टरों में दर्ज वोटों के प्रतिशत से यह आंकडा कुल-मिलकर बीस प्रतिशत भी नहीं पंहुचता.....इससे ज्यादा आंकडा अगर सामने आता है.....तो इसका अर्थ क्या है....यह बिल्कुल साफ़ है.....!!
दोस्तों वैसे तो यह कहने के लिए आया था कि जिस देश की जनता को वोट देने तक की फुर्सत तक नहीं....वो देश के बारे में किसी भी तरह की बात करने की हकदार भी नहीं....चाहे वह बात अच्छी हो या बुरी....!! मगर अलग-अलग लोगों से बात करने पर यह पता चला कि दरअसल जनता को किसी पर कोई विश्वास ही नहीं...और खड़े उम्मीदवारों में एक भी उसकी नज़र में "टके के भाव"का नहीं.....मैं ख़ुद भी यही पा रहा हूँ....मैं ख़ुद जिस व्यक्ति को वोट देकर गया हूँ....उससे मेरी तनिक भी आस नहीं है....और दरअसल उसने अपने सांसद होने के लंबे काल में मेरे शहर के लिए कुछ किया भी नहीं है....और ना ही संसद में उसकी आवाज़ कभी सुनाई दी....बेशक वो भला आदमी है.....और उसने अपने लिए ज्यादा कुछ "बनाया"भी नहीं.....मगर उससे क्या....सांसद का मतलब जनता के लिए काम.....बगैर उसके उसका मतलब ही क्या.....!!
दोस्तों......राजनीति की इस दशा के लिए बेशक राजनीतिक नेता ही जिम्मेवार हैं.....मगर सच बताऊँ तो हम भी कोई कम जिम्मेवार नहीं हैं इस परिस्थिति के लिए....अगर हम इसी तरह मुहँ सी कर.....और हाथ-पर-हाथ धर कर बैठ गए तो हमारी और भी मिट्टी पलीत हो जाने वाली है....और बेशक राजनीति अब तक के सबसे गंदे लोगों के हाथों में जाकर जनता के लिए बिल्कुल नाकारा हो चुकी है.....और इसे तमाम स्वार्थी तत्वों ने बिल्कुल ही छिछला बना दिया है.....मगर सिर्फ़ यही एक वह वजह है कि इसे हमें अपना संबल प्रदान करना होगा... अब इससे गंदा मानकर इससे दूर जाने बजाय इसमें घुसना ही होगा....और देश के नौजवानों को एक मिशन बनाकर इसे अपनाना होगा.....वैसे भी एक बड़ा वर्ग बेरोजगार है....अगर उसे सही दिशा दे दी जाए और उसे यह बताने में गर हम कामयाब हो जाएँ कि ग़लत कर्मों से बेहतर क्या यह नहीं होगा कि तुम राजनीति की गंगा को ही साफ़ कर दो....??.....और इस यज्ञ में हम तुम्हारे साथ तन-मन-धन से साथ हैं.....!!
दोस्तों अब भारत वासियों को आगे बढ़ना ही होगा.....चोर-उच्च्क्कों के हाथ में अपना घर सौंप कर हम चैन की नींद कैसे सो सकते हैं.....??.....सिर्फ़ अपने घर....अपनी बीवी.....अपने बच्चों की चिंता मरे रहने वाले हम तमाम लोगों को हर हाल में जागना होगा.....क्योंकि ये चोर-उच्चक्के हमारे तन से तमाम कपड़े तो ले जा चुके हैं.....अब सिर्फ़ लंगोटी ही बाकी है......हाँ दोस्तों.....भारत के तन पर अब सिर्फ़ लंगोटी-भर ही बाकी रह गई है....वो भी फटी-छूटी-मैली-कुचैली......और उसके हाल पर सिर्फ़ इसलिए छोड़ देना कि वह हमारी अपनी नहीं है....बहुत बड़ी "कमीनी-पंती" होगी.........और दोस्तों....अब भी अगर हमने अपनी भारतीयता का सबूत....यानि कि भारत के सभ्य नागरिक होने का सबूत नहीं दिया तो आने वाले भारत के तमाम बच्चे हमें हमारी इस "कमीनी-पंती"के लिए कभी माफ़ नहीं करेगी.........!!

Comments

  1. नहीं लोकतंत्र मरा नहीं है उसका नवीनीकरण करना होगा

    ReplyDelete
  2. देखियेगा अगर यही हालत रही तो एक दिन मतदान प्रतिशत २-५ रह जायेगा ! अगर रह तरफ भेडिया हो और एक तरफ सियार और आपकी हालत बकरी जैसी हो तो आप किसका शिकार बनना पसंद करेंगे ! ये नेता इस लायक हैं ही नहीं की इनको वोट दिया जाये ! मध्य प्रदेश का उदहारण ही ले लीजिये ! दिग्विजय सिंह ने १० वर्षों तक इस प्रदेश को कंगाल करने काम किया न बिजली दे पाए न सड़क ! जैसे तैसे जनता ने इन्हें बाहर किया फिर भी हर बार चले आते हैं यह बोल के की अब हम विकास करेंगे ! अगर वोट प्रतिशत बढ़ाना है तो उचित प्रत्याशी का होना बहुत जरूरी है ! जहाँ तक मेरे शहर की बात है तो यहाँ वर्तमान संसद ने काम तो किया है भले ही १०० प्रतिशत न किया हो ५० प्रतिशत तो किया ही है ! इसलिए हम ३०-३५ दोस्तों ने क्या साथ जाकर वोट किया है ! अगर प्रत्याशी लायक है तो जनता अवश्य वोट करेगी ! वैसे अगर सरकार इ वोटिंग का प्रावधान चालू कर दे तो वोटिंग २०-३० प्रतिशत और बढ़ सकती है !

    ReplyDelete

Post a Comment

आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

Popular posts from this blog

डॉ.प्रभुनाथ सिंह भोजपुरी के अनन्य वक्ता थे -केदारनाथ सिंह

डॉ.प्रभुनाथ सिंह के स्वर्गवास का समाचार मुझे अभी चार घंटा पहले प्रख्यात कवि डॉ.केदारनाथ सिंह से मिला। वे हावड़ा में अपनी बहन के यहां आये हुए हैं। उन्हीं से जाना भोजपुरी में उनके अनन्य योगदान के सम्बंध में। गत बीस सालों से वे अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन नाम की संस्था चला रहे थे जिसके अधिवेशन में भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित हुआ था तथा उसी की पहल पर यह प्रस्ताव संसद में रखा गया और उस पर सहमति भी बन गयी है तथा सिद्धांत रूप में इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया गया है। केदार जी ने बताया कि डॉ.प्रभुनाथ सिंह का भोजपुरी में निबंध संग्रह प्रकाशित हुआ है और कविताएं भी उन्होंने लिखी हैं हालांकि उनका संग्रह नहीं आया है। कुछ कविताएं अच्छी हैं। केदार जी के अनुसार भोजपुरी के प्रति ऐसा समर्पित व्यक्ति और भोजपुरी के एक बड़े वक्ता थे। संभवतः अपने समय के भोजपुरी के सबसे बड़े वक्ता थे। बिहार में महाविद्यालयों को अंगीकृत कालेज की मान्यता दी गयी तो उसमें डॉ.प्रभुनाथ सिंह की बड़ी भूमिका थी। वे उस समय बिहार सरकार में वित्तमंत्री थे। मृत्यु के एक घंटे पहले ही उनसे फोन से बातें हुई ...

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा