तूफ़ान मेरे सर से गुज़रता क्यों नही जाता
दरिया मेरी कश्ती में उतरता क्यो नही jaata
सदियों से भी हालात के दलदल में फसा हूँ
सूरज मेरे अन्दर का उभरता क्यों नही jaata
ताबीर खंज़र से ज़ख्मी मेरी आंखें
मई खवाब के मानिंद बिखर क्यों नही जाता
धुप मिली छाओं मिला धुप से साया
फिर रेत के सेहरा में शजर मिलने क्यों जाता।
अलीम आज़मी.....
दरिया मेरी कश्ती में उतरता क्यो नही jaata
सदियों से भी हालात के दलदल में फसा हूँ
सूरज मेरे अन्दर का उभरता क्यों नही jaata
ताबीर खंज़र से ज़ख्मी मेरी आंखें
मई खवाब के मानिंद बिखर क्यों नही जाता
धुप मिली छाओं मिला धुप से साया
फिर रेत के सेहरा में शजर मिलने क्यों जाता।
अलीम आज़मी.....
सुन्दर ग़ज़ल
ReplyDeleteबहुत खूब दोस्त