April 2009
प्रेम की परिभाषा ------------------------------
प्रेम की परिभाषा तुझी से साकार हैनारी तू ही जीवन का अलंकार है । तुझे नर्क का द्वार समझते हैं जो,उनकी दकियानूसी सोच पर धिक्कार है । दुनिया की आधी आबादी हो तुम,बेशक तुम्हे बराबरी का अधिकार है ।कंधे से कन्धा मिलाकर आगे बढो,तुम्हारी उड़ान ही तुम्हारी ललकार है ।
Posted by DR.MANISH KUMAR MISHRA at 06:11 0 comments
Labels: ग़ज़ल
प्रेम की परिभाषा ------------------------------
प्रेम की परिभाषा तुझी से साकार हैनारी तू ही जीवन का अलंकार है । तुझे नर्क का द्वार समझते हैं जो,उनकी दकियानूसी सोच पर धिक्कार है । दुनिया की आधी आबादी हो तुम,बेशक तुम्हे बराबरी का अधिकार है ।कंधे से कन्धा मिलाकर आगे बढो,तुम्हारी उड़ान ही तुम्हारी ललकार है ।
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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर