खुर्शीद अहमद- भड़ास फॉर यूपी
क्या होता है जब कोई भूत और ज्यादा शक्तिशाली होकर आता है और इंसानों को मारता है जिसके (उस भूत के) अपने पिता सत्तर के दशक में प्रधान मंत्री तो नहीं था मगर परदे के पीछे उसी की ताक़त सबसे ज़्यादा थी?
मैं बात कर रहा हूँ वरुण गाँधी की, जो कि अपने पिता से इतिहास से सिखने के बजाये, उसे दोहराने के बजाये इतिहास का ज़हर फैलाने का काम किया इतिहास तो खैर अलग की बात है लेकिन यह ज़रूर था कि वरुण गाँधी आज का राहुल गाँधी हो सकता था मगर अफ़सोस, ऐसा नहीं हुआ और इतिहास तो वैसे भी 'अगर' या 'मगर' आदि से नहीं बनता या व्याख्यांवित होता है इतिहास कभी किसी को हमेशा के लिए शक्तिशाली नहीं बना के रखता है
संजय गाँधी, वरुण के पिता एक अत्यधिक शक्तिशाली राजनीतिग्य थे और इंदिरा गाँधी के 'सबसे प्रिय पुत्र' इंदिरा जी उनका बहुत फेवोर करती थीं वह ऐसे पुरुष थे जो जिनके लिए सफलता पहले से ही इंतज़ार कर रही होती थी 23, जून 1980 का वह मनहूस दिन जब वह सिंगल इंजिन वाले जहाज़ को उड़ते हुए मज़ा ले रहे थे और वो तीन चक्कर लगा चुके थे, सामान्यतः वह इतनी बार में संतुष्ट होकर वापस आ जाते थे मगर उन्हें कुछ और मज़ा लेने का मन हुआ और वह चौथा चक्कर लगाने के लिए प्रयास किया और उस पर अपना नियंत्रण खो दिया एक युवा और शक्तिशाली सपना जो पूरा हो सकता था, प्लेन क्रेश में ख़त्म हो गया एक इतिहास जो रचने जा रहा था, मगर.... जैसा कि मैंने पहले ही लिखा था कि इतिहास 'अगर' या 'मगर' आदि से नहीं बनता संजय मेनका और वरुण गाँधी को छोड़ कर चले गए
संजय गाँधी के परिवार वाले उसी पॉवर उसी ताक़त से आगे बढ़ सकते थे मगर ऐसा हुआ नहीं शक्तिशाली शक्तिहीन हो गया और 'Power followed by powerlessness'।
29-वर्ष के वरुण गाँधी की ज़िन्दगी को बताने के लिए यही काफी है कि उनकी अपनी फैमिली से अलग रह कर या माँ के बगावत करने की विचार से भरी हुई दास्ताँ ही सुनाती है वरुण मात्र 3 महीने के थे जब संजय गाँधी की दुर्घटना में मौत हुई संजय गाँधी की मृत्यु से एक नए युग का आरम्भ हुआ जिसमें आधिपत्य था राजीव गाँधी का चमत्कारिक रूप से बढती हुई राजीव गाँधी की उन्नति के सूरज में मेनका और वरुण का प्रकाश मंद पड़ता गया यही खो जाने की प्रवृत्ति वरुण के मन में घर कर चुकी है .
वरुण गाँधी की विचारधारा क्या हो सकती है जिसके मद्देनज़र उन्होंने भारतीय मुस्लिम्स और राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के खिलाफ इस कदर ज़हर उगल दिया London School of Economics and Political Science के लिबरल ट्रेडिशन जैसे माहौल से पढ़ कर आया हुआ एक इन्सान साम्प्रदायिक कैसे हो गया ? हो सकता है शायद यह उसके पिता की आदत उसके अन्दर आ गयी होगी जिसे हमेशा सुर्खियों में छये रहने की आदत थी ऐसा वरुण ने शुरू कर दिया है, देखते रहिएगा, अभी तो शुरुवात है
संजय गाँधी 70 के दशक में मिडिया में सबसे प्रिय थे, उनकी एक एक क़दम की खबर मिडिया में बड़े ही अच्छे ढंग से प्रकाशित होती थी संजय के चीयरलीडर और कोई नहीं बल्कि खुशवंत सिंह थे जो खुद उनके बारे में खूब लिखा करते थे और मिडिया में उनकी वजह से सनाज्य खूब छाये रहे खूब फोटो छपते थे दूरदर्शन, आल इंडिया रेडियो (AIR) ये सब के सब उनके ऊपर खूब ध्यान दिए रहते थे और उनकी खबरों को प्रमुखता से बयान करते थे तथ्य ही यह बताने के लिए काफी है और शर्मनाक भी कि आल इंडिया रेडियो, दिल्ली में केवल एक साल में ही 192 न्यूज़ प्रसारित हुईं ठीक उसी साल दूरदर्शन में 265 बुलेटिन संजय गाँधी के बारे में टेलीकास्ट हुए और तो और जब वह आन्ध्र प्रदेश में 24 घंटे की ट्रिप पर गए थे तब उनके ऊपर फिल्म डिविजन द्वारा फुल लेंथ की डाकुमेंटरी फिल्म बनाई गयी थी जिसके पार्श्व संवाद तीन अलग अलग भाषाओँ में प्रसारित किये गए
आज कल की मिडिया भी तो यही कर रही है, और मैं, मैं भी यही कर रहा हूँ और आप, आप भी वही कर रहे हैं! आज ठीक उसी तरह वरुण गाँधी को कवर करे हुए है वरुण अपने पिता की ही तरह अपने द्वारा खबर बनवाने का गुण को कैश करा रहा है, या कैश करने की कोशिश कर रहा है लकिन शायद वह भूल गया है कि वह युग उसके पिता का स्वर्ण युग था और उसका युग... !!!???।
वरुण के चर्चित होने में केवल वक शब्द ही बहुत काम आया है और वह है "गाँधी" वह गाँधी परिवार से हैं इसलिए मिडिया में छाये हैं, वरना जिस तरह की बयानबाजी उन्होंने की उससे वह केवल अखबार के चौथे पन्ने पर छोटे से कलम में भी जगह नहीं बना पाता वरुण गाँधी ने सफलता और शक्ति पाने की अंधी दौड़ में अपने माँ के नक्शेक़दम पर चल कर BJP को ज्वाइन किया उनका पांच साल का काल बीजेपी में बेहद नीरस रहा वह 2004 में इसलिए चुनाव में नहीं लड़ सके क्यूंकि वह 25 साल के नहीं थे अब वह चुनाव लड़ने के योग्य हैं वरुण अपने राजनीती का पहला चुनाव जितने के साथ साथ खूब ख्याति बटोरने की भी मंशा लिए हुए हैं
वरुण अपने पिता की ही तरह अपने ऊपर दूसरो का ध्यान बटोरवाना चाहते हैं जैसे संजय किया करते थे यह सर्व विदित है कि जब संजय जयपुर दौरे पर थे तब 501 arches उनके सम्मान में खड़े हो गए थे और लखनऊ एअरपोर्ट पर जब वह लड़खडा गए थे उनके स्लीपर को उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री ने उठाया था वरुण शायद यह भूल रहे हैं कि उनका स्लीपर अगर एअरपोर्ट पर गिर जाये तो उसे कोई नहीं उठाएगा यहाँ तक कि एक थर्ड क्लास की एयर होस्टेज भी नहीं !
उनके पोस्टर में लिखा है 'वरुण नहीं यह आंधी है, दूसरा संजय गाँधी है'
'वरुण सोच तो रहे होंगे दूसरा संजय गाँधी बनना लेकिन वह है बुल्कुल उनके विपरीत क्यूँकि जिस तरह से चल कर वरुण अपनी प्रसिद्धि बटोरना चाह रहे है, वैसा संजय ने कभी नहीं किया
मैं आपको एक और बात बताता चलूँ संजय गाँधी के लिए किशोर कुमार ने गाने के लिए मन किया था तो विविध भारती पर किशोर कुमार प्रतिबंधित कर दिए गए थे रेडियो पर उनका गाना नहीं बजता था, दूरदर्शन पर उनका कोई गाना नहीं आता था और हर जगह किशोर दा को बैन कर दिया गया था फिल्म सेंसर बोर्ड उनकी फिल्मों को पास ना करके लटकाए रखे थी, जिसमे उन्होंने गया या एक्टिंग की होती थी संजय के समर्थकों ने म्यूजिक कंपनीज़ को वार्निंग दे राखी थी कि उनका कोई गाना ना बिके ना ही रिकॉर्ड हो
संजय साम दाम दंड भेद सभी तरीके से अपना काम करवाना जानते थे, लेकिन वरुण और संजय में ज़मीनी अलगाव है वरुण हठधर्मिता यह दर्शाती है कि वह उनकी माँ और बीजेपी द्वारा पूरी तरह से प्रायोजित हैं हो सकता है वह पीलीभीत से चुनाव ना भी लड़ पाए और उनके ऊपर Chief Election Commission बैन लगा दे मेरी तरफ से वरुण को केवल एक ही सन्देश है कि वह जेल में जा कर ही राजनीती सीख सकते हैं वैसे भी वह आने वाले दिनों में गिरफ्तारी देने जा भी रहें है, साथ में कलराज मिश्र भी है
आपकी आलोचनाओं का स्वागत है|
क्या होता है जब कोई भूत और ज्यादा शक्तिशाली होकर आता है और इंसानों को मारता है जिसके (उस भूत के) अपने पिता सत्तर के दशक में प्रधान मंत्री तो नहीं था मगर परदे के पीछे उसी की ताक़त सबसे ज़्यादा थी?
मैं बात कर रहा हूँ वरुण गाँधी की, जो कि अपने पिता से इतिहास से सिखने के बजाये, उसे दोहराने के बजाये इतिहास का ज़हर फैलाने का काम किया इतिहास तो खैर अलग की बात है लेकिन यह ज़रूर था कि वरुण गाँधी आज का राहुल गाँधी हो सकता था मगर अफ़सोस, ऐसा नहीं हुआ और इतिहास तो वैसे भी 'अगर' या 'मगर' आदि से नहीं बनता या व्याख्यांवित होता है इतिहास कभी किसी को हमेशा के लिए शक्तिशाली नहीं बना के रखता है
संजय गाँधी, वरुण के पिता एक अत्यधिक शक्तिशाली राजनीतिग्य थे और इंदिरा गाँधी के 'सबसे प्रिय पुत्र' इंदिरा जी उनका बहुत फेवोर करती थीं वह ऐसे पुरुष थे जो जिनके लिए सफलता पहले से ही इंतज़ार कर रही होती थी 23, जून 1980 का वह मनहूस दिन जब वह सिंगल इंजिन वाले जहाज़ को उड़ते हुए मज़ा ले रहे थे और वो तीन चक्कर लगा चुके थे, सामान्यतः वह इतनी बार में संतुष्ट होकर वापस आ जाते थे मगर उन्हें कुछ और मज़ा लेने का मन हुआ और वह चौथा चक्कर लगाने के लिए प्रयास किया और उस पर अपना नियंत्रण खो दिया एक युवा और शक्तिशाली सपना जो पूरा हो सकता था, प्लेन क्रेश में ख़त्म हो गया एक इतिहास जो रचने जा रहा था, मगर.... जैसा कि मैंने पहले ही लिखा था कि इतिहास 'अगर' या 'मगर' आदि से नहीं बनता संजय मेनका और वरुण गाँधी को छोड़ कर चले गए
संजय गाँधी के परिवार वाले उसी पॉवर उसी ताक़त से आगे बढ़ सकते थे मगर ऐसा हुआ नहीं शक्तिशाली शक्तिहीन हो गया और 'Power followed by powerlessness'।
29-वर्ष के वरुण गाँधी की ज़िन्दगी को बताने के लिए यही काफी है कि उनकी अपनी फैमिली से अलग रह कर या माँ के बगावत करने की विचार से भरी हुई दास्ताँ ही सुनाती है वरुण मात्र 3 महीने के थे जब संजय गाँधी की दुर्घटना में मौत हुई संजय गाँधी की मृत्यु से एक नए युग का आरम्भ हुआ जिसमें आधिपत्य था राजीव गाँधी का चमत्कारिक रूप से बढती हुई राजीव गाँधी की उन्नति के सूरज में मेनका और वरुण का प्रकाश मंद पड़ता गया यही खो जाने की प्रवृत्ति वरुण के मन में घर कर चुकी है .
वरुण गाँधी की विचारधारा क्या हो सकती है जिसके मद्देनज़र उन्होंने भारतीय मुस्लिम्स और राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के खिलाफ इस कदर ज़हर उगल दिया London School of Economics and Political Science के लिबरल ट्रेडिशन जैसे माहौल से पढ़ कर आया हुआ एक इन्सान साम्प्रदायिक कैसे हो गया ? हो सकता है शायद यह उसके पिता की आदत उसके अन्दर आ गयी होगी जिसे हमेशा सुर्खियों में छये रहने की आदत थी ऐसा वरुण ने शुरू कर दिया है, देखते रहिएगा, अभी तो शुरुवात है
संजय गाँधी 70 के दशक में मिडिया में सबसे प्रिय थे, उनकी एक एक क़दम की खबर मिडिया में बड़े ही अच्छे ढंग से प्रकाशित होती थी संजय के चीयरलीडर और कोई नहीं बल्कि खुशवंत सिंह थे जो खुद उनके बारे में खूब लिखा करते थे और मिडिया में उनकी वजह से सनाज्य खूब छाये रहे खूब फोटो छपते थे दूरदर्शन, आल इंडिया रेडियो (AIR) ये सब के सब उनके ऊपर खूब ध्यान दिए रहते थे और उनकी खबरों को प्रमुखता से बयान करते थे तथ्य ही यह बताने के लिए काफी है और शर्मनाक भी कि आल इंडिया रेडियो, दिल्ली में केवल एक साल में ही 192 न्यूज़ प्रसारित हुईं ठीक उसी साल दूरदर्शन में 265 बुलेटिन संजय गाँधी के बारे में टेलीकास्ट हुए और तो और जब वह आन्ध्र प्रदेश में 24 घंटे की ट्रिप पर गए थे तब उनके ऊपर फिल्म डिविजन द्वारा फुल लेंथ की डाकुमेंटरी फिल्म बनाई गयी थी जिसके पार्श्व संवाद तीन अलग अलग भाषाओँ में प्रसारित किये गए
आज कल की मिडिया भी तो यही कर रही है, और मैं, मैं भी यही कर रहा हूँ और आप, आप भी वही कर रहे हैं! आज ठीक उसी तरह वरुण गाँधी को कवर करे हुए है वरुण अपने पिता की ही तरह अपने द्वारा खबर बनवाने का गुण को कैश करा रहा है, या कैश करने की कोशिश कर रहा है लकिन शायद वह भूल गया है कि वह युग उसके पिता का स्वर्ण युग था और उसका युग... !!!???।
वरुण के चर्चित होने में केवल वक शब्द ही बहुत काम आया है और वह है "गाँधी" वह गाँधी परिवार से हैं इसलिए मिडिया में छाये हैं, वरना जिस तरह की बयानबाजी उन्होंने की उससे वह केवल अखबार के चौथे पन्ने पर छोटे से कलम में भी जगह नहीं बना पाता वरुण गाँधी ने सफलता और शक्ति पाने की अंधी दौड़ में अपने माँ के नक्शेक़दम पर चल कर BJP को ज्वाइन किया उनका पांच साल का काल बीजेपी में बेहद नीरस रहा वह 2004 में इसलिए चुनाव में नहीं लड़ सके क्यूंकि वह 25 साल के नहीं थे अब वह चुनाव लड़ने के योग्य हैं वरुण अपने राजनीती का पहला चुनाव जितने के साथ साथ खूब ख्याति बटोरने की भी मंशा लिए हुए हैं
वरुण अपने पिता की ही तरह अपने ऊपर दूसरो का ध्यान बटोरवाना चाहते हैं जैसे संजय किया करते थे यह सर्व विदित है कि जब संजय जयपुर दौरे पर थे तब 501 arches उनके सम्मान में खड़े हो गए थे और लखनऊ एअरपोर्ट पर जब वह लड़खडा गए थे उनके स्लीपर को उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री ने उठाया था वरुण शायद यह भूल रहे हैं कि उनका स्लीपर अगर एअरपोर्ट पर गिर जाये तो उसे कोई नहीं उठाएगा यहाँ तक कि एक थर्ड क्लास की एयर होस्टेज भी नहीं !
उनके पोस्टर में लिखा है 'वरुण नहीं यह आंधी है, दूसरा संजय गाँधी है'
'वरुण सोच तो रहे होंगे दूसरा संजय गाँधी बनना लेकिन वह है बुल्कुल उनके विपरीत क्यूँकि जिस तरह से चल कर वरुण अपनी प्रसिद्धि बटोरना चाह रहे है, वैसा संजय ने कभी नहीं किया
मैं आपको एक और बात बताता चलूँ संजय गाँधी के लिए किशोर कुमार ने गाने के लिए मन किया था तो विविध भारती पर किशोर कुमार प्रतिबंधित कर दिए गए थे रेडियो पर उनका गाना नहीं बजता था, दूरदर्शन पर उनका कोई गाना नहीं आता था और हर जगह किशोर दा को बैन कर दिया गया था फिल्म सेंसर बोर्ड उनकी फिल्मों को पास ना करके लटकाए रखे थी, जिसमे उन्होंने गया या एक्टिंग की होती थी संजय के समर्थकों ने म्यूजिक कंपनीज़ को वार्निंग दे राखी थी कि उनका कोई गाना ना बिके ना ही रिकॉर्ड हो
संजय साम दाम दंड भेद सभी तरीके से अपना काम करवाना जानते थे, लेकिन वरुण और संजय में ज़मीनी अलगाव है वरुण हठधर्मिता यह दर्शाती है कि वह उनकी माँ और बीजेपी द्वारा पूरी तरह से प्रायोजित हैं हो सकता है वह पीलीभीत से चुनाव ना भी लड़ पाए और उनके ऊपर Chief Election Commission बैन लगा दे मेरी तरफ से वरुण को केवल एक ही सन्देश है कि वह जेल में जा कर ही राजनीती सीख सकते हैं वैसे भी वह आने वाले दिनों में गिरफ्तारी देने जा भी रहें है, साथ में कलराज मिश्र भी है
आपकी आलोचनाओं का स्वागत है|
बहुत ख़ूब लिखा आपने, आप वर्तनी में थोडा सुधार ला दें तो और बेहतर हो जायेगा |
ReplyDeletebehtareen topic aapne chuna hai acha likha hai
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeletethis foolish article should be removed. every one need to study properly about sanjay gandhi before saying any thing.
ReplyDeleteबेवकूफ है लिखने वाला...झूठ ...झूठ और सिर्फ झूठ......
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