पद -तुकांत कविता का एक छंद होता है -गीत जैसा --
हे घन बरसो बन कर प्यार।
प्रेम सुधा बन सरसे तन-मन जीवन हो रस सार।
नैन नैन मैं रस रंग बरसे सप्तम सुर झंकार।
मन मन हरषे जन जन झूमे , झूम उठे संसार।
प्रीति की वंशी बजे बसे जग राधा-कान्ह सा प्यार।
प्रीति बसे मब सब जग अपना ,प्रीति के रंग हज़ार।
प्रीति के दीप जलाए चलो नर सब जग हो उजियार।
प्रीति किए से प्रीति मिले जग ,मिले सकल सुख सार।
श्याम जो प्रभु की प्रीति बसे मन ,मिले ब्रह्म ,जग सार।।
हे घन बरसों बन कर प्यार।
हे घन बरसो बन कर प्यार।
प्रेम सुधा बन सरसे तन-मन जीवन हो रस सार।
नैन नैन मैं रस रंग बरसे सप्तम सुर झंकार।
मन मन हरषे जन जन झूमे , झूम उठे संसार।
प्रीति की वंशी बजे बसे जग राधा-कान्ह सा प्यार।
प्रीति बसे मब सब जग अपना ,प्रीति के रंग हज़ार।
प्रीति के दीप जलाए चलो नर सब जग हो उजियार।
प्रीति किए से प्रीति मिले जग ,मिले सकल सुख सार।
श्याम जो प्रभु की प्रीति बसे मन ,मिले ब्रह्म ,जग सार।।
हे घन बरसों बन कर प्यार।
अच्छा लिखा है
ReplyDeleteइसी तरह लिखते जाइए