मैंने शाम के टेश किनारों पे
कितने हर्फे--दिलशाद लिखे
उजड़े बिखरे इस जीवन के
पुरजोर वफ़ा के साद लिखे
एक ख़त था अदा निराली थी
हर बार नए फरमान दिए
फिर जीने के अरमान दिए
पुर्जे-पुर्जे में टूटे हम
हर चाहत को फरियाद लिखे
मेरी राखों के नीलामी की
तुमने जो किमत लगायी थी
वो किमत दुनिया पूछेगी
हम तो किमत की दाद लिखे
उस शाम के टेश किनारे पे.......
कितने हर्फे--दिलशाद लिखे
उजड़े बिखरे इस जीवन के
पुरजोर वफ़ा के साद लिखे
एक ख़त था अदा निराली थी
हर बार नए फरमान दिए
फिर जीने के अरमान दिए
पुर्जे-पुर्जे में टूटे हम
हर चाहत को फरियाद लिखे
मेरी राखों के नीलामी की
तुमने जो किमत लगायी थी
वो किमत दुनिया पूछेगी
हम तो किमत की दाद लिखे
उस शाम के टेश किनारे पे.......
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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर