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कविता माँ

कविता

माँ

'सलिल'

माँ भूलती नहीं,
याद रखती है हर टूटा सपना।
नहीं चाहती कि
उसकी बेटी को भी पड़े
उसी की तरह
आग में तपना।
माँ जानती है
जिन्दगी kee बगिया में
फूल कम - शूल अधिक हैं,
उसे यह भी ज्ञात है कि
समय सदा साथ नहीं देता।
वह अपनी राजदुलारी को
रखना चाहती है महफूज़
नहीं चाहती कि
उस जान से ज्यादा
अज़ीज़ बेटी पर
कभी भी उठे उँगली।
इसलिए वह
भीतर से
नर्म hote hue भी
ऊपर से
दिखती है कठोर।
जैसे raat की सियाही
छिपाए रहती है
अपने दामन में
उजली भोर।

*****************************

Comments

  1. सलिल जी बहुत अच्छा लिखा है

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  2. very gooddddddddddddddddddd

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  3. shabd nhi h aap ki tarif ke

    ReplyDelete
  4. very very nice and poem it is
    I like very much

    ReplyDelete

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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