आज वामपंथ अगर कही अपने संपूर्ण कलाओं के साथ छटा बिखेर रहा है तो वो है जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय का कैम्पस... जिसे देखो वही वामपंथ की टोकरी सर पर लादे बैंगन- ब्रिंदा और करेला-करात को लेकर अपनी ज्ञान की दुकान को ढो रहा है .
वहां वास्तव में मार्क्सवाद को बोलने वाले लोग ज्यादा और जीने वाले लोग नगण्य हैं। वो क्या खाक पूंजीवाद के विरोध को मुखारीत कर सकता है जिस की बुनियाद की एक-एक ईंट भारत के पूंजीपतिओं के देन है। जिस जे० एन० यू० की स्थापना टाटा और बिडला के रहमो-करम से हुई , वो आज अपने को उसके विरोध में खड़ा करता है तो यह एक मात्र छलावा है और कुछ नही ! वास्तव में यह सब एक बड़ा सोचा समझा छद्मावरण है, जिसकी समझ हमारे सम्पादकीय ज्ञान की सीमा से परे है। ज्ञान और "सम्पादकीय ज्ञान " में बड़ा फर्क है। ज्ञान शब्द स्वयं में इतना विशाल और संपूर्ण है कि कोई भी विशेषण इस शब्द कि गरिमा को ठेस हिन् पहंचता है । इसे परिभाषित करना , इसकी सीमा को बाँधने जैसा है। हाँ तो जिस जे० एन० यू० से हमने समाजवाद की नब्ज़ को पहचानने कि अपेक्षा थी , क्या वो वास्तव में इस लायक है ?
सच कुछ और है । और वह है ---पूंजीवाद के बदले स्वरुप के भयंकर चेहरे को , जो वास्तविक पूंजीवाद से ज्यादा जहरीला और घातक है , जो आज न सिर्फ़ पूंजी को मध्य में रखता है बल्कि एक बड़ी सोची समझी रणनीति के तहत विश्व को अपने आवरण में ढकता जा रहा है।
आज रणनीति ये कहती है कि, परोक्ष रूप से किसी देश पर अपना अधिपत्य करना हो तो उसके बाज़ार में अपना इतना पैसा डाल दो, कि कल उस पैसे के निकल जाने के भय से वहां कि सरकार आपके खिलाफ चूँ तक न बोल पाए .... जो की अज चीन ने अमेरिका बाज़ार में किया और अमेरिका ने यूरोपियन बाज़ार में ...क्या आज इसी तरह पॉलिटिकल-कैपिटलिज्म, सोसिओ-कल्चरल कैपिटलिज्म जिसे आप सांस्कृतिक घुसपैठ का नाम दे रहे हैं या किसी देश की बुधि संसाधनों पे कब्ज़ा करने का खेल जारी नही !यह सब उसी पूंजीवाद का बदला हुआ रूप है ...यह वहीँ उपनिवेशवाद है जो नए रूप में आपके सामने खड़ा है और आपका "सम्पादकीय ज्ञान " उसकी चाल देख नही पा रहा ।
आज कि कूटनीति यही कहती है , अपना दुश्मन ख़ुद तैयार रखो , जो तुम्हारे पैसे को उपयोग में ला कर तुम्हारा विरोध करे। आप कल किसी गंभीर खतरे या चुनौती का सामना न करे , इस लिए ये अवश्यक है कि आप अपने खिलाफ होने वाले हर हलचल पर एक नज़र रखे, उसे एक प्लेटफोर्म दे ताकि जिसे भड़ास निकालनी हो , वह ए और शौक से निकाल ले। तो क्या यह सही नही कि जॉर्ज बुश का जो पुतला भारत में जलता है, वो स्वयं अमेरिका से बनकर आया होता है!
यह एक प्रयास है पूंजीपतिओं के खिलाफ उठने वाले आवाज़ को दबाने कि , उपक्रम है हमें निस्तेज करने कि ..एक PSEUDO- SOCIALISM का जामा पहनकर ...
तो कल आप जे० एन० यू० जायें तो ये भ्रम न रहे कि हम ज्ञानिओं के मध्य है ....क्यो कि उनका सम्पादकीय ज्ञान दीवार पर लिखी इबारत को पढ़ पाने में नाकाम है ....
वहां वास्तव में मार्क्सवाद को बोलने वाले लोग ज्यादा और जीने वाले लोग नगण्य हैं। वो क्या खाक पूंजीवाद के विरोध को मुखारीत कर सकता है जिस की बुनियाद की एक-एक ईंट भारत के पूंजीपतिओं के देन है। जिस जे० एन० यू० की स्थापना टाटा और बिडला के रहमो-करम से हुई , वो आज अपने को उसके विरोध में खड़ा करता है तो यह एक मात्र छलावा है और कुछ नही ! वास्तव में यह सब एक बड़ा सोचा समझा छद्मावरण है, जिसकी समझ हमारे सम्पादकीय ज्ञान की सीमा से परे है। ज्ञान और "सम्पादकीय ज्ञान " में बड़ा फर्क है। ज्ञान शब्द स्वयं में इतना विशाल और संपूर्ण है कि कोई भी विशेषण इस शब्द कि गरिमा को ठेस हिन् पहंचता है । इसे परिभाषित करना , इसकी सीमा को बाँधने जैसा है। हाँ तो जिस जे० एन० यू० से हमने समाजवाद की नब्ज़ को पहचानने कि अपेक्षा थी , क्या वो वास्तव में इस लायक है ?
सच कुछ और है । और वह है ---पूंजीवाद के बदले स्वरुप के भयंकर चेहरे को , जो वास्तविक पूंजीवाद से ज्यादा जहरीला और घातक है , जो आज न सिर्फ़ पूंजी को मध्य में रखता है बल्कि एक बड़ी सोची समझी रणनीति के तहत विश्व को अपने आवरण में ढकता जा रहा है।
आज रणनीति ये कहती है कि, परोक्ष रूप से किसी देश पर अपना अधिपत्य करना हो तो उसके बाज़ार में अपना इतना पैसा डाल दो, कि कल उस पैसे के निकल जाने के भय से वहां कि सरकार आपके खिलाफ चूँ तक न बोल पाए .... जो की अज चीन ने अमेरिका बाज़ार में किया और अमेरिका ने यूरोपियन बाज़ार में ...क्या आज इसी तरह पॉलिटिकल-कैपिटलिज्म, सोसिओ-कल्चरल कैपिटलिज्म जिसे आप सांस्कृतिक घुसपैठ का नाम दे रहे हैं या किसी देश की बुधि संसाधनों पे कब्ज़ा करने का खेल जारी नही !यह सब उसी पूंजीवाद का बदला हुआ रूप है ...यह वहीँ उपनिवेशवाद है जो नए रूप में आपके सामने खड़ा है और आपका "सम्पादकीय ज्ञान " उसकी चाल देख नही पा रहा ।
आज कि कूटनीति यही कहती है , अपना दुश्मन ख़ुद तैयार रखो , जो तुम्हारे पैसे को उपयोग में ला कर तुम्हारा विरोध करे। आप कल किसी गंभीर खतरे या चुनौती का सामना न करे , इस लिए ये अवश्यक है कि आप अपने खिलाफ होने वाले हर हलचल पर एक नज़र रखे, उसे एक प्लेटफोर्म दे ताकि जिसे भड़ास निकालनी हो , वह ए और शौक से निकाल ले। तो क्या यह सही नही कि जॉर्ज बुश का जो पुतला भारत में जलता है, वो स्वयं अमेरिका से बनकर आया होता है!
यह एक प्रयास है पूंजीपतिओं के खिलाफ उठने वाले आवाज़ को दबाने कि , उपक्रम है हमें निस्तेज करने कि ..एक PSEUDO- SOCIALISM का जामा पहनकर ...
तो कल आप जे० एन० यू० जायें तो ये भ्रम न रहे कि हम ज्ञानिओं के मध्य है ....क्यो कि उनका सम्पादकीय ज्ञान दीवार पर लिखी इबारत को पढ़ पाने में नाकाम है ....
पहले तो मैं आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हूँ की आपको मेरी शायरी और स्केच दोनों पसंद आई! मुझे भी आपकी खुबसूरत पंक्तियाँ बेहद पसंद आया!
ReplyDeleteबहुत ही शानदार लिखा है आपने!
बहुत ही सटीक बात लिखी है. । इस छद्म सोशलिस्म व सेक्यूलर लोगोन ने बहुत हानि की है हिन्दुस्तान की , ये कहीं भी खडे नही दिखाई देते , थाली के बेंगन की तरह ही हैं. ।
ReplyDeleteअच्छा लिखा है
ReplyDeleteइसी तरह लिखते जाइए