सायना नेहवाल
भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी
मुझे अमेरिका का सिस्टम बहुत पसंद है। वहां राष्ट्रपति पद के लिए सिर्फ दो लोग ही आमने-सामने होते हैं। इन्हें भी इनकी मैरिट के आधार पर चुना जाता है। ये दोनों अलग-अलग विचारधारा वाले समूह का प्रतिनिधित्व करते हैं।
इन दोनों में से एक को जनता चुनती है और उसे राष्ट्रपति पद का कार्यभार संभालने से पहले पूरा समय दिया जाता है ताकि वह चीजों को अच्छी तरह समझ सके और फिर पदभार संभाले। वहां सबकुछ बहुत पारदर्शी है।
लेकिन भारत में तीसरा या चौथा व्यक्ति जो कि मौकापरस्त होता है उसे ही फायदा होता है। वह व्यक्ति जो समाज में अपनी ताकत, पैसे और जाति-धर्म के आधार पर जाना जाता है न कि अपने गुणों के आधार पर। जिन लोगों को हम जानते तक नहीं कई बार वे लोग हमारे देश को चलाने की बात करते नजर आते हैं। पहले दो को कोई बहुमत नहीं मिलता और तीसरा बाजी मार ले जाता है।
मैं बहुत उलझी हुई हूं कि हमारे देश के नेता किस ढंग से हमारा देश चला रहे हैं। टीवी पर दिखाया गया कि कैसे संसद में घूस देकर कर लोगों को खरीदा जा रहा था। मुझे नहीं मालूम कौन सही है, वो जिसे कसूरवार ठहराया जा रहा है या वो जो कसूरवार ठहरा रहा है या फिर वह व्यक्ति जो इन दोनों को आपस में भिड़ाकर पीछे खड़े होकर तमाशा देख रहा है।
किताबों के जरिए मुझे मालूम पड़ा कि हमारे देश के पहले प्रधानमंत्री स्वर्गीय जवाहर लाल नेहरू कई बार हमारे देश के प्रधानमंत्री बने। आखिर इतने समय के लिए वो देश को किस तरह चला रहे थे। उनकी इतने लंबे समय के शासनकाल के बारे में सुनकर आश्चर्य होता है।
ये कैसी आजादी है कि एक तरफ कोई भी पीएम बनने की बात करने लगता है जबकि दूसरी तरफ कोई भी कुछ बुरे लोगों के माध्यम में हमारे सिस्टम को आघात पहुंचा देता है। मुझे ये लगता है कि या तो चीजें बहुत ज्यादा खुली हुई हैं या फिर उनका कोई मतलब ही नहीं है सिवाए समाज में झगड़ा कराने के। कई बार कुछ नेता जनता को आपस में लड़ा कर सत्ता हासिल करने से भी नहीं चूकते।
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भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी
मुझे अमेरिका का सिस्टम बहुत पसंद है। वहां राष्ट्रपति पद के लिए सिर्फ दो लोग ही आमने-सामने होते हैं। इन्हें भी इनकी मैरिट के आधार पर चुना जाता है। ये दोनों अलग-अलग विचारधारा वाले समूह का प्रतिनिधित्व करते हैं।
इन दोनों में से एक को जनता चुनती है और उसे राष्ट्रपति पद का कार्यभार संभालने से पहले पूरा समय दिया जाता है ताकि वह चीजों को अच्छी तरह समझ सके और फिर पदभार संभाले। वहां सबकुछ बहुत पारदर्शी है।
लेकिन भारत में तीसरा या चौथा व्यक्ति जो कि मौकापरस्त होता है उसे ही फायदा होता है। वह व्यक्ति जो समाज में अपनी ताकत, पैसे और जाति-धर्म के आधार पर जाना जाता है न कि अपने गुणों के आधार पर। जिन लोगों को हम जानते तक नहीं कई बार वे लोग हमारे देश को चलाने की बात करते नजर आते हैं। पहले दो को कोई बहुमत नहीं मिलता और तीसरा बाजी मार ले जाता है।
मैं बहुत उलझी हुई हूं कि हमारे देश के नेता किस ढंग से हमारा देश चला रहे हैं। टीवी पर दिखाया गया कि कैसे संसद में घूस देकर कर लोगों को खरीदा जा रहा था। मुझे नहीं मालूम कौन सही है, वो जिसे कसूरवार ठहराया जा रहा है या वो जो कसूरवार ठहरा रहा है या फिर वह व्यक्ति जो इन दोनों को आपस में भिड़ाकर पीछे खड़े होकर तमाशा देख रहा है।
किताबों के जरिए मुझे मालूम पड़ा कि हमारे देश के पहले प्रधानमंत्री स्वर्गीय जवाहर लाल नेहरू कई बार हमारे देश के प्रधानमंत्री बने। आखिर इतने समय के लिए वो देश को किस तरह चला रहे थे। उनकी इतने लंबे समय के शासनकाल के बारे में सुनकर आश्चर्य होता है।
ये कैसी आजादी है कि एक तरफ कोई भी पीएम बनने की बात करने लगता है जबकि दूसरी तरफ कोई भी कुछ बुरे लोगों के माध्यम में हमारे सिस्टम को आघात पहुंचा देता है। मुझे ये लगता है कि या तो चीजें बहुत ज्यादा खुली हुई हैं या फिर उनका कोई मतलब ही नहीं है सिवाए समाज में झगड़ा कराने के। कई बार कुछ नेता जनता को आपस में लड़ा कर सत्ता हासिल करने से भी नहीं चूकते।
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हां मैं सायना जी की बात से संतुस्ट हूँ
ReplyDeleteकी अमेरिका का तरीका भारत मे भी लागु हो