प्रश्न चिन्ह
मेरा तन मैं बेचता, तुमको क्यों आपत्ति?
तुमने कब किसकी हरी, बोलो कहीं विपत्ति?
तन की करते फ़िक्र तुम, मन को दिया बिसार।
मन ही मन, मन पर किए, कितने ?
तन नश्वर बेचा अगर, तो क्यों हाहाकार।
शाश्वत निर्मल आत्मा, उसकी करो सम्हार॥
नारी के कौमार्य पर, क्यों रखता तू दृष्टि?
पगले क्यों यह भूलता, हुई वहीं उत्पत्ति॥
नर का यदि ख़ुद पर हुआ, मान्य सदा अधिकार।
नारी के हक का किया, बोलो क्यों प्रतिकार?
--दिव्यनर्मदा.blogspot .com
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मेरा तन मैं बेचता, तुमको क्यों आपत्ति?
तुमने कब किसकी हरी, बोलो कहीं विपत्ति?
तन की करते फ़िक्र तुम, मन को दिया बिसार।
मन ही मन, मन पर किए, कितने ?
तन नश्वर बेचा अगर, तो क्यों हाहाकार।
शाश्वत निर्मल आत्मा, उसकी करो सम्हार॥
नारी के कौमार्य पर, क्यों रखता तू दृष्टि?
पगले क्यों यह भूलता, हुई वहीं उत्पत्ति॥
नर का यदि ख़ुद पर हुआ, मान्य सदा अधिकार।
नारी के हक का किया, बोलो क्यों प्रतिकार?
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आचार्य संजीव जी आपकी तारीफ के काबिल शब्द मेरे पास नहीं है या मैं इस काबिल ही नहीं हूँ
ReplyDeleteआपका लेखन एक अजब जादू से भरा है जिसे साधारण का दर्जा नहीं दिया जा सकता
बहुत बढ़िया !