सारांश - चूड़ी नहीं है...दिल है... देखो ...ये गीत तो आपने सुना ही होगा..!ठीक वही आजकल जूतों के बारे में हो रहा है..!आजकल अभिव्यक्ति का नया मध्यम बन गया है...ये जूता..!जिसे देखो वो फेंक रहा है!लेकिन जूता फेंकने के पीछे भावना कुछ और ही होती है..!जैसे की बुश साहब पर जूता इराकी निति के कारण पड़ा जबकि मंत्री जी सफाई जरनैल सिंह जी को पसंद नही आई...!लेकिन एक बात जरूर अलग है वो ये की जरनैल जी शायद केवल एक संदेश देना चाहते थे .नहीं तो...कुछ भी हो सकता था...!जबकि बुश साहब पर तो जूते पूरे .वेग से .और दो बार फेंके गए थे...!पर एक बार फेंको चाहे दो बार...धीरे फेंको चाहे जोर से...मतलब की बात ये है की ऐसा हुआ क्यों???नाराजगी की बात तो ठीक है पर इसे जायज़ नहीं ठहराया जा सकता...!अन्तराष्ट्रीय समुदाय में देश की किरकरी होगी..सो अलग...!इसलिए तो कहा गया की भावनाओं पर .कंट्रोल.....रखना सीखो...नहीं तो कहीं ऐसा नहीं हो की अगली बार प्रेस कांफ्रेस में सभी को नंगे .पाँव..ही बुलाया जाए.आगे यहाँ
केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..
बहुत अच्छा लिखा
ReplyDeleteअच्छा लेख है
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है
ReplyDeleteकाफी सुन्दर लिखा है
ReplyDeleteअच्छा लिखा है
ReplyDeleteसटीक लेखन