इन्केलाब आया ज़माने में ये कैसा यारों
आज हर शख्श नज़र आता है तनहा यारो
लाख मजबूर करे उसको ज़माना यारों
वोह मुझे छोड़ दे तनहा नही ऐसा यारो
मुस्कुराने की सज़ा ऐसी मिली है मुझको
रात दिन करता हूँ हसने से मैं तौबा यारो
दिल में खुद्दारी का फैजान रहा है जब तक
एक कतरा भी समंदर से न माँगा यारो
गुफ्तगू नूर भी चेहरे का उदा देती है है
बात करने का अगर हो न सलीका यारो
वो मेरे शहर से कह कर येही दुनिया से गया
खौफो दहशत से न हिजरत कभी करना यारो
हाँ येही अश्क निदामत है मेरा हासिल जीस्त
हाँ येही मेरे मुकद्दर में लिखा था यारो।
अलीम आज़मी
आज हर शख्श नज़र आता है तनहा यारो
लाख मजबूर करे उसको ज़माना यारों
वोह मुझे छोड़ दे तनहा नही ऐसा यारो
मुस्कुराने की सज़ा ऐसी मिली है मुझको
रात दिन करता हूँ हसने से मैं तौबा यारो
दिल में खुद्दारी का फैजान रहा है जब तक
एक कतरा भी समंदर से न माँगा यारो
गुफ्तगू नूर भी चेहरे का उदा देती है है
बात करने का अगर हो न सलीका यारो
वो मेरे शहर से कह कर येही दुनिया से गया
खौफो दहशत से न हिजरत कभी करना यारो
हाँ येही अश्क निदामत है मेरा हासिल जीस्त
हाँ येही मेरे मुकद्दर में लिखा था यारो।
अलीम आज़मी
बहुत अच्छा लिखा है आपने
ReplyDeletetareef ke liye aapka bahut bahut shukriya kalpana ji
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