Skip to main content

अभिज्ञात को दिया जायेगा कौमी एकता पुरस्कार


कोलकाता - 'आल इंडिया कौमी एकता मंच' की ओर से अभिज्ञात को उनके उपन्यास 'कला बाजार' के लिए 'कौमी एकता पुरस्कार' देने का निर्णय लिया गया है। यह उपन्यास सन 2008 में आकाशगंगा प्रकाशन, नयी दिल्ली ने प्रकाशित किया है। 9 मई सन् 1857 को स्वतंत्रता संग्राम का ऐतिहासिक दिन है। उसकी वर्षगांठ पर 9 मई 2009 को यह पुरस्कार कोलकाता के कला मंदिर सभागार में आयोजित एक भव्य समारोह में प्रदान किया जायेगा। यह जानकारी मंच के महासचिव आफताब अहमद खान ने दी है। उन्होंने बताया कि 'कला बाजार' उपन्यास में विभिन्न धर्मों से जुड़े चरित्र एक-दूसरे की भावनाओं का जिस तरह से खयाल रखते हैं उससे हमारी कौमी एकता और साम्प्रदायिक सद्भाव को बल मिलता है। अभिज्ञात को इससे पहले 'आकांक्षा संस्कृति सम्मान' एवं एचडी मीडिया समूह का 'कादम्बिनी लघुकथा पुरस्कार' मिल चुका है। उनके छह कविता संग्रह 'एक अदहन हमारे अन्दर', 'भग्न नीड़ के आर पार', 'आवारा हवाओं के खिलाफ चुपचाप', 'वह हथेली' तथा 'दी हुई नींद' एवं दो उपन्यास 'अनचाहे दरवाज़े पर' और ' कला बाज़ार' प्रकाशित हैं। वे एक अच्छे कहानीकार भी हैं और उनकी कहानियां देश के प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। अभिज्ञात पेशे से पत्रकार हैं और सम्प्रति वे सन्मार्ग दैनिक में वरिष्ठ उप-सम्पादक हैं।
खान ने बताया कि आल इंडिया कौमी एकता मंच जरूरतमंद छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान करता है। समय-समय पर स्वास्थ्य परीक्षण शिविरों का आयोजन करता है। राष्ट्रीय एकता एवं साम्प्रदायिक सद्भाव से जुड़ी विचारगोष्ठियों आदि का आयोजन कराता रहा है तथा इस उद्देश्य से जुड़े़ व्यक्तियों को उनके योगदान के लिए सम्मानित करता है।

Comments

  1. इस शुभ अवसर पर आपको बधाई हो
    आप इसी तरह आगे बढ़ते जाएँ यही कामना है हमारी !

    ReplyDelete
  2. अच्छा लगा आपका यह लेख पढ़कर
    बहुत ही अच्छा लिखा है

    ReplyDelete
  3. अभिज्ञात जी आपको बहुत बहुत बधाई
    इसी तरह आगे बढ़ते रहें.

    ReplyDelete

Post a Comment

आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

Popular posts from this blog

डॉ.प्रभुनाथ सिंह भोजपुरी के अनन्य वक्ता थे -केदारनाथ सिंह

डॉ.प्रभुनाथ सिंह के स्वर्गवास का समाचार मुझे अभी चार घंटा पहले प्रख्यात कवि डॉ.केदारनाथ सिंह से मिला। वे हावड़ा में अपनी बहन के यहां आये हुए हैं। उन्हीं से जाना भोजपुरी में उनके अनन्य योगदान के सम्बंध में। गत बीस सालों से वे अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन नाम की संस्था चला रहे थे जिसके अधिवेशन में भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित हुआ था तथा उसी की पहल पर यह प्रस्ताव संसद में रखा गया और उस पर सहमति भी बन गयी है तथा सिद्धांत रूप में इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया गया है। केदार जी ने बताया कि डॉ.प्रभुनाथ सिंह का भोजपुरी में निबंध संग्रह प्रकाशित हुआ है और कविताएं भी उन्होंने लिखी हैं हालांकि उनका संग्रह नहीं आया है। कुछ कविताएं अच्छी हैं। केदार जी के अनुसार भोजपुरी के प्रति ऐसा समर्पित व्यक्ति और भोजपुरी के एक बड़े वक्ता थे। संभवतः अपने समय के भोजपुरी के सबसे बड़े वक्ता थे। बिहार में महाविद्यालयों को अंगीकृत कालेज की मान्यता दी गयी तो उसमें डॉ.प्रभुनाथ सिंह की बड़ी भूमिका थी। वे उस समय बिहार सरकार में वित्तमंत्री थे। मृत्यु के एक घंटे पहले ही उनसे फोन से बातें हुई ...

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा