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औरत की दास्ताँ

दोहा : गरीबो का जग में gujaaraa नही है।
प्रभू के बिना कुछ सहारा नही है॥
दुनिया में भगवन ने सब कुछ बनाया।
पर दिया गम किसी को किसी को हसाया॥
एक औरत की सुनो दासता सच्ची कहता।
पति जिन्दा रहा बीमार वह हरदम रहता॥
पति के बीमारी में वह धन ओउर दौलत बेचीं।
सारा जेवर सुनो सम्मान मिलकियत बेचीं॥
एक दिन रात में पति ने कहा बुला करके ।
ठंडा पानी तो लाओ कही से अब जा करके॥
नारी पानी को गई पति ने दम तोड़ दिया ।
आज दुनिया से सुनो नाता बाबा छोड़ दिया॥
नारी जब आई जीवित पति नही पाया।
रो कर आवाज कर तभी प्रभु को सुनाया॥
किसके गले ओ भगवन मुझको लगाया।
पर दिया गम किसी को किसी को हसाया॥
अकेली लाश लिए पति जलाने चल दी।
धाधाक्ति ज्वाला अपने दिल की बुझाने चल दी॥
पहुची जब घाट ऊपर चिता जो रचाती है।
अपने हाथो से स्वाम पति को जलाती है॥
शाम को वक्त था चिता लगी जब भाभाकने।
एक साधू आया फ़िर लगा वही तड़पने॥
साधू बाबा ने कहा सुनो घाट मेरा है ।
लाश हटा ले फ़ौरन हमारा डेरा है॥
किसके कहने से यहाँ चिता को रचाई है।
सुनो नारी रो रो कर फ़िर सुनाई है॥
अपने पति के सत्य पर चिता को रचाया॥ पर दिया.......
नारी फ़िर रो कर कहा लाश न उठाऊ गी।
बिना जलाए हुए पति को नही जाऊगी॥
साधू बाबा ने कहा जल को बढ़ा दूगा तब ।
नारी ने रो कर कहा हाथो पे उठालूगी तब॥
साधू बाबा सुनो जल को जब बढाया है।
जलती हुयी लाश नारी हाथ पे उठाया है॥
पति को अपने मुस्कुराते हुए पाया है॥
कहते है शंभू ये भगवन की माया ।
को पार नही पाया .पर दिया गम किसी को
किसी को हसाया ,,,

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