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ग़ज़ल

जुस्तुजू खोये हुए की उम्र भर करते रहे
चाँद के हमराह हम हर शब् सफर करते रहे
रास्तों का इल्म था हमको न सम्तो की ख़बर
शहरे न मालूम की चाहत मगर करते रहे
हमने ख़ुद से भी छुपाया और सारे शहर को
तेरे जाने की ख़बर दीवारों दर करते रहे
वोह न आएगा हमे मालूम था उस शाम भी
इंतज़ार उसका मगर कुछ सोचकर करते रहे
आज आया है हमे भी उन उदानो का ख्याल
जिनके तेरे जोमे में बे बालो पर करते रहे \

Comments

  1. आपने अपनी कविता में शब्दों को सुन्दर ढंग से पिरोया है।
    इससे भावों में जीवन्तता आ गयी है।
    अभिव्यक्ति सुन्दर और ग्राह्य है।

    ReplyDelete
  2. बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल पेश किया है आपने!

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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