अश'आर
आचार्य संजीव 'सलिल'
जब तलक जिंदा था, रोटी न मुहय्या थी।
मर गया तो तेरही में दावतें हुई।
पत्थर से हर शहर में मिलते मकां हजारों।
मैं ढूंढ-ढूंढ हारा, घर एक नहीं मिलता ।
बाप की दो बात सह नहीं पाते।
अफसरों की लात भी परसाद है।
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आचार्य संजीव 'सलिल'
जब तलक जिंदा था, रोटी न मुहय्या थी।
मर गया तो तेरही में दावतें हुई।
पत्थर से हर शहर में मिलते मकां हजारों।
मैं ढूंढ-ढूंढ हारा, घर एक नहीं मिलता ।
बाप की दो बात सह नहीं पाते।
अफसरों की लात भी परसाद है।
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सच असलियत बंया की एक गरीब की जिंदा रहने पर रोटी नहीं मिलती और मरने पर दाबत
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा
इतना अच्छा लिखा है की मैं कुछ भी नहीं कह सकती
ReplyDeleteप्याशे को पानी पिलाया नहीं बाद अमृत पिलाने से क्या फायदा
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