विनय बिहारी सिंह
(परमहंस योगानंद जी की कविता से प्रेरित होकर)
मेरी रगों में दौड़ता
खून मेरे दिल की धड़कन
मेरा मन मेरी बुद्धि मेरी आत्मा
तुम्हीं तो हो भगवन
हां, तुम्हीं तो हो।
मेरी हर सांस
मेरी हर याद
मेरा सब कुछ प्रभु तुम्हीं तो हो।
कब आओगे भगवन
कब दोगे दर्शन
अब नहीं सहा जाता ।।
जल्दी आओ न प्रभु,
मेरे प्रिय आओ, खुला है
मेरे हृदय का द्वार
और खुला रहेगा हमेशा
बहुत करा लिया इंतजार
आओ प्रभु, करो न देर
मेरे प्रियतम, आओ।।
(परमहंस योगानंद जी की कविता से प्रेरित होकर)
मेरी रगों में दौड़ता
खून मेरे दिल की धड़कन
मेरा मन मेरी बुद्धि मेरी आत्मा
तुम्हीं तो हो भगवन
हां, तुम्हीं तो हो।
मेरी हर सांस
मेरी हर याद
मेरा सब कुछ प्रभु तुम्हीं तो हो।
कब आओगे भगवन
कब दोगे दर्शन
अब नहीं सहा जाता ।।
जल्दी आओ न प्रभु,
मेरे प्रिय आओ, खुला है
मेरे हृदय का द्वार
और खुला रहेगा हमेशा
बहुत करा लिया इंतजार
आओ प्रभु, करो न देर
मेरे प्रियतम, आओ।।
विनय जी आपकी बात से सहमत हूँ की अध्यात्म पर भी बहस होनी चाहिए
ReplyDeleteलेकिन अध्यात्म पर बहस करने वाले वीर भी होना चहिये !
जहा तक मैं जानता हूँ अध्यात्म पर सबसे जायदा आप ही लिखते है !
अगर आगे चलकर अवसर मिला या ऐसा माहोल मिला तो हम बहस जर्रू करेंगे!