गीत
आचार्य संजीव 'सलिल'
संकट में,
हिम्मत मत हार।
कोशिश का
खुला रहे द्वार....
शूल बीन
फूल नित बिखेर।
हो न दीन,
कर नहीं अबेर।
तम को कर
सूरज बन पार....
माटी की
महक नहीं भूल।
सर न चढ़े
पैर दबी धुल।
मारों पर न
करना तू वार...
कल को दे
कल से अब जोड़।
नातों को
पल में मत तोड़।
कलकल कर
बहे 'सलिल'-धार...
************
कलकल कर बहे 'सलिल'-धार...
आचार्य संजीव 'सलिल'
संकट में,
हिम्मत मत हार।
कोशिश का
खुला रहे द्वार....
शूल बीन
फूल नित बिखेर।
हो न दीन,
कर नहीं अबेर।
तम को कर
सूरज बन पार....
माटी की
महक नहीं भूल।
सर न चढ़े
पैर दबी धुल।
मारों पर न
करना तू वार...
कल को दे
कल से अब जोड़।
नातों को
पल में मत तोड़।
कलकल कर
बहे 'सलिल'-धार...
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कलकल कर बहे 'सलिल'-धार...
अच्छा लिखा है आपने
ReplyDeleteयहाँ पर पड़ा आपका हर एक लेख प्रभावसाली है