कबीरा शब्द अपने आप में एक व्यापक अर्थ समेटे हुए है । मेरे ब्लॉग का नाम कबीरा खड़ा बाज़ार में रखने के पिछे एक बड़ा उद्देश्य है। "कबीर " मात्र एक संत का नाम नही , यह अपने आप में एक बड़ी अवधारणा है । आपका नाम जो भी हो, आप अपने आप में एक पुरी प्रक्रिया हैं। कनिष्क , यानि मैं , एक पुरी प्रक्रिया है , किसी को किसी जैसा बनने के लिए उस पुरी प्रक्रिया से गुजरना होगा। ... "कबीरा " शब्द मात्र से हीं जो छवि उभरती है वह किसी आन्दोलन को प्रतिबिंबित करती है ।
"कबीर" ने जीवन पर्यंत तात्कालिक सामाजिक बुराइयों पे बड़े सुलझे ढंग से प्रहार किया। कबीर स्वयं में एक क्रांति थे । जाती धर्म और वर्ग से ऊपर उठकर उन्होंने सामान रूप से सभी पर कटाक्ष किया। कबीर "संचार "या आप जनसंचार कहें , की आत्मा हैं। "जनसंचार का काम सूचना देना "बड़ी हीं तुक्ष मानसिकता को दर्शाता है ।
"सुचना देना "और "ज्ञान देना " दोनों में बड़ा हीं अन्तर है। परन्तु आज हमारा बौधिक स्तर इतना निक्रिष्ट हो गया है की ये फर्क समझ में नही आता। समझ में जिसे आता भी है तो वो इसके व्यापक अर्थ को जीवन में उतारना नही चाहता । किताबों से उपार्जित ज्ञान वास्तव में सुचना मात्र है। जब तक उसमे जनकल्याण और सार्थक , शुभ का उद्देश्य न छिपा हो , ज्ञान शब्द की परिभाषा पूर्ण नही होती।तभी तो आज कथित ज्ञान को पाकर भी लोग , आतंकवाद में जीवन का उद्देश्य पाल रहे हैं। मुझे हमेशा हीं इस बात का गर्व रहा कि , हम भारतीय भले हीं नागरिक जीवन प्रणाली के स्तर पर , सभ्य नही रहे हों , या यूँ कहे वर्तमान विकास की परिभाषा के कसौटी पर पिछड़े रहे हों। परन्तु मानव जीवन की, जीवन की सम्पूर्णता का आभास जितना हमारी जीवन प्रणाली में मिलता है , उतना कोई और सभ्यता में नही। इस बात में मैं स्व्यम से ज्यादा विश्वास करता हूँ।
हाँ तो.... आज का कबीर , यानि संचार बाज़ार में खड़ा है । बाज़ार के हाथ का पिठ्ठू बनकर । एसे हजारों उदहारण मिल जायेंगे जब "पत्रकारिता " पैसों की रखैल बन , उनके इशारे पर ठुमके लगाती है। चाहे वह , ऐड्स को लेकर उठाया गया बवाल हो , आयोडिन युक्त नमक का मामला हो या गत वर्ष के महाप्रलय पर दिखने जाने वाला नाटक । सब के पीछे एक सोची समझी , फुल -प्लान्ड साजिश है । मिडिया का बाज़ार आब चंद बड़े महाराथिओं के इशारे पर चलता हैं। विश्व की दस बड़ी कम्पनियो का पुरे विश्व के संचार तंत्र पे कब्ज़ा है । अंदाजा लगना मुश्किल नही कि ,इनमे से अधिकांश अमेरिका कि कंपनिया हैं, जैसे "टाइम वार्नर " रयुपर्ट मर्डोक साहब या वाल्ट डिज़नी । इन दसो कम्पनिओं ने एक बड़ी रणनीति के तहत , एक दुसरे के हितों को देखते हुए , बड़ा शेयर खरीद रखा है । ताकि कोई किसी का अहित न कर सके । सभी के वेंचर एक दुसरे में हैं।
संचार के तीन प्रमुख साधन , टी वी , टेलीफोन और इंटरनेट ..आज कल एक हीं साथ इसीलिए उतरा जा रहा है , ताकि आपके पुरे संचार प्रक्रिया को नियंत्रीत किया जा सके। इस बाज़ार में इतनी बड़ी-बड़ी मछलियाँ हैं कि हमारे छोटे झींगा कि क्या बिसात ?
हाँ , जब कभी ये, छोटी झींगा मछली किसी बड़े मछली के रस्ते में रोड़ा बनती नज़र आती है तो अपने मानवधिकार , लेबर कानून या पर्यावरण के मुद्दे को लेकर इनपर केस ठोक, इनका बेडागर्क कर दिया जाता है। तब या तो ये झींगा, उस दानव कंपनी का अधिपत्य स्वीकार कर लेती है , उसका पिठ्ठू बन जाती है , या मटियामेट हो जाती है । तभी तो आज आपको मुफ्त में अखबार दिए जा रहे है , और तो और पढने के पैसे भी मिलते हैं , अभी भारत में ऐसा नही है। परन्तु आपको तब आश्चर्य नही होना चाहिए , जब कल आप मुफ्त में टी वी बाटते देख लें ।
इस विषय को लेकर मैं बड़ी गहरी चिंता में हूँ। और मैंने व्यापक शोध- परख के बाद " कबीर" को लक्ष्य बनाया है। इसी उद्देश्य से अच्छे और सामान सोच रखने वालों को इकठ्ठा करने के लिए ब्लॉग जगत में कदम रखा। पूर्ण रूप से भारत में अश्था रखने वाला और भारत को पाश्चात्य द्वारा सुनियोजित सांकृतिक आतंकवाद से युद्घ लड़ने का उद्देश्य हीं अब जीवन धारा को नियंत्रित करेगा ।
"कबीर " को केन्द्र में रख कर एक सच्ची, जीवंत पत्रकारिता करने का उदेश्य है। फिलहाल हम एक ई-जर्नल से शुरुआत करते हैं। इसमे आप जैसे ब्लोग्गर्स का स्वागत है । आप नेतृत्व सम्भाल कर इस बड़े लक्ष्य के आगे , बौने बने कनिष्क का मार्गदर्शन करें । हमारी योजना जून महीने से , इस ई- जर्नल शुरु करने की है । इसके लिए पुरी योजना को अन्तिम रूप दिया जा रहा है , और कई गणमान्य व्यक्तिओं का अपेक्षा अनुसार सहयोग भी मिल रहा है ।
आपके इस अभियान को और व्यापक बनने के लिए हमने एक वेब- portal http://www.swarajtv.com/ की सुरुआत कर दी है । ये आपकी स्वर को और बुलंदी प्रदान करेगी।
कबीर भी इस स्थिति से वाकिफ थे , तभी तो उन्होंने वर्षों पहले कह दिया
"कबीरा खड़ा बाज़ार में लिए लुकाठी हाथ
जो घर जारो आपनो, हो लो हमरे साथ ....."
please mail me your opinion to greatkanishka@gmail.com , या विषय पर कोई सवाल सुझाव या आपति हो , तो भी आपका स्वागत है। http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com
"कबीर" ने जीवन पर्यंत तात्कालिक सामाजिक बुराइयों पे बड़े सुलझे ढंग से प्रहार किया। कबीर स्वयं में एक क्रांति थे । जाती धर्म और वर्ग से ऊपर उठकर उन्होंने सामान रूप से सभी पर कटाक्ष किया। कबीर "संचार "या आप जनसंचार कहें , की आत्मा हैं। "जनसंचार का काम सूचना देना "बड़ी हीं तुक्ष मानसिकता को दर्शाता है ।
"सुचना देना "और "ज्ञान देना " दोनों में बड़ा हीं अन्तर है। परन्तु आज हमारा बौधिक स्तर इतना निक्रिष्ट हो गया है की ये फर्क समझ में नही आता। समझ में जिसे आता भी है तो वो इसके व्यापक अर्थ को जीवन में उतारना नही चाहता । किताबों से उपार्जित ज्ञान वास्तव में सुचना मात्र है। जब तक उसमे जनकल्याण और सार्थक , शुभ का उद्देश्य न छिपा हो , ज्ञान शब्द की परिभाषा पूर्ण नही होती।तभी तो आज कथित ज्ञान को पाकर भी लोग , आतंकवाद में जीवन का उद्देश्य पाल रहे हैं। मुझे हमेशा हीं इस बात का गर्व रहा कि , हम भारतीय भले हीं नागरिक जीवन प्रणाली के स्तर पर , सभ्य नही रहे हों , या यूँ कहे वर्तमान विकास की परिभाषा के कसौटी पर पिछड़े रहे हों। परन्तु मानव जीवन की, जीवन की सम्पूर्णता का आभास जितना हमारी जीवन प्रणाली में मिलता है , उतना कोई और सभ्यता में नही। इस बात में मैं स्व्यम से ज्यादा विश्वास करता हूँ।
हाँ तो.... आज का कबीर , यानि संचार बाज़ार में खड़ा है । बाज़ार के हाथ का पिठ्ठू बनकर । एसे हजारों उदहारण मिल जायेंगे जब "पत्रकारिता " पैसों की रखैल बन , उनके इशारे पर ठुमके लगाती है। चाहे वह , ऐड्स को लेकर उठाया गया बवाल हो , आयोडिन युक्त नमक का मामला हो या गत वर्ष के महाप्रलय पर दिखने जाने वाला नाटक । सब के पीछे एक सोची समझी , फुल -प्लान्ड साजिश है । मिडिया का बाज़ार आब चंद बड़े महाराथिओं के इशारे पर चलता हैं। विश्व की दस बड़ी कम्पनियो का पुरे विश्व के संचार तंत्र पे कब्ज़ा है । अंदाजा लगना मुश्किल नही कि ,इनमे से अधिकांश अमेरिका कि कंपनिया हैं, जैसे "टाइम वार्नर " रयुपर्ट मर्डोक साहब या वाल्ट डिज़नी । इन दसो कम्पनिओं ने एक बड़ी रणनीति के तहत , एक दुसरे के हितों को देखते हुए , बड़ा शेयर खरीद रखा है । ताकि कोई किसी का अहित न कर सके । सभी के वेंचर एक दुसरे में हैं।
संचार के तीन प्रमुख साधन , टी वी , टेलीफोन और इंटरनेट ..आज कल एक हीं साथ इसीलिए उतरा जा रहा है , ताकि आपके पुरे संचार प्रक्रिया को नियंत्रीत किया जा सके। इस बाज़ार में इतनी बड़ी-बड़ी मछलियाँ हैं कि हमारे छोटे झींगा कि क्या बिसात ?
हाँ , जब कभी ये, छोटी झींगा मछली किसी बड़े मछली के रस्ते में रोड़ा बनती नज़र आती है तो अपने मानवधिकार , लेबर कानून या पर्यावरण के मुद्दे को लेकर इनपर केस ठोक, इनका बेडागर्क कर दिया जाता है। तब या तो ये झींगा, उस दानव कंपनी का अधिपत्य स्वीकार कर लेती है , उसका पिठ्ठू बन जाती है , या मटियामेट हो जाती है । तभी तो आज आपको मुफ्त में अखबार दिए जा रहे है , और तो और पढने के पैसे भी मिलते हैं , अभी भारत में ऐसा नही है। परन्तु आपको तब आश्चर्य नही होना चाहिए , जब कल आप मुफ्त में टी वी बाटते देख लें ।
इस विषय को लेकर मैं बड़ी गहरी चिंता में हूँ। और मैंने व्यापक शोध- परख के बाद " कबीर" को लक्ष्य बनाया है। इसी उद्देश्य से अच्छे और सामान सोच रखने वालों को इकठ्ठा करने के लिए ब्लॉग जगत में कदम रखा। पूर्ण रूप से भारत में अश्था रखने वाला और भारत को पाश्चात्य द्वारा सुनियोजित सांकृतिक आतंकवाद से युद्घ लड़ने का उद्देश्य हीं अब जीवन धारा को नियंत्रित करेगा ।
"कबीर " को केन्द्र में रख कर एक सच्ची, जीवंत पत्रकारिता करने का उदेश्य है। फिलहाल हम एक ई-जर्नल से शुरुआत करते हैं। इसमे आप जैसे ब्लोग्गर्स का स्वागत है । आप नेतृत्व सम्भाल कर इस बड़े लक्ष्य के आगे , बौने बने कनिष्क का मार्गदर्शन करें । हमारी योजना जून महीने से , इस ई- जर्नल शुरु करने की है । इसके लिए पुरी योजना को अन्तिम रूप दिया जा रहा है , और कई गणमान्य व्यक्तिओं का अपेक्षा अनुसार सहयोग भी मिल रहा है ।
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कबीर भी इस स्थिति से वाकिफ थे , तभी तो उन्होंने वर्षों पहले कह दिया
"कबीरा खड़ा बाज़ार में लिए लुकाठी हाथ
जो घर जारो आपनो, हो लो हमरे साथ ....."
please mail me your opinion to greatkanishka@gmail.com , या विषय पर कोई सवाल सुझाव या आपति हो , तो भी आपका स्वागत है। http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com
I feel sorry to put this comment. but, i want to draw your attention towards the seriousness of the issue concerned.
ReplyDeleteplease take trouble to go through such long article, but this would certainly help you to ponder upon the pythigenous menace.....
Let the talk continue, and let the suggestions flow... a train of suggestions and discussion, will produce truck load of newideas and certainly, there are people over blog , eho square with the notion..
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